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- राजद्रोह कानून रद हो
अंग्रेजों के बनाए हुए 152 साल पुराने राजद्रोह कानून की शामत आ चुकी है। सर्वोच्च न्यायालय ने उसे पूरी तरह से अवैध घोषित नहीं किया है, लेकिन वैसा करने के पहले उसने केंद्र सरकार को कहा है कि 10 जून तक वह यह बताए कि उसमें वह क्या-क्या सुधार करना चाहती है। दूसरे शब्दों में सरकार भी सहमत है कि राजद्रोह का यह कानून अनुचित और असामयिक है। यदि सरकार की यह मंशा प्रकट नहीं होती तो अदालत इस कानून को रद्द ही घोषित कर देती। फिलहाल अदालत ने इस कानून को स्थगित करने का निर्देश जारी किया है। अंग्रेजों ने यह कानून 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के तीन साल बाद बना दिया था। यह कानून भारत की दंड सहिता की धारा 124-ए में वर्णित है। इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को यदि अंग्रेज सरकार के खिलाफ बोलते या लिखते हुए, आंदोलन या प्रदर्शन करते हुए, देश की शांति और व्यवस्था को भंग करते पाया गया तो उसे तत्काल गिरफ्तार किया जा सकता है। उसे जमानत पर छूटने का अधिकार भी नहीं होगा और उसे आजन्म कारावास भी मिल सकता है। इस कानून का दुरुपयोग अंग्रेज सरकार ने किस-किसके खिलाफ नहीं किया? यदि भगत सिंह के खिलाफ किया गया तो महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरु ने भी इसी कानून के तहत जेल काटी। आजादी के बाद भी यह कानून जारी रहा। इंदिरा गांधी के राज में इसे और भी सख्त बना दिया गया। किसी भी नागरिक को अब राजद्रोह के अपराध में वारंट के बिना भी जेल में सड़ाया जा सकता है। ऐसे सैकड़ों लोगों को सभी सरकारों ने वक्त-बेवक्त गिरफ्तार किया है जिन्हें वे अपना विरोधी समझती थीं। किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की आलोचना या निंदा क्या राजद्रोह कहलाएगी? देश में चलने वाले शांतिपूर्ण और अहिंसक आंदोलन के कई नेताओं को राजद्रोह का अपराधी घोषित करके जेल में डाला गया है। कई पत्रकार भी इस कानून के शिकार हुए जैसे विनोद दुआ, सिद्दीक़ कप्पन और अमन चोपड़ा। अब राजद्रोह कानून को रद करना होगा।