सम्पादकीय

जांच का दायरा

Subhi
20 Jan 2022 3:03 AM GMT
जांच का दायरा
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केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कोरोना जांच के काम में तेजी लाने को कहा है। सरकार की चिंता इसलिए बढ़ी है कि कुछ दिन पहले तक जहां संक्रमण के मामलों में तेजी बनी हुई थी

केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से कोरोना जांच के काम में तेजी लाने को कहा है। सरकार की चिंता इसलिए बढ़ी है कि कुछ दिन पहले तक जहां संक्रमण के मामलों में तेजी बनी हुई थी, वहीं अचानक मामलों में कमी आती दिखने लगी। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि मामले अचानक कैसे कम होने लगे। फिर कई राज्यों ने जांच के काम में जैसी शिथिलता बरती और लापरवाही दिखाई, वह भी कम चिंताजनक नहीं है।

ऐसी भी खबरें हैं कि कई राज्यों ने अपने यहां जांच केंद्र ही बंद कर दिए। सवाल यह है कि अगर जांच ही नहीं होगी तो पता कैसे चलेगा कि कौन संक्रमण से ग्रस्त है और कौन नहीं। ऐसे में संक्रमण और फैलेगा। समस्या यह है कि जैसे ही लगने लगता है कि हालात काबू में आने लगे हैं तो जांच का काम बंद कर दिया जाता है। इसका नतीजा यह होता है कि संक्रमितों का पता ही नहीं चल पाता। संक्रमित व्यक्ति चाहे वह लक्षण वाला हो या बिना लक्षण वाला, दूसरों के लिए जोखिम बन जाता है। अब ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत इसलिए भी है कि हम तीसरी लहर का सामना कर रहे हैं।

दरअसल, पिछले दिनों भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने अपने निर्देश में कहा था कि जिन लोगों को संक्रमण के हल्के लक्षण हैं, उन्हें जांच करवाने की जरूरत नहीं है। जाहिर है, ऐसे में लोग जांच करवाने से बचेंगे। इस निर्देश से यह मुश्किल खड़ी हो गई कि अगर किसी को हल्का संक्रमण भी हो गया और उसने जांच नहीं करवाई तो वह दूसरों के लिए संक्रमण का वाहक बन सकता है।

जांच का मकसद ही यह है कि संक्रमितों का पता लगाया जा सके और उन्हें एकांतवास में रख कर दूसरों को बचाया जा सके। संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जो बुनियादी उपाय तय किए गए हैं, उनमें एक उपाय संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए लोगों का पता लगाना भी है। पर जब से जांच के काम को नजरअंदाज किया जाने लगा, संक्रमण के मामले बढ़े हैं। जहां जांच की रफ्तार कम पड़ी है, वहां मामलों में कमी दिखने लगी और सरकारें दावा करती दिखीं कि उनके यहां हालात काबू में हैं।

कोरोना संक्रमण की प्रकृति इस तरह की नहीं है कि अचानक से मामले बढ़ने या कम होने लगें। कायदे से होना यह चाहिए कि हल्के लक्षण सामने आने पर भी जांच जरूरी हो। और इसके लिए लोगों को भी पहल करनी होगी। कहा यह भी जा रहा है कि आंकड़ों में अचानक गिरावट इसलिए भी दिखी है कि जो लोग बाजार से किट खरीद कर जांच कर रहे हैं और संक्रमित निकल रहे हैं, उनके आंकड़े आधिकारिक रूप से दर्ज नहीं हो रहे।

कम जांच के पीछे इस हकीकत से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि अभी भी राज्यों के पास जांच के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। पैसा देकर निजी संस्थानों से जांच करवाना हरेक के बूते के बाहर है। इसलिए सरकारों को अब अपने स्तर पर भी जांच का दायरा बढ़ाना होगा, खासतौर से घनी आबादी वाले इलाकों में। महामारी का संकट अभी जस का तस है। संक्रमण का रोजाना का आंकड़ा दो लाख अस्सी हजार से ऊपर बने रहना खतरे की घंटी है। यह भी तब है जब सरकारों का ज्यादा ध्यान सिर्फ शहरी इलाकों पर है। गांवों की क्या हालत है, कोई नहीं जानता। कुल मिलाकर मौजूदा हालात से निपटने के लिए जांच बढ़ाना ही सबसे बड़ा उपाय नजर आता है।



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