सम्पादकीय

बच्चों को स्कूलों के लिए तैयार कर रहे हैं 'स्कूल रेडीनेस' मेले

Gulabi Jagat
29 March 2022 8:50 AM GMT
बच्चों को स्कूलों के लिए तैयार कर रहे हैं स्कूल रेडीनेस मेले
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देश के अधिकतर राज्यों में बच्चे अप्रैल में नई कक्षा में प्रवेश करते हैं
रुक्मिणी बनर्जी का कॉलम:
देश के अधिकतर राज्यों में बच्चे अप्रैल में नई कक्षा में प्रवेश करते हैं। इसलिए मार्च में स्कूलों में बहुत व्यस्तता रहती है। इस साल पहली कक्षा में बच्चों को दाखिला कराने के लिए एक अलग किस्म की तैयारी में महिलाएं, खासकर माताएं शामिल हुईं। महामारी के कारण बच्चों को पूर्व-प्राथमिक शिक्षा का लाभ उठाने का मौका नहीं मिला था।
इस कमी को स्वीकारते हुए गांव-गांव में लोगों ने स्कूल व आंगनवाड़ी के साथ मिलकर 'स्कूल पूर्व तैयारी' का आयोजन शुरू किया। 'स्कूल पूर्व तैयारी' वास्तव में एक मेला है। इसमें प्रतिभागी मां और बच्चे होते हैं। मेला देखने के लिए गांव के और परिवार के सभी लोगों को आमंत्रित किया जाता है। लेकिन गतिविधियों में भाग सिर्फ मां और बच्चे लेते हैं। मेले के आयोजन में विद्यालय के शिक्षक, आंगनवाड़ी सेविका, गांव के युवकों के साथ-साथ माताएं शामिल होती हैं।
मेले में अलग-अलग स्टॉल या बूथ बनाए जाते हैं जिसमें मां और बच्चे मिलकर गतिविधियां करते हैं। चलने-कूदने जैसे शारीरिक खेल, रंग भरना, चित्र बनाना, अलग-अलग तरीके से कागज को फाड़ना, गोलियां बनाना, अखबार के टुकड़ों से चीजें बनाना, सब्जी या रोजाना इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं का वर्गीकरण करना, गिनना, मौखिक वार्तालाप, अक्षर और अंक पहचानना जैसी ढेर सारी गतिविधियां की जाती हैं।
दर्शकों को भी जल्दी से समझ आ जाता है कि स्कूल में सीखने के लिए अंक और अक्षर की पहचान, बुनियादी क्षमताओं के साथ-साथ सर्वांगीण विकास की आवश्यकता है। मार्च में इस प्रकार के प्रयास देश के अलग-अलग प्रांतों में बड़े पैमाने में देखे गए हैं। उदाहरण के तौर पर पंजाब चलते हैं। मार्च के पहले सप्ताह में लोग चुनाव नतीजों का इंतजार कर रहे थे। पर गांव के स्तर पर 12 हजार से ज्यादा स्कूलों में 'मदर वर्कशॉप' हुईं।
पंजाब के सरकारी स्कूल में कई सालों से पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं को प्राथमिक विद्यालयों के साथ जोड़ा गया है, जिससे सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ा है। इन्हीं बच्चों की माताओं के लिए ये कार्यशालाएं रखी गई थीं। शायद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर बच्चों के साथ-साथ उनके परिवार, विशेषकर माताओं को भी स्कूल की औपचारिक सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में शामिल किया गया। पंजाब में तय हुआ है कि ऐसी माता-केन्द्रित वर्कशॉप हर तीन महीने में होगी।
छत्तीसगढ़ सरकार ने भी मान लिया है कि बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना सिर्फ आंगनवाड़ी या स्कूल की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि पूरे समुदाय की जिम्मेदारी है। छत्तीसगढ़ में गत एक वर्ष से 'अंगना म शिक्षा' कार्यक्रम संचालित है। ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच छोटे बच्चों तक सबसे कम थी, लेकिन मांओंं द्वारा बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी लेना अपने आप में अनूठा प्रयास था, जो अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ।
इस कामयाबी को देखते हुए इस वर्ष पूरे राज्य में 'अंगना म शिक्षा 2.0' हो रहा है। महाराष्ट्र से खबर है कि यह