सम्पादकीय

जवाबदेही का दायरा

Subhi
19 Dec 2021 5:53 AM GMT
जवाबदेही का दायरा
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इसमें शक नहीं कि संचार और संप्रेषण के साधनों के विस्तार के साथ बहुस्तरीय विकल्पों का विस्तार हुआ है और अब कई मौकों पर यह मुख्यधारा के विमर्श को प्रभावित करने लगा है।

इसमें शक नहीं कि संचार और संप्रेषण के साधनों के विस्तार के साथ बहुस्तरीय विकल्पों का विस्तार हुआ है और अब कई मौकों पर यह मुख्यधारा के विमर्श को प्रभावित करने लगा है। अनेक वेबसाइटों से लेकर सोशल मीडिया के अलग-अलग मंचों पर जाहिर किए जाने वाले विचारों और अभिव्यक्ति के मामले में इसे लोकतांत्रिक संदर्भों के विस्तार के तौर पर दर्ज किया जा सकता है। मगर साथ ही अनेक ऐसे मौके आए जब सोशल मीडिया या फिर इंटरनेट पर जारी टिप्पणियों के असर से प्रतिक्रियावादी हालात पैदा हुए या फिर किसी व्यक्ति या समुदाय को लेकर नकारात्मक धारणाएं फैलीं।

ऐसी स्थिति में जब किसी मसले पर उठा विवाद तूल पकड़ लेता है, तब मूल टिप्पणी हटा दी जाती है और उससे पैदा उथल-पुथल के असली जिम्मेदार बच निकलते हैं। जाहिर है, अगर कानून की कसौटी पर ऐसे मामलों को देखा जाता है, तो कार्रवाई की स्थितियां जटिल हो जाती हैं। सवाल है कि अगर सोशल मीडिया के किसी मंच पर ऐसी गतिविधि होती है, तो उसकी जवाबदेही आखिरकार किस पर आनी चाहिए! इसे लेकर अब तक कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं बन सकी है।
अब इस मसले पर एक संसदीय समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि सोशल मीडिया के सभी मंचों को प्रकाशक के रूप में देखा जाना चाहिए और उनके जरिए जारी की जाने वाली किसी सामग्री के लिए उन्हें जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। साथ ही मूल कंपनी को भारत में अपना कार्यालय खोलने के लिए कहा जाए। गौरतलब है कि फिलहाल फेसबुक, ट्विटर या ऐसे अन्य मंचों पर व्यक्त कोई टिप्पणी, विचार या सामग्री अगर विवाद में आते हैं, तो इसके लिए ऐसा करने वाले व्यक्ति को कठघरे में खड़ा होना पड़ता है।
अगर इस मसले पर समिति की सिफारिशों पर कोई ठोस फैसला किया जाता है, तो अब किसी विवादित सामग्री के लिए संबंधित व्यक्ति के साथ-साथ उसे प्रकाशित या जारी करने वाले मंच की भी जवाबदेही तय होगी। व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक-2019 पर संयुक्त समिति ने गुरुवार को संसद के दोनों सदनों में पेश अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की है कि भारतीय प्रेस परिषद की तर्ज पर एक वैधानिक मीडिया नियामक प्राधिकरण बनाना चाहिए, जो सोशल मीडिया मंचों पर सामग्री का नियमन कर सकता है और जिसके दायरे में वह सारी सामग्री आ सकती है, जो आनलाइन, प्रिंट या अन्य तरीकों से प्रकाशित की गई हो।
समिति का यह सुझाव भी अहम है कि प्रस्तावित डाटा संरक्षण कानून के दायरे को व्यापक बना कर इसमें निजी और गैर-वैयक्तिक, दोनों तरह के डाटा को शामिल किया जाए। कहा जा सकता है कि समिति ने अपनी सिफारिशों के जरिए सोशल मीडिया के मंचों पर अभिव्यक्ति के व्यापक असर के मद्देनजर इसकी जवाबदेही तय करने के लिए एक ढांचा बनाने का संदेश दिया है।
किसी माध्यम को बेलगाम होने से रोकने के लिए जरूरी पहल लगती है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। वैश्विक स्तर पर ऐसा अक्सर देखा गया है कि सोशल मीडिया के मंच कई बार मुख्यधारा के विमर्श या लोकप्रिय धारा से असहमति के स्वर तो नियंत्रित या बाधित करते हैं, लेकिन इसके समांतर कुछ उन्मादी समूहों या व्यक्तियों की अवांछित टिप्पणियों को नजरअंदाज किया जाता है। इसलिए यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि निगरानी और जवाबदेही के नियमों से अभिव्यक्ति की आजादी को चोट न पहुंचे और ऐसी पहलकदमी मानवीय विचार और लोकतंत्र को समृद्ध करने के पक्ष में साबित हो।

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