सम्पादकीय

सुरक्षा ही बधाई

Gulabi
1 Jan 2022 5:24 AM GMT
सुरक्षा ही बधाई
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वाकई नया साल हम ऐसे माहौल में मना रहे हैं जब एक बार फिर कोरोना महामारी की लहर की आशंका बनी है
वाकई नया साल हम ऐसे माहौल में मना रहे हैं जब एक बार फिर कोरोना महामारी की लहर की आशंका बनी है। नये कोरोना वेरिएंट के खतरे से पूरी दुनिया सहमी है। देखते ही देखते ओमीक्रोन ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया, जिसके बारे में ठीक-ठीक जानकारी हमारे पास नहीं है। लेकिन जीवन जीवटता का पर्याय है। भारत जैसे विकासशील देश ने जैसे आत्मनिर्भरता का परचम लहराते हुए देश में विकसित व निर्मित टीके से एक अरब से अधिक लोगों को टीका लगाकर कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी, उसकी दूसरी मिसाल नहीं है। दरअसल, नया साल हमारी सोच का पर्याय है। सकारात्मक दृष्टिकोण व जीवटता के जज्बे से हम हर दिन को नया बना सकते हैं। यह बहस का मुद्दा नहीं है कि यह नववर्ष परंपरागत नववर्ष नहीं है। जीवन का उल्लास जब सारी दुनिया मिलकर अभिव्यक्त करती है तो खुशी कई गुना बढ़ जाती है। यह चुनौती का समय है। जब तक नये वेरिएंट की वैक्सीन को लेकर पर्याप्त जानकारी वैज्ञानिकों के पास नहीं है, तब तक बचाव ही कारगर वैक्सीन है। हमने पहली व दूसरी लहर में बहुत कुछ खोया है। आज उसके सबकों से सीख लेकर आगे जीवन तय करने का वक्त है। इस दौर में जहां मुसीबतों को अवसर में बदलने वाले लोग सामने आये तो मानवता का उदात्त रूप भी सामने आया। प्रवासी श्रमिकों के लिये रात-दिन चलने वाले लंगर व मदद को उठे हाथ मानवता पर विश्वास को और पुख्ता कर गये। यह चुनौती का समय वंचित समाज की मदद को आगे आने का है। सर्वकल्याण की भावना ही हमारे नये साल के संकल्प का आधार होना चाहिए। सही मायनों में दुख बांटने से जो असीम सुख हासिल होता है, वही नये साल के पर्व का मर्म भी है। कोरोना संकट ने बताया भी है कि दुनिया का कोई देश यदि वैक्सीन या दवाइयों से वंचित रह जाता है तो परिवर्तित वेरिएंट दुनिया में फिर कहर बरपा सकता है।
निस्संदेह, नया साल एक मानक ही है, जीवन में बदलाव लाने का। हम नये साल पर कुछ अच्छा करने का संकल्प लेते हैं। अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करते हैं। कोशिश करते हैं कि नये साल में किसी बुरी आदत को छोड़कर अच्छी आदत को डालें। कोरोना संकट ने मानवता को बड़े सबक दिये हैं। दवाओं व ऑक्सीजन की कालाबाजारी से लेकर मरीजों को उलटे उस्तरे से मूंडने वाले अस्पतालों की कलई खुली है। मौके का चौका लगाने वालों की भी कमी नहीं होती। लेकिन समाज में फिर भी सकारात्मक सोच वाले मदद को उठे हाथ ज्यादा हैं। इस सामूहिक सोच को समाज की ताकत बनाने की जरूरत है। आर्थिक व भौतिक समृद्धि तभी सार्थक है जब हम महात्मा गांधी के ट्रस्टीशिप के विचार को मूर्त रूप दें। अपने पर्याप्त संसाधनों से जरूरतमंदों की मदद करें। कोरोना संकट में हमारे चिकित्सा तंत्र की जो तमाम खामियां सामने आई हैं, उनको दूर करने का संकल्प हम इस नये साल में लें। गरीब आदमी को सस्ता व कारगर उपचार उपलब्ध हो, इसके लिये सामुदायिक पहल हो। समाज के पीयूष जैनों को धन तहखानों में छिपाने के बजाय मानवता के कल्याण के लिये लगाने की जरूरत है। धन एक सीमा तक तो उपयोगी होता है, उसके बाद तो वह महज गिनती ही है। जो व्यक्ति व समाज की मुश्किलें बढ़ाता है। कहते हैं कि कुदरत ने हर हाथ व पेट के लिये व्यवस्था की है। कमी है तो मनुष्य के लालच की, जो दूसरों का हक मारकर बैठ जाता है। देश में वैश्वीकरण व उदारीकरण के दौर में आर्थिक असमानता का जो दौर शुरू हुआ है, उसने अमीर-गरीब की खाई को बढ़ाया ही है। नया साल हो या कोई पर्व- ये सामूहिकता के कल्याण के भाव पर केंद्रित होता है। समूह के उल्लास में अपना उल्लास तलाशना। यदि हम समाज के बड़े तबके में ऐसी सोच विकसित कर पाते हैं तो हमारा नया साल मनाना सार्थक होगा। सजगता व सतर्कता से यदि देश, समाज, घर-परिवार में महामारी की छाया दूर रहेगी, तो नये साल मनाने के अवसर बार-बार आएंगे।
दैनिक ट्रिब्यून
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