सम्पादकीय

चुनावी गणित का आत्मसम्मान

Rani Sahu
30 Aug 2022 6:58 PM GMT
चुनावी गणित का आत्मसम्मान
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चुनावी जहाज इस बार राजनीतिक हवाई पट्टियों पर भी उड़ेंगे और मुद्दे स्थानीय परिभाषा से आगे राज्य स्तरीय होकर नेताओं के कद का फैसला करेंगे
By: divyahimachal
चुनावी जहाज इस बार राजनीतिक हवाई पट्टियों पर भी उड़ेंगे और मुद्दे स्थानीय परिभाषा से आगे राज्य स्तरीय होकर नेताओं के कद का फैसला करेंगे। ऐसे में कुछ मंत्रियों की चुनावी रिपोर्ट के अव्वल दर्शन करते विधानसभा क्षेत्र देखे जाएंगे और कुछ शून्य फिजाओं के बीच आत्मसम्मान के लिए क्षुब्ध हो जाएंगे। उम्मीदवारों के चयन में ताजगी का दम भरती भाजपा ने कांग्रेस से दो विधायक छीनकर अपने ही युवा वर्ग की महत्त्वाकांक्षा को कहीं सुन्न कर लिया या सत्ता में कुछ विधायकों के दीये बुझने लगे हैं। ऐसे में कांग्रेस द्वारा नेताओं का खोना बड़ा मुद्दा होगा या आगामी सत्ता के इंतजार में भाजपा के नक्शे पर गैर भाजपाई नेताओं का आगमन सारी करवटें बदल देगा। आखिर राजनीति में आत्मसम्मान खलल डाल रहा है या ऐसे नुकसान से कांग्रेस के चुनावी अभियान को ठेस लगेगी। बहरहाल कांग्रेस प्रवक्ता एवं कोषाध्यक्ष डा. राजेश शर्मा ने आत्मसम्मान की राजनीति में कांगड़ा के परिप्रेक्ष्य में एयरपोर्ट विस्तार, केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना, फोरलेन परियोजनाओं के भविष्य के प्रश्न उठा दिए हैं। ये विषय महंगाई, बेरोजगारी व कुशासन पर राजनीतिक विरोध के अलावा ऐसे सम्मान को जागृत कर रहे हैं, जो इतिहास के फलक पर हिमाचल में कई क्षेत्रवाद पैदा कर देते हैं।
यह विपक्ष में रहने की पंचवर्षीय भरपाई है, जो वर्तमान सत्ता से पूछ रही है कि कांगड़ा हवाई पट्टी विस्तार पर सरकार के फर्ज और राज्य प्राथमिकता के लफ्ज को पिछले सालों में इतना कमजोर क्यों करते रहे। कुछ यही पूछताछ शिमला-कांगड़ा और पठानकोट-मंडी फोरलेन परियोजनाओं से भी हो रही है। कांगड़ा के आत्मसम्मान पर कीलें ठोंक कर जिस तरह केंद्रीय विश्वविद्यालय के अस्तित्व को ही जल्लाद बना दिया, उसके आगे तो तमाम शिक्षाविद भी पानी भरते नजर आते हैं। कागजों पर विश्वविद्यालय के रेखाचित्र खींचते हुए कई नेता देखे गए, लेकिन हकीकत में शिक्षा की ऐसी कतरब्यौंत पूरे देश ने नहीं देखी होगी। जिस राजनीतिक आत्मसम्मान की आरी से केंद्रीय विश्वविद्यालय के टुकड़े हुए, वहां शिक्षा का रक्तरंजित इतिहास और क्या होगा कि क्लास रूम खड़े किए बिना यह संस्थान नियुक्तियों के कई समारोह खड़े कर गया। बहरहाल इसी दौर में जनता ने कई स्कूलों को स्तरोन्नत और कहीं नए कालेजों को जन्म लेते जरूर देखा, लेकिन केंद्रीय विश्वविद्यालय से पहले मंडी में उगते विश्वविद्यालय और मेडिकल यूनिवर्सिटी को जरूर मजबूत होते देख लिया। ऐसे क्षेत्रीय आत्मसम्मान की कसौटियां कांगड़ा को तो दगा दे गईं, लेकिन मंडी की बाहों में चुनावी आत्मसम्मान का दरिया भर गईं।
फिर सत्ता के खाते कहीं ढोल-नगाड़े बनकर गूंजे, तो कहीं नए संघर्ष के रास्ते पर अपना ही राज्य खाली नजर आया। ऐसे में एक मुकाबला अगर केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाम मंडी विश्वविद्यालय या कांगड़ा एयरपोर्ट बनाम मंडी एयरपोर्ट हो गया, तो डा. राजेश शर्मा के हालिया बयान सिरदर्द बन सकते हैं। सत्ता के अपने आकर्षण व मोह माया है, जो कई नेताओं को सरकार के हृदय सम्राट बना रही है, लेकिन ये विशेषाधिकार प्राप्त लोग अधिकतम एक या डेढ़ दर्जन चुनाव हलकों तक ही अपने-अपने सम्मान की रक्षा कर रहे हैं। खैर सरकार के चुनावी जहाजों को उतारने के लिए सत्ता के अपने मंच रहे हैं और इन्हीं से शिमला-दिल्ली की विमान सेवा शुरू हो रही है, जो कल शिमला से कुल्लू और कांगड़ा के लिए भी उड़ेगी, तो बांछें खिलाने के लिए भरसक प्रयास होगा।
Rani Sahu

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