सम्पादकीय

पांच की ही सुरक्षा परिषद

Rani Sahu
12 Sep 2023 6:58 PM GMT
पांच की ही सुरक्षा परिषद
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By: divyahimachal
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का आकार और ‘वीटो’ एकाधिकार आज भी वही है, जो करीब आठ दशक पहले था। प्रधानमंत्री मोदी ने जी-20 के मंच से एक बार फिर इसके सुधारों और विस्तार का मुद्दा उठाया था। अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों, जापान के प्रधानमंत्री किशिदा और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक सरीखे विश्व-नेताओं ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया है। पैरवी और आग्रह भी किए गए हैं। यह समर्थन बीते कुछ वर्षों के दौरान निरंतर रहा है, लेकिन चीन भारत की सदस्यता के खिलाफ आक्रामक रहा है। चीन भूलता रहा है कि वह सुरक्षा परिषद में ‘वीटो’ अधिकार वाला स्थायी सदस्य है, तो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की ‘कृपा’ अथवा ऐतिहासिक गलती के कारण है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुतेरेस भी जी-20 सम्मेलन के दौरान उपस्थित थे, लेकिन उन्होंने बदलती विश्व-व्यवस्था के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद में सुधारों और विस्तार की बात नहीं की। 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया था, ताकि देशों के बीच आपसी शांति, स्थिरता और सह-अस्तित्व का स्थायी भाव बरकरार रहे और युद्ध को नेपथ्य में धकेला जा सके। तब से लेकर आज तक कमोबेश सुरक्षा परिषद के पांच वीटोधारी देशों-अमरीका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन-में न तो कोई सुधार किया गया है और न ही यह संख्या बढ़ाई जा सकी है। अलबत्ता 1965 में इतना विस्तार जरूर किया गया कि गैर-स्थायी सदस्यों की संख्या 10 कर दी गई। वे बारी-बारी से सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य बनाए जा सकते हैं।
भारत भी इन देशों में शामिल है। रूस को सोवियत संघ के विघटन के बाद उसकी जगह स्थायी सदस्यता, वीटो समेत, दी गई। बहरहाल स्थायी सदस्य अपने ‘वीटो’ का दुरुपयोग भी करते रहे हैं। भारत के संदर्भ में चीन ‘अड़ंगेबाज’ बना रहा है, क्योंकि वह अमरीका और भारत के आतंकवाद-विरोधी प्रस्तावों पर ‘वीटो’ कर मसूद अजहर सरीखे खूंखार आतंकियों और इनसानियत के कातिलों को बचाता रहा है। इस तरह चीन अपने ‘कर्जदार दोस्त’ पाकिस्तान की किरकिरी से उसे बचाता रहा है। दरअसल संयुक्त राष्ट्र और सुरक्षा परिषद में सुधारों को पारित करना ही टेढ़ी खीर है। सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र चार्टर में संशोधन के लिए दो-तिहाई सदस्य-देश संशोधन के पक्ष में वोट करें। अनिवार्य यह है कि इस प्रक्रिया में सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी, वीटोधारी सदस्यों की उपस्थिति भी जरूरी है। उनके बिना कोई भी संशोधन और प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में पारित नहीं किया जा सकता। बीते कुछ सालों में सुधारों के पैरोकार देशों की मांग बुलंद हुई है। इस समूह में भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान शामिल हैं। समूह को ‘जी-4’ का नाम दिया गया है।
जापान, जर्मनी, भारत तो विश्व की सबसे बड़ी तीसरी, चौथी और 5वीं अर्थव्यवस्थाएं हैं। उनकी स्थायी भागीदारी को सुरक्षा परिषद में कैसे रोका जाता रहा है? आम सहमति के लिए इन देशों के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी देशों-पाकिस्तान, इटली, अर्जेन्टीना और दक्षिण कोरिया और अफ्रीकी संघ-की आवाज भी मिलाई गई है। हालांकि जी-4 के देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के पक्षधर हैं, जबकि आम सहमति के लिए जुड़े देश चाहते हैं कि गैर-स्थायी सदस्यों की सीटें बढ़ाई जाएं। अफ्रीकी संघ चाहता है कि दो अफ्रीकी सीटें स्थायी रखी जाएं और उन्हें ‘वीटो’ अधिकार भी दिया जाए। चीन समूचा खेल बिगाड़ता रहा है, क्योंकि वह पाकिस्तान, इटली वाले ‘आम सहमति के लिए जुड़े’ देशों के साथ है। चीन भारत और जापान को स्थायी सदस्य बनाए जाने के खिलाफ है। बहरहाल सुरक्षा परिषद को मौजूदा हालात और विश्व-व्यवस्था में प्रासंगिक बने रहना है, तो सुधारों और विस्तार की पहल करनी ही पड़ेगी। इस मसले पर गुटबाजी नहीं होनी चाहिए।
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