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एक फिल्मी गीत है- पतझड़ सावन बसंत बहार, एक बरस के मौसम चार, पांचवां मौसम प्यार का, इंतजार का
कुमार विनोद : एक फिल्मी गीत है- पतझड़ सावन बसंत बहार, एक बरस के मौसम चार, पांचवां मौसम प्यार का, इंतजार का! लगता है कि गीतकार ने छठे, सातवें आदि मौसमों का चुनाव श्रोताओं की पसंद पर छोड़ दिया है। किसी नेता से पूछिए तो वह इस सूची में चुनावी मौसम को जरूर शामिल करवाना चाहेगा, ताकि जहां मन हो या मलाई हो, वहां ट्रांसफर हुआ जा सके। वैसे अब वह चुनाव बाद भी अपने ट्रांसफर का जुगाड़ कर लेते हैं। उनकी चले तो वे पालाबदल को भी तबादला नाम देना पंसद करें।
मलाईदार पद का सुख भोग रहा कर्मचारी नहीं चाहता आए तबादलों का मौसम
जहां तक सरकारी कर्मचारियों का ताल्लुक है, उनके लिए तबादलों के मौसम से बढ़कर खट्टा-मीठा अन्य कौन सा मौसम होगा? जिस तरह निर्वाचित विधायक अथवा सांसद नहीं चाहता कि मध्यावधि चुनाव की नौबत आए, उसी तरह मलाईदार पद का सुख भोग रहा कर्मचारी भी नहीं चाहता कि तबादलों का मौसम आए, भले ही मानसून कुछ लेट हो जाए या जल्दी आ जाए। इसके विपरीत किसी सूखे पद पर कांटे की तरह सूख रहा कर्मचारी सपने में भी तबादला सूची में अपना नाम मनचाही पोस्टिंग के साथ सबसे ऊपर उसी तरह देखता है, जिस तरह चुनाव में हारा हुआ प्रत्याशी अगले चुनाव में अपने जीतने की कामना करता है या फिर दूसरे दल में अपने लिए मलाई देखता है।
आंधी के मौसम में ही तबादलों की आंधी आती है
आमतौर पर तबादलों का मौसम सरकार बदलते ही या फिर गर्मियों के जोर पकड़ते ही शुरू हो जाता है और मानसून के आगमन तक जारी रहता है। दरअसल आंधी के मौसम में ही तबादलों की आंधी आती है। इस मौसम में चलने वाली तबादलों की आंधी में जोड़-तोड़ के गुणों से युक्त वही भद्रजन रूपी पेड़ मनचाहे स्थान पर कायम रह पाते हैं, जिनकी जड़ें दूर सत्ता के गलियारों या फिर साहब के बंगलों तक फैली होती हैं अथवा जो पत्र-पुष्प का आदान-प्रदान करने में निपुण होते हैं।
तबादलों के मौसम में कर्मचारी एक दूसरे से पूछते हैं- लिस्ट आ गई क्या?
तबादलों के मौसम में कर्मचारियों के स्वास्थ्य की तो पूछिए ही मत! रात को सपने में भी कोई उन्हेंं उठाकर दूर-दराज के इलाके में जा पटकता है। दफ्तर में काम करते वक्त उन्हेंं अपने फेफड़ों तक आक्सीजन ट्रांसफर करने में भी खासी दिक्कत महसूस होती है। मन किसी भी फाइल में नहीं रमता। वे दिन भर बेचैन होकर इधर-उधर की खबरें सूंघते फिरते हैं। तबादलों की चर्चा चलते ही उनमें अतिरिक्त ऊर्जा का संचार होने लगता है। इस मौसम के आते ही कर्मचारियों की सामान्य बोलचाल की भाषा में कुछ नए शब्द शामिल हो जाते हैं। मसलन- नॉट टू बी ट्रांसफर्ड, म्यूचुअल ट्रांसफर, कपल केस, कंपलेंट बेसिस, मेडिकल ग्राउंड आदि-आदि। जैसे क्रिकेट मैच के दौरान लोग एक दूसरे से पूछते हैं कि स्कोर क्या हुआ, वैसे ही तबादलों के मौसम में कर्मचारी एक दूसरे से पूछते हैं- लिस्ट आ गई क्या? ट्रांसफर फोबिया ग्रस्त कर्मचारी को पंकज उधास की मशहूर गजल आइए बारिशों का मौसम है, इन दिनों चाहतों का मौसम है, भी कुछ यूं सुनाई देती है -आइए तबादलों का मौसम है, इन दिनों सिफारिशों का मौसम है।
तबादलों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
तबादलों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव शोध का विषय भी हो सकता है। जिस तरह अधिकतर कर्मचारी अपनी तनख्वाह का एक निश्चित भाग एलआइसी, जीपीएफ, पीपीएफ आदि विभिन्न मदों में डालते हैं, उसी प्रकार जो कर्मचारी आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं हुए या यूं कहिए कि जिनका जाब ट्रांसफरेबल है, वे हर महीने कुछ धनराशि अपने अघोषित ट्रांसफर अकाउंट में जमा करते रहते हैं, ताकि तबादलों के इस मौसम में चलने वाली आंधी से बचने का उपाय कर सकें।
मनचाही पोस्टिंग के लिए ट्रांसफर आर्डर दिलवाना शायद भगवान के भी बस की बात नहीं!
शायद भगवान भी सोचता होगा कि भूलोक का यह नादान प्राणी जितना यत्न तन-मन-धन से अपने ट्रांसफर के लिए कर रहा है, उसका थोड़ा-सा हिस्सा भी यदि मुझे याद करने में लगाता तो मैं उसे इस भवसागर से ही पार लगा देता, लेकिन ट्रांसफरेबल जाब वाले प्राणी को लगता है कि भगवान इस संसार से तो चाहे मुक्ति दिला दें, लेकिन सरकारी नौकरी में मनचाही पोस्टिंग के लिए ट्रांसफर आर्डर दिलवाना शायद उनके भी बस की बात नहीं!
[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार है ]
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