सम्पादकीय

स्क्रैपिंग नीति का टॉनिक

Gulabi
3 Feb 2021 5:19 AM GMT
स्क्रैपिंग नीति का टॉनिक
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केंद्र सरकार जल्द ही स्क्रैपेज पॉलिसी घोषित करने वाली है जिससे

सोमवार को अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि केंद्र सरकार जल्द ही स्क्रैपेज पॉलिसी घोषित करने वाली है जिससे 20 साल से ऊपर की प्राइवेट गाड़ियां और 15 साल से ऊपर के कमर्शल और सरकारी वाहन सड़कों से हटेंगे और नई गाड़ियों की खरीद का रास्ता साफ होगा। बाद में भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने भी पुष्टि की कि ऑटो इंडस्ट्री की लंबे समय से चली आ रही मांग को ध्यान में रखते हुए यह योजना लाई जा रही है।

योजना से जुड़े सारे सारे प्रावधान तो इसके घोषित हो जाने के बाद ही स्पष्ट होंगे, लेकिन बजट भाषण के मुताबिक 15 साल पूरे कर चुके कमर्शल तथा सरकारी वाहनों और 20 साल पूरे कर चुकी निजी गाड़ियों की फिटनेस जांच होगी और इसमें फिट न पाई गई गाड़ियों के बदले नई गाड़ियां खरीदने पर सरकार की ओर से छूट मिलेगी।

सरकार को उम्मीद है कि इस योजना से जहां ईंधन की बचत होगी और हवा का प्रदूषण कम होगा, वहीं ऑटो इंडस्ट्री में भी नई जान आ जाएगी। चूंकि ऑटो सेक्टर कंस्ट्रक्शन के बाद नौकरी देने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र माना जाता है, इसलिए मौजूदा माहौल में यह सेक्टर उठ खड़ा हो तो पूरी इकॉनमी का चक्का फिर से तेज घूमने की संभावना बढ़ जाएगी। ऑटो सेक्टर के जरिए इकॉनमी की सुस्त पड़ती रफ्तार को तेज करने की कामयाब कोशिशें दस साल पहले भी हुई थीं। सरकार अगर इस नुस्खे को एक बार फिर आजमाना चाहती है तो इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है।
मगर ध्यान देने की बात यह है कि इस सेक्टर में सुस्ती भी कोई पहली बार नहीं आई है। 2012-13 में गाड़ियों की बिक्री में कमी आने लगी थी तो इसकी तेजी बनाए रखने के कई उपाय किए गए थे।बावजूद इसके, एक-दो साल बाद फिर गिरावट के ट्रेंड दिखाई देने लगे। यह भी कि कोरोना की खबरें आने से पहले ही यह सेक्टर गंभीर गिरावट की गिरफ्त में आ चुका था। 2018 में देश में कुल 44,00,136 मोटर गाड़ियां बिकी थीं लेकिन 2019 में यह आंकड़ा 38,16,891 तक ही सिमट गया।

बहरहाल, माना जा रहा है कि प्रस्तावित स्क्रैपेज पॉलिसी से बड़े पैमाने पर मांग पैदा होगी जो इस क्षेत्र के लिए टॉनिक का काम कर सकती है। संभवतः इस योजना के पीछे अमेरिका में बराक ओबामा की 2009 में लाई 'कैश फॉर क्लंकर्स' (पुरानी गाड़ी जमा करने पर नकद सहायता) की प्रेरणा है जो वहां काफी कामयाब मानी गई थी। पर उस योजना में न तो जांच-पड़ताल के लिए कोई जगह रखी गई थ, ना ही नई गाड़ी खरीदने की कोई मजबूरी थी। पुरानी गाड़ी जमा करते ही कैश मिल जाता था। आप उस कैश का इस्तेमाल नई गाड़ी में खरीदने में करना चाहें या किसी और काम में, आपकी मर्जी। बेहतर होगा कि यहां भी सरकार कानूनी तंत्र के दबाव से लोगों को नई गाड़ियां खरीदने की ओर धकेलने के बजाय छूटों और सहूलियतों के जरिए उन्हें इस ओर खींचने का रास्ता अपनाए।


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