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अफगानिस्तान की अस्थिरता से दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में शांति एवं स्थिरता के लिए नयी चुनौतियां पैदा
अफगानिस्तान की अस्थिरता से दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में शांति एवं स्थिरता के लिए नयी चुनौतियां पैदा हो गयी हैं. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उचित ही कहा है कि सुरक्षा की दृष्टि से भारत के समक्ष भी नयी परिस्थिति है. भारत सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करने के प्रयास में है कि वर्तमान अस्थिरता का लाभ उठाकर सीमापार से भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने की हरकतें न हों. बीते सात दशक से अधिक समय से पाकिस्तान अलगाववाद और आतंकवाद के सहारे भारत को अस्थिर करने में लगा हुआ है.
जैसा कि रक्षा मंत्री ने रेखांकित किया है, 1965 और 1971 के युद्धों में बुरी तरह पराजित होने के बाद पाकिस्तान को यह ठीक से समझ में आ गया था कि वह सैन्य शक्ति में भारत का सामना नहीं कर सकता है, इसीलिए उसने 'हजार घाव देने की नीति अपनायी. इस प्रकार आतंकवाद उसकी रक्षा और विदेश नीति का अभिन्न अंग बन गया है. अफगानिस्तान में दशकों से चली आ रही चरमपंथी और आतंकी हिंसा में भी उसका बड़ा योगदान रहा है.
चाहे तालिबान हो, अल-कायदा हो या हक्कानी नेटवर्क हो या फिर अलग-अलग नामों के साथ मध्य एशिया और दक्षिण एशिया के देशों में सक्रिय गिरोह हों, हर किसी को पाकिस्तानी सरकार और सेना का समर्थन एवं प्रश्रय प्राप्त है. अफगानिस्तान में कुछ वर्षों से आतंकी हमलों में शामिल इस्लामिक स्टेट खुरासान के तार भी पाकिस्तान से जुड़े हैं. भारत के चिंतित होने की एक बड़ी वजह यह है कि कश्मीर और देश के अन्य हिस्सों में वारदात करनेवाले आतंकी गुट सीधे तौर पर पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ के जरिये अफगानिस्तान के अलग-अलग गुटों से संबद्ध हैं.
ऐसे में यह आशंका निराधार नहीं है कि नये सिरे से भारत में आतंकी हमलों का सिलसिला शुरू हो. हालांकि तालिबान की ओर से यह बार-बार कहा गया है कि वे किसी को भी अफगान धरती का इस्तेमाल दूसरे देशों के विरुद्ध नहीं करने देंगे. अतीत को देखते हुए तालिबान के आश्वासनों पर कतई भरोसा नहीं किया जा सकता है और हमें उसकी कथनी व करनी के मेल को जानने के लिए कुछ इंतजार करना होगा. लेकिन पाकिस्तान को लेकर हमें कोई भ्रम न है और न ही होना चाहिए.
उसके नेताओं और सैन्य अधिकारियों के हालिया बयानों से भी इंगित होता है कि उनका रवैया पहले जैसा ही रहेगा. युद्धविराम के बाद कुछ समय से पाकिस्तान भारत-पाक सीमा या नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी नहीं कर रहा है. इसका कारण यह है कि उड़ी हमले के बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद हुए बालाकोट हवाई हमले से उसे समझ में आ गया है कि भारत अब अधिक आक्रामक कार्रवाई कर सकता है. वर्तमान परिस्थितियों में भारत सतर्क रहने के साथ घटनाक्रम पर नजर बनाये है और भविष्य की चुनौतियों के लिए हमारा रक्षा तंत्र तैयार है.
क्रेडिट बाय प्रभात खबर
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