सम्पादकीय

प्रदेश में स्वरोजगार सृजन समय की मांग

Rani Sahu
27 Feb 2022 7:02 PM GMT
प्रदेश में स्वरोजगार सृजन समय की मांग
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एक समय था, जब युवा पढ़-लिख कर सरकारी क्षेत्र में ही रोज़गार के अवसर तलाशते थे

एक समय था, जब युवा पढ़-लिख कर सरकारी क्षेत्र में ही रोज़गार के अवसर तलाशते थे, क्योंकि निजी क्षेत्र में अवसर कम थे व सरकारी नौकरी प्राप्त करना एक सम्मान की बात होती थी। धीरे-धीरे सरकारी रोज़गार के अवसर कम होते गए व प्रतिस्पर्धा बढ़ती गई। आज भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, बहु-तकनीकी संस्थानों, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों व निजी क्षेत्र के प्रशिक्षण संस्थानों में ऐसे अनेक व्यवसायों में प्रशिक्षण दिया जाता है, जिनके लिए आगे चलकर या तो निजी क्षेत्र में ही जगह है अथवा प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वयं का उद्यम स्थापित किया जा सकता है। सरकारी क्षेत्र में इन व्यवसायों में प्रशिक्षण प्राप्त कर नौकरी नहीं पाई जा सकती। गत 7-8 सालों में युवाओं का निजी क्षेत्र में अथवा स्वरोज़गार स्थापित करने के प्रति रुझान बढ़ा है। आई.आई.टी जैसे शीर्ष संस्थानों से पढ़कर युवा ''स्टार्ट-अप'' शुरू करने में दिलचस्पी ले रहे हैं। आज भारत में 80 से अधिक ''यूनिकॉर्न'' स्टार्ट-अप शुरू हो चुके हैं। ''यूनिकॉर्न'' ऐसी स्टार्ट-अप कम्पनियां होती हैं, जिनका मूल्य एक बिलियन डॉलर से अधिक होता है। स्वरोज़गार के प्रति युवाओं को आकर्षित करना सरकार की मजबूरी भी कही जा सकती है, क्योंकि सभी पढ़े-लिखे युवाओं को सरकारी नौकरियां प्रदान नहीं की जा सकती। पढ़-लिख कर अपना ''स्टार्ट-अप'' शुरू करने के प्रति भी युवाओं की दिलचस्पी बढ़ रही है।

