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- बचत से आती है...
यूं तो बचत एक वरदान है। बचत करते हुए हम न केवल अपने लिए संपत्ति और संसाधनों का निर्माण कर सकते हैं, अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भली-भांति कर सकते हैं, बल्कि बुरे दिनों के दौरान विपदा को भी कम कर सकते हैं। भारतीय परंपराओं, स्वभाव और संस्कारों में बचत हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। अक्सर हम अपने द्वारा संचित संसाधनों से अपने जीवन को पहले से बेहतर बनाते हैं। समाज में चाहे जो भी सोच, स्वभाव अथवा परंपरा रही हो, लेकिन भारत में कभी भी अलग प्रकार के विचार की अभिव्यक्ति पर रुकावट नहीं रही। हमारे ही वांग्मय में एक दार्शनिक 'चारवाक' का उल्लेख आता है, जिन्होंने बचत संस्कृति के विपरीत एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसे हम चारवाक सिद्धांत भी कह सकते हैं। उनका यह सिद्धांत भौतिकवादी विचार पर आधारित है। उन्होंने एक श्लोक के माध्यम से कहा 'ष्यावत् जीवेत सुखम् जीवेत। ऋणं कृत्वा घृतं पिबते। भस्मिभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:।' इसका भावात्मक अर्थ यह है कि जब तक जीएं सुख से जीएं। कोई भी मृत्यु से बचा नहीं, एक बार जब शरीर जल जाएगा तो वापस नहीं आएगा।