सम्पादकीय

रूस में पुरानी दोस्ती की तलाश !

Triveni
9 July 2021 2:00 AM GMT
रूस में पुरानी दोस्ती की तलाश !
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पिछले कुछ हफ्तों से अफगानिस्तान की जमीनी हालात तेजी से बदल रहे हैं। तालिबान लड़ाकों ने एक के बाद एक लगातार दो दर्जन से ज्यादा जिलों पर कब्जा कर लिया है।

आदित्य चोपड़ा| पिछले कुछ हफ्तों से अफगानिस्तान की जमीनी हालात तेजी से बदल रहे हैं। तालिबान लड़ाकों ने एक के बाद एक लगातार दो दर्जन से ज्यादा जिलों पर कब्जा कर लिया है। अफगानिस्तान के लोग भले ही शांति के इच्छुक हैं लेकिन गृह युद्ध धीरे-धीरे दरवाजे पर पहुंच रहा है। हालात कुछ ऐसे हैं कि आम लोग भी हथियार जमा कर रहे हैं ताकि हमला होने पर अपने परिवार की रक्षा की जा सके। तालिबान के बढ़ते दबदबे के बीच भारत में भी इसको लेकर मंथन चल रहा है कि सितम्बर में अमेरिकी फौजों के अफगानिस्तान से चले जाने के बाद भारत का रुख क्या रहना चाहिए। इसी बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर दो दिवसीय यात्रा पर मास्को पहुंच गए हैं। रूस भारत का गहरा मित्र रहा है। विदेश मंत्री की यात्रा का अर्थ यही है कि रूस में भारत पुरानी दोस्ती की तलाश कर रहा है।

अफगानिस्तान को लेकर भारत के सामने एक नई चुनौती खड़ी हो गई है। बात वर्ष 1999 की है जब भारत के यात्री विमान का अपहरण कर उसे कंधार एयरपोर्ट पर ले जाया गया था। भारत के विमान यात्रियों की रिहाई के बदले तीन आतंकवादी छोड़ने पड़े थे। उसके बाद से ही भारत ने कभी तालिबान से सम्पर्क नहीं रखा। भारत ने हमेशा अफगानिस्तान की सरकार का ही समर्थन किया। अफगानिस्तान में बदलती परिस्थितियों में तालिबान के उभार काे लेकर न केवल पश्चिमी देश बल्कि तेहरान और मास्को भी चिंतित है। तालिबान का उभरना मध्य एशिया में उथल-पुथल पैदा कर देगा। अफगान नागरिकों पर तालिबानी अत्याचार शुरू होते ही ईरान के जाहेरान प्रांत में सीमा पर अफगानी शरणार्थियों की बाढ़ लग जाएगी। अफगानस्तान में अमेरिकी ​सैनिको की वा​पसी ने देश पर तालिबान के कब्जे को अपरिहार्य बना दिया है। इससे अलकायदा को नेटवर्क दोबारा शुरू करने का मौका मिल गया है। ये संगठन एक बार फिर दुनिया भर में हमले की साजिश रच सकता है।
तालिबान और अलकायदा ने इस्लामिक अमीरात बनाने की अपनी मांग को कभी नहीं छोड़ा है। इस्लामिक स्टेट यानि आईएस पहले से ही अफगानिस्तान में मौजूद है। अमेरिका और ब्रिटेन के लिए भी आतंकी खतरा बढ़ेगा। तालिबान के सत्ता में किसी न किसी रूप में लौटने का अर्थ है कि अलकायदा की भी वापसी होगी।
अलकायदा के सभी ठिकाने, आतंकी प्रशिक्षण शिविर और कुत्तों पर उसके भयानक पॉयजन-गैस प्रयोग वापिस लौट आएंगे। 2001 के अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण का उद्देश्य अलकायदा की इन्हीं कारगुजारियों को बंद करना था। भारत की चिंता बहुत गहरी है। भारत की चिंताएं अफगानिस्तान में अस्थिरता, तालिबान के उभार और इन सबमें पाकिस्तान और चीन की भूमिका से जुड़ी है। भारत अफगा​न शांति प्रक्रिया की कई बैठकों में शामिल भी रहा जिनमें दोहा, जिन्हे और दुशांबेक में हुई बैठकें शामिल हैं। भारत ने अफगानिस्तान में 150 नई परियोजनाओं की घोषणा कर रखी है। कई परियोजनाएं ऐसी हैं जिन्हें भारत ने ही शुरू ​किया है। भारत ने जर्जर हो चुके अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। अफगानिस्तान की फौज, पुलिस और लोकसेवा से जुड़े अधिकारियों को भारत में प्रशिक्षण भी मिलता है। न सिर्फ मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण की परियोजनाएं बल्कि भारत अफगानिस्तान में शैक्षणिक संस्थाएं, तेल आैर गैस की इकाइयां, इस्पात उद्योग, विद्युत आपूर्ति के ढांचे, सड़कों, पुलों के निर्माण में अहम भूमिका निभाता आ रहा है।
नए हालातों के बीच भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तेहरान पहुंच कर वहां के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मुलाकात कर उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक व्यक्तिगत संदेश सौंपा है। एस. जयशंकर ने तेहरान में विदेश मंत्री जवाद शरीफ से भी मुलाकात की तथा अफगानिस्तान की स्तिथी समेत चाबहार जैसे द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की। इसके बाद एस. जयशंकर तेहरान से ही मास्को पहुंच गए हैं। साफ है कि दो दिवसीय रूस यात्रा के दौरान वह अफगानिस्तान और अन्य द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा करेंगे। तालिबान के उभार से भले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान जोश में हों और खुद को विजेता महसूस कर रहे हों लेकिन वह भी जानते हैं कि अफगानिस्तान अराजकता से पाकिस्तान का भी बुरा हाल होगा। पाकिस्तान पहले ही लाखों शरणार्थियों को शरण दे चुका है। अब वह ज्यादा बोझ सह नहीं सकता। रूस के लिए अफगानिस्तान में शांति होना बहुत जरूरी है क्योकि वहां पर आईएस के लड़ाके बड़ी संख्या में आ गए हैं। जब से रूस ने ईराक और सीरिया में एंट्री की है, इस्लामिक स्टेट के लड़ाके वहां से निकल कर अफगानिस्तान के पूर्व में नंगरहार प्रांत में आ गए हैं।
तालिबान के साथ रिश्ते खराब होना रूस की सुरक्षा के ​लिए खतरनाक है। रूस अफगानिस्तान की शांति वार्ता का हिस्सा बनकर नई व्यवस्था में अपने हितों को खोज रहा है। वह तालिबान के साथ समान्य रिश्ता रखना चाहता है जिससे उसके कई हित सधते नजर आ रहे हैं। रूस नहीं चाहता कि वहां की नई व्यवस्था पर अमेरिका का कोई प्रमुख हो, यहां रूस अपनी मौजूदगी भी बनाए रखना चाहता है। भारत बड़ी दुविधा में है। एक तरफ चीन से सीमा पर गतिरोध जारी है तो दूसरी तरफ अफगानिस्तान का नया मोर्चा खुल चुका है। अफगानिस्तान मामले में भारत को रूस की दोस्ती की जरूरत है।



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