सम्पादकीय

देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार! क्या राजनेताओं के खिलाफ आलोचनात्मक पोस्ट लिखने वालों पर अब नहीं लगेगी धारा?

Gulabi Jagat
10 May 2022 6:04 AM GMT
देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार! क्या राजनेताओं के खिलाफ आलोचनात्मक पोस्ट लिखने वालों पर अब नहीं लगेगी धारा?
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देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार
अशोक बागड़िया |
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को सूचित किया है कि उसने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए (देशद्रोह) के प्रावधानों (Sedition Law) पर पुनर्विचार और पुन: जांच करने का फैसला किया है. इसलिए सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से गुजारिश की है कि वो देशद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई तब तक न करे जब तक कि सरकार इस पर पुनर्विचार कर रही है. सोमवार को गृह मंत्रालय (Home Ministry) के अतिरिक्त सचिव ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है.
इस हलफनामें में केंद्र ने कहा, " राजद्रोह के विषय पर व्यक्त किए जा रहे विभिन्न विचारों से भारत सरकार पूरी तरह वाकिफ है और नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार को लेकर व्यक्त किए जा रहे चिंताओं पर भी विचार कर रही है. इस महान राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध होने के बावजूद भारत सरकार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला लिया है. यह पुनर्विचार और जांच केवल एक सक्षम मंच के समक्ष ही किया जा सकता है."
हलफनामे में कहा गया है, "पहले कही गई बातों के मद्देनजर न्यायालय से सम्मानपूर्वक प्रार्थना की जाती है कि यह अदालत एक बार फिर से धारा 124 ए की वैधता की जांच करने में समय नहीं लगाए. भारत सरकार द्वारा संवैधानिक रूप से प्रदत्त अनुमति के आधार पर एक उपयुक्त मंच के समक्ष पुनर्विचार की प्रक्रिया के नतीजों की प्रतीक्षा करने की कृपा कर सकती है."
सरकार ने इसको एक 'अच्छा कानून' बताते हुए बचाव किया था
हलफनामे में यह भी कहा गया है, "प्रधानमंत्री इस विषय पर व्यक्त किए गए विभिन्न विचारों से अवगत रहे हैं. समय-समय पर विभिन्न मंचों से नागरिक स्वतंत्रता के संरक्षण, मानवाधिकारों के सम्मान और देश के लोगों द्वारा संवैधानिक रूप से पोषित स्वतंत्रता का मतलब बताते हुए अपने स्पष्ट और साफ विचार व्यक्त किए हैं. उन्होंने बार-बार कहा है कि भारत की कई ताकतों में से एक विविध विचार धाराएं हैं जो हमारे देश में खूबसूरती से पनपती हैं. माननीय प्रधान मंत्री का मानना है कि ऐसे समय में जब हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, (आजादी के 75 साल बाद) तो हमें एक राष्ट्र के रूप में और भी अधिक मेहनत करने की जरूरत है ताकि हम औपनिवेशिक बोझ को उतार सकें, खासकर पुराने औपनिवेशिक कानून और प्रथाएं जिनकी उपयोगिता अब समाप्त हो चुकी है.
यह दूसरा हलफनामा है जो इस मामले में सरकार द्वारा दायर किया गया है. और ये हलफनामा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देशद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने से ठीक एक दिन पहले आया है. दिलचस्प बात यह है कि इस हलफनामा से दो दिन पहले सरकार ने एक और हलफनामा दायर किया था. दो दिन पहले दायर किए गए हलफनामें में सरकार ने कानून को एक 'अच्छा कानून' बताते हुए बचाव किया था. शनिवार (7 मई) को दायर अपने हलफनामे में भारत सरकार ने कहा था कि राजद्रोह पर कानून एक अच्छा कानून है और कानून को रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं है. इतना ही नहीं, हलफनामें में यह भी कहा गया कि राजद्रोह कानून की वैधता पर पुनर्विचार का आधार यह नहीं हो सकता है कि राजद्रोह कानून का दुरुपयोग हो रहा है.
7 मई के हलफनामे में यह दलील दी गई थी कि "प्रावधान के दुरुपयोग के एक-आध मिसाल इस कानून के पुनर्विचार के लिए आधार नहीं हो सकते हैं. संवैधानिक बेंच द्वारा घोषित लगभग छह दशक के लंबे समय से स्थापित कानून पर संदेह करने के बजाय मामला-दर-मामला आधार पर इस तरह के दुरुपयोग को रोकने के उपाय तलाशे जाने चाहिए." गौरतलब है कि सरकार द्वारा कानून के दुरुपयोग के बढ़ते मामलों की पृष्ठभूमि में सुप्रीम कोर्ट में कानून की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दायर की गई हैं.
आलोचनात्मक पोस्ट लिखने पर भी दर्ज हुए देशद्रोह के मामले
सुप्रीम कोर्ट में ये याचिकाएं उन लोगों द्वारा दायर की गई हैं जिन पर देशद्रोह के आरोप में मामला दर्ज किया गया है. इसके अलावे एडिटर्स गिल्ड और मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले गैर-लाभकारी संगठनों ने भी इस मुद्दे पर याचिका दायर किया है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान राज्य सरकारों द्वारा पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, छात्रों और राजनेताओं पर देशद्रोह के मामले दर्ज किए जाने के मामले बढ़े हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्रियों और राजनेताओं के खिलाफ आलोचनात्मक पोस्ट लिखने पर लोगों के खिलाफ देशद्रोह के आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने भी कानून के दुरुपयोग पर अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि देशद्रोह पर कानून का दायरा इतना व्यापक है और पुलिस द्वारा इसका दुरुपयोग इतना घिनौना है कि यहां तक कि ताश खेलने या जुआ खेलने वाले लोगों पर भी राजद्रोह का मामला दर्ज किया जा रहा है. भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने आगे कहा, "यदि आप इस कानून के इतिहास को देखते हैं तो सजा की दर बहुत कम है लेकिन इसके शक्ति का भारी दुरुपयोग हो रहा है… यह एक बढ़ई को दिए गए आरी की तरह है जिसे काटना तो लकड़ी है लेकिन वो जंगल ही काटने लग पड़ता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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