सम्पादकीय

लगता है कि स्कूल अपने उद्देश्य से भटक गए हैं; शिक्षा जिंदगी के टॉपर्स बनाने के लिए है, ना कि सिर्फ अंकों से

Gulabi
13 Jan 2022 8:36 AM GMT
लगता है कि स्कूल अपने उद्देश्य से भटक गए हैं; शिक्षा जिंदगी के टॉपर्स बनाने के लिए है, ना कि सिर्फ अंकों से
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इस रविवार मैं ग्वालियर एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के बाद प्रस्थान की घोषणा के इंतजार में बैठा था
एन. रघुरामन का कॉलम:
इस रविवार मैं ग्वालियर एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के बाद प्रस्थान की घोषणा के इंतजार में बैठा था। तभी एयरलाइन ग्राउंड स्टाफ में से महिला कर्मी आई और वेटिंग लाउंज में मेरे बाजू में स्कूल यूनिफॉर्म पहने बैठे अकेले बच्चे से पूछा, 'तुम्हारा बोर्डिंग पास कहां है?' बच्चे ने कहा, 'मुझे नहीं पता।' तब उसने उसे अपने बैग में देखने के लिए कहा। बच्चे ने सरसरी रूप से देखा और आत्मविश्वास से भरी आवाज़ में कहते हुए बिल्कुल नहीं घबराया कि 'नहीं है।' ये भी बोला, 'आपके सहकर्मी को मैं पहले ही कह चुका हूं कि मुझसे ये खो गया है और उन्होंने नया पास लाने का वादा किया है।'
उस बच्चे के आत्मविश्वास की बराबरी नहीं कर सकी वह लड़की 'ओके' कहकर चली गई। उस समय मैंने बच्चे का नाम पूछा और उसने अपना परिचय दिया कि वह समर प्रताप सिंह गुर्जर राजस्थान में धौलपुर से है, वहां से सबसे नजदीकी ग्वालियर एयरपोर्ट 65 किलोमीटर दूर है। यही कारण था कि वह इंदौर में अपने स्कूल जाने के लिए वहां से फ्लाइट पकड़ रहा था, जहां वह छठवीं कक्षा में है। जब मैंने पूछा, 'क्या तुमने अपना बोर्डिंग पास खो दिया?' उसने बिना खीझे हां में सिर हिलाया। और तब मैंने पूछा 'कहां?' और उसका जवाब सुनकर मैं चौंक गया।
उसने कहा, 'अगर मुझे पता होता कि कहां गुमा है, तो मैं उसे खोज लेता। चूंकि मुझे नहीं मालूम कि कहां गया, इसलिए मैंने एयरलाइन स्टाफ को इसके लिए कहा है।' और तब मैंने उसकी जैकेट पर उसके स्कूल का नाम लिखा देखा, 'डेली कॉलेज, इंदौर।' तभी एक पुरुष कर्मचारी आया और बोला, 'हैलो, मुझे तुम्हारे बोर्डिंग कार्ड मिल गया है। कृपया आओ, मैं विमान तक प्रस्थान में तुम्हारी मदद करूंगा।' और वह उसे विमान तक ले गया।
इस यात्रा के दौरान वो छोटा बच्चा जो आत्मविश्वास दिखा रहा था, वो देखकर मेरा मुंह खुला का खुला रह गया। और मुझे लगा कि जब ये बच्चा बड़ा हो जाएगा, तो एक दिन कुछ न कुछ जरूर बनेगा। इससे मुझे पुणे में सह्याद्रि स्कूल के एक और छात्र से जुड़ी घटना याद आ गई। जब आठवीं के छात्र ईशान कनाडे ने साथी लड़की के पहनावे पर टिप्पणी की, तो शिक्षक ने ये कहते हुए उसे सही किया 'तुम्हें किसी की व्यक्तिगत पहचान (इंडिविजुएलेटी) का सम्मान करना चाहिए और इस तरह कमेंट करना सभ्य नहीं है।'
उस लड़के ने शांति से सुना। कुछ दिन बाद जब उसी टीचर ने उसे उसके लंबे बालों पर टोका, जो कि स्कूल मर्यादा के अनुकूल नहीं थे, तो उसने जवाब दिया, 'आपने मुझे किसी के पहनावे-दिखावे से जुड़ी व्यक्तिगत पहचान का सम्मान करने के बारे में सिखाया था, तो आपको नहीं लगता कि लंबे बाल मेरी प्राथमिकता हैं और इसका सम्मान करने की जरूरत है?' शिक्षक ने तुरंत उसकी तारीफ की। शायद कुछ समय बाद वह ईशान को बाल कटाने के लिए राजी कर पाईं हों, पर उस बातचीत में उन्होंने उसे दूसरों की इंडिविजुएलेटी का आदर करने का जीवन भर का सबक सिखा दिया।
यही कारण है कि मेरा पक्का मानना है कि स्कूल की प्रतिष्ठा कभी भी ब्रांडिंग, विज्ञापन, अकादमिक टॉपर खड़े करके नहीं बना सकते। इससे सिर्फ हो-हल्ला और प्रचार होता है। विरासत तो अच्छे मूल्य, जीवन कौशल देने से ही बनती है, जो उनके चरित्र और मूल्यों को आकार देते हैं। और ये एक शिक्षक द्वारा या सिर्फ एक क्लास में नहीं हो सकता। स्कूल में हर शिक्षक और पूरी स्कूली शिक्षा के दौरान उन्हें इस दिशा में योगदान देना पड़ता है।
फंडा यह है कि ऐसा नहीं है कि बच्चों का स्तर नीचे चला गया है पर लगता है कि स्कूल अपने उद्देश्य से भटक गए हैं क्योंकि शिक्षा जिंदगी के टॉपर्स बनाने के लिए है, ना कि सिर्फ अंकों से।
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