संविधान में सरकार को एक परोपकारी राज्य की संज्ञा दी गई है, जिसका मुख्य उद्देश्य अपने नागरिकों के हित के बारे में सोचना है। सरकार भी इस बात से भली-भांति परिचित है कि यदि युवाओं में बेरोज़गारी की समस्या को दूर करना है तो उन्हें उनकी शैक्षणिक योग्यतानुसार स्वरोज़गार की ओर प्रेरित किया जाए, जिससे एक तरफ वे स्वयं कमाई कर सकेंगे, साथ ही अपने उद्यम में और लोगों को भी रोज़गार दे सकेंगे। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए केन्द्र व राज्य सरकारों ने स्वरोज़गार को प्रेरित करने वाली कई योजनाएं चलाई हैं। हिमाचल सरकार की ''मुख्यमंत्री स्वावलंबन योजना'' इस समय प्रदेश में स्वरोज़गार को प्रोत्साहित करने वाली सबसे अग्रणी योजना है, जिसके लिए इस वर्ष 100 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। अब तक 3450 से अधिक परियोजनाएं इस योजना के माध्यम से प्रदेश में स्थापित की जा चुकी हैं।
इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री ''स्टार्ट-अप'' योजना भी उल्लेखनीय है, जिसके माध्यम से हिमाचल के शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ रहे युवाओं को जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से अपना ''स्टार्ट-अप'' शुरू करने के लिए प्रेरित किया जाता है व समुचित आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है। केन्द्र सरकार द्वारा चलाई जा रही स्वरोज़गारोन्मुख योजनाओं में ''प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम'' सर्वोपरि है, जो कि वर्ष 2008 से चल रहा है। अब तक पूरे देश में इस योजना के अंतर्गत लगभग 7.50 लाख उद्यम स्थापित हो चुके हैं व तकरीबन 61 लाख युवा अपना कार्य कर रहे हैं। सरकार द्वारा सहायता के रूप में इन उद्यमों को स्थापित करने के लिए लगभग 19 हजार करोड़ रुपए की सहायता भी प्रदान की गई है। इसके अतिरिक्त केन्द्र द्वारा प्रायोजित अन्य स्वरोज़गार योजनाओं में ''राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन'', ''प्रधानमंत्री मुद्रा योजना'', ''प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना'', ''दीन दयाल अंत्योदय योजना'' तथा ''स्टैंड-अप इण्डिया'' योजना प्रमुख हैं। गत वर्षों में देश-भर के उन युवाओं ने, जो कि पढ़-लिख कर अपना स्वरोज़गार शुरू करना चाहते हैं, इन योजनाओं का लाभ उठाया है। ये सभी योजनाएं बैंकों के माध्यम से क्रियान्वित की जाती हैं। ऋण स्वीकृत होने के पश्चात ही सरकार द्वारा उद्यम को अनुदान प्रदान किया जाता है। इस बात से यह स्पष्ट है कि देश में स्वरोज़गार को बढ़ावा देने में बैंकों की भूमिका बहुत अहम है। परंतु यह देखा गया है कि इन प्रथम पीढ़ी के उद्यमियों को जब बैंकों द्वारा ऋण स्वीकृति की बात आती है तो बैंको का दृष्टिकोण बहुत सकारात्मक नहीं रहता।
सतही आपत्तियां लगाकर इन प्रकरणों को अस्वीकृत कर दिया जाता है। इन आपत्तियों में प्रमुख हैं- परियोजना व्यावहारिक नहीं है, प्रकरण अस्वीकृत किया जाता है, उद्यमी ऋण लेने के लिए इच्छुक नहीं है, प्रकरण बैंक शाखा के सेवा क्षेत्र से बाहर पड़ता है, उद्यमी का पता नहीं मिल रहा है, परियोजना रिपोर्ट अधूरी है, योजना के अंतर्गत तय किए गए लक्ष्य प्राप्त कर लिए गए हैं तथा प्रकरण के साथ संलग्न प्रपत्र स्पष्ट नहीं है, आदि। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये उद्यमी जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात पहली बार अपना उद्यम शुरू करना चाहते हैं, उनके मन में उत्सुकता भी होती है व उद्यम की सफलता के प्रति कुछ आशंका भी। यदि सरकारी एजेंसियों और ख़ासकर बैंकों का रवैया इनके प्रति सहयोग पूर्ण रहे तो निश्चय ही ये अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल हो सकते हैं, अन्यथा हतोत्साहित होकर कई बार असामाजिक कृत्यों की ओर भी अग्रसर हो जाते हैं। हाल ही में दिनांक 21.02.2022 को हरियाणा के पंचकूला में सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्यम मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एजेंसी ''खादी ग्रामोद्योग आयोग'' द्वारा ''प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम'' पर उत्तरी राज्यों की एक आंचलिक समीक्षा बैठक रखी गई थी, जिसमें बैंकों के इस प्रकार के नकारात्मक रवैये पर भी चिंता प्रकट की गई। हिमाचल के ऋण-जमा अनुपात की यदि राष्ट्रीय ऋण-जमा अनुपात के साथ तुलना की जाए तो यह काफी कम है। बैंक यदि व्यावहारिक ऋण प्रकरणों को स्वीकृत करने में उदारता दिखाएं तो निश्चय ही इस अनुपात में भी वृद्धि हो सकती है तथा देश में स्वरोज़गार के माध्यम से ''आत्मनिर्भर भारत'' की परिकल्पना को बल मिल सकता है।
संजय शर्मा
लेखक शिमला से हैं
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