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- लोकतंत्र का दायरा

Written by जनसत्ता: जिस राजनीति दल में जितनी लोकतांत्रिक व्यवस्था रहेगी, वह पार्टी उतनी मजबूत होगी। लोकतांत्रिक व्यवस्था मजबूत रहने से मेहनती और जमीनी कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का मौका मिलता है, उसकी प्रतिभा को पार्टी सदुपयोग करती है। लेकिन जहां पैसों, विरासत और सत्ता देखकर संगठन के प्रमुख बनाया जाता हो, वहां जमीनी कार्यकर्ता कुंठित, उपेक्षित महसूस करते हैं और धीरे-धीरे उनका पार्टी से मोहभंग होने लगता है। दल में जिन्हें एक बार पद मिल जाता है, फिर आजीवन वे दूसरे साथियों को मौका नहीं देते और उसी पर कुंडली मार के बैठे रहते हैं।
राजनीतिक दल में संगठन के चुनाव होते हैं, निर्वाचन मंडल होते हैं। लेकिन उसके सारी पटकथा पहले से तैयार रहती है। मात्र औपचारिकता पूरी होती है। इससे न दल मजबूत होता है, न कार्यकर्ताओं की भावनाओं का सम्मान होता है। भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में से एक है, जहां बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली फल-फूल रही है।
पिछले सात दशकों के दौरान भारत में बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली को कई उतार-चढ़ावों और चुनौतियों का सामना भले ही करना पड़ा हो, मगर हमारे देश मे लोकतंत्र बेहद मजबूत स्थिति में है। किसी अन्य देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की तरह भारत में भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने, जम्हूरी सियासत की जड़ें सींचने और सरकार की सत्ता को चलाने में राजनीतिक दलों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
लेकिन मजे की बात तो यह है कि स्पष्ट रूप से कहीं इस बात का जिक्र नहीं है कि देश में राजनीतिक दलों का संचालन किन दिशा-निर्देशों के अनुसार हो और, उनका नियमन कैसे किया जाना चाहिए। हमारे संविधान में 1951 के जन-प्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 (ए) में यह लिखा हुआ है कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण किया जाना चाहिए। भारत का चुनाव आयोग भी राजनीतिक दलों के संचालन में कोई भूमिका निभाने के लिए सशक्त नहीं है।
वर्ष 2002 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाम इंस्टीट्यूट आफ सोशल वेलफेयर ऐंड अदर्स के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि भारत का चुनाव आयोग किसी भी रजिस्टर्ड राजनीतिक दल के खिलाफ कड़ी कार्रवाई या दंडात्मक कदम यह कह कर नहीं उठा सकता कि फलां राजनीतिक दल ने पार्टी के अंदरूनी लोकतंत्र के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने के चुनाव आयोग के अधिकार को तो माना था, लेकिन अदालत ने ये भी कहा था कि राजनीतिक दलों का पंजीकरण किसी अन्य तरह के रजिस्ट्रेशन से बिल्कुल भिन्न हैं। इससे राजनीतिक दलों के संचालन और उनके अंदरूनी संगठन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन करा पाना लगभग असंभव-सा है। इसी वजह से राजनीतिक दलों से लोकतांत्रिक व्यवहार की अपेक्षा करना भी मुश्किल हो जाता है।