सम्पादकीय

फैसला वापसी का राज़

Gulabi
2 April 2021 4:56 PM GMT
फैसला वापसी का राज़
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इस सिलसिले में इस बात का उल्लेख जरूर किया जाना चाहिए

मोदी सरकार अपने कदम वापस नहीं लेती- इस छवि के विपरीत जाते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में भारी कटौती का अपना फैसला वापस ले लिया। हैरतअंगेज यह है कि इसे सीधे इसी रूप में पेश करने के बजाय वित्त मंत्री ने पहले घोषित फैसले को निगरानी के अभाव में लिया गया निर्णय करार दिया। बहरहाल, ये बात किसी से नहीं छिपी है कि इस मामले में सरकार ने इतनी संवेदनशीलता इसलिए दिखाई कि इससे प्रभावित तबका वो है, जो 'नरेंद्र मोदी परिघटना' का बुनियादी आधार है। उसके विरोध को नजरअंदाज करना सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनावी रूप से नुकसानदेह साबित हो सकता था। उसकी चुनावी गणना में ये तबके की नाराजगी वैसी नहीं है, जैसी अब लगभग छह महीने से आंदोलन चला रहे किसानों की है। इस सिलसिले में इस बात का उल्लेख जरूर किया जाना चाहिए कि बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कटौती कोई एकबारगी लिया गया फैसला नहीं था।


यह नीतिगत ट्रेंड है, जो वर्षों से जारी है। इस नीति का असर यह हुआ है कि बैंकों या डाक घर की बचत योजनाओं में पैसा रखना अब घाटे का सौदा हो गया है। जब मुद्रास्फीति दर लगभग छह फीसदी के करीब है, और अभी भी ज्यादातर योजनाओं पर इससे कम दर से ब्याज मिल रहा हो, तो उसका असल मतलब यह होता है कि आपका पैसा हर महीने अपने मूल्य में घट रहा है। या आप इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि दरअसल आप बैंकों- डाकघर को अपना पैसा रखने की फीस दे रहे हैँ। अगर ताजा फैसला वापस नहीं होता, तो ऐसा होने की दर और बढ़ जाती। अगर सरकार की अघोषित नीति देखें तो इसका यह अर्थ भी है कि सरकार चाहती है कि ऐसी योजनाओं में पैसा रखने के बजाय लोग शेयर मार्केट में सीधे या मुचुअल फंड्स के जरिए निवेश करें। ये नीति मोदी सरकार की कुल पॉलिटकल इकॉनमी का अभिन्न अंग है। इसलिए ताजा फैसला वापस होने से मोदी सरकार के समर्थक तबकों का समर्थन भले और पुख्ता हो जाए, लेकिन बैंकों में उनके जमा धन से उनके भविष्य की सुरक्षा की उम्मीदें पूरी नहीं होंगी। और वे इस बात को लेकर भी निश्चिंत नहीं हो सकते कि ये फैसला आखिरी है। पांच राज्यों के चुनाव के बाद सरकार ने जो 'गलती' की थी, उसे फिर नहीं दोहरा देगी, इस बात की कोई गारंटी नहीं है।


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