सम्पादकीय

स्वभाषा का पाठ

Subhi
21 Oct 2022 6:19 AM GMT
स्वभाषा का पाठ
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इस प्रयोग की प्रतीक्षा लंबे समय से की जा रही थी, क्योंकि चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस और रूस समेत कई देश अपने भाषा में उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। अच्छा होता कि भारत में इसकी पहल स्वतंत्रता के बाद ही की जाती।अगर ऐसा किया गया होता तो संभवत: आज उच्च शिक्षा की पढ़ाई हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में हो रही होती। देर से ही सही, चिकित्सा के हिंदी में पढ़ाई का शुभारंभ भारतीय भाषाओं को सम्मान प्रदान करने की दृष्टि से एक मील का पत्थर है।

Written by जनसत्ता: इस प्रयोग की प्रतीक्षा लंबे समय से की जा रही थी, क्योंकि चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस और रूस समेत कई देश अपने भाषा में उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। अच्छा होता कि भारत में इसकी पहल स्वतंत्रता के बाद ही की जाती।अगर ऐसा किया गया होता तो संभवत: आज उच्च शिक्षा की पढ़ाई हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में हो रही होती। देर से ही सही, चिकित्सा के हिंदी में पढ़ाई का शुभारंभ भारतीय भाषाओं को सम्मान प्रदान करने की दृष्टि से एक मील का पत्थर है।

इस प्रयोग की सफलता के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए। साथ ही जो शुरुआत मध्य प्रदेश से हो रही है, वह देश भर में तेजी से आगे बढ़े। यह उत्साहजनक है कि चिकित्सा के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी हिंदी में शुरू करने के कदम उठाए जा रहे हैं। अगला प्रयास कानून, विज्ञान, वाणिज्य आदि विषयों की पढ़ाई हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में शुरू करने का होना चाहिए। जब अन्य अनेक देशों में ऐसा हो सकता है तो भारत में क्यों नहीं हो सकता?

हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षा की पढ़ाई में प्रारंभ में कुछ समस्या आ सकती हैं, लेकिन उनसे आसानी से पार पाया जा सकता है। इस क्रम में इस पर विशेष ध्यान देना होगा कि शिक्षा की गुणवत्ता से कोई समझौता न हो पाए। इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि एक बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को भी चिकित्सा, इंजीनियरिंग और ऐसे ही अन्य विषयों की पढ़ाई में अंग्रेजी की बाधा का सामना करना पड़ता है।

चिकित्सा, इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई की सुविधा प्रदान करते समय इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि भाषा सहज-सरल हो और उसमें अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग करने में हिचक न आए। उचित यह होगा कि जो पहल मध्य प्रदेश में हुई उसका अनुकरण अन्य राज्य भी करें और मातृभाषा में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर ऊंचा रखने के मामले में प्रतिस्पर्धा का भी परिचय दें।

आज के समय में प्रदूषण के कारकों की कमी नहीं है। मनुष्य की प्रगति के साथ प्रदूषण के कारकों ने भी निरंतर वृद्धि ही की है। बीते तीन सालों में कोरोना महामारी के दौर में जो पीपीई किट, मास्क, दस्ताने और सैनेटाइजर कोरोना से लड़ने के लिए एक आवश्यक साधन थे, आज वही सब घातक प्रदूषकों का रूप धारण कर चुके हैं। खासतौर पर यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए ज्यादा हानिकारक साबित हो रहे हैं।

हाल में आई एक रिपोर्ट से यह पता चला है कि लगभग 1.56 बिलियन मास्क और पीपीई किट समुद्री वातावरण में प्रवेश कर चुके हैं। नतीजतन समुद्री वातावरण में कोरोना अवशिष्ट मलबे को प्लास्टिक के मलबे का एक उभरता हुआ रूप माने जाने लगा है। यह मलबा समुद्री जीवों के लिए हानिकारक तो है ही, लेकिन इसका सीधा असर मनुष्यों पर भी पड़ रहा है और पड़ेगा।

आज के समय में वैसे ही प्लास्टिक प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन के हमारी सामान्य जीवन तक को बाधित कर रही है। हमें चाहिए कि इसमें हम एक और कारक को सम्मिलित न होने दें। हम जानते हैं कि यह समस्या किसी एक देश की न होकर समूची मानव जाति की है। इसका समाधान भी सभी को मिलकर साथ में निकालना चाहिए, ताकि इस समस्या से जल्द से जल्द निजात मिल सके और हमारा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र ज्यों का त्यों बना रहे।


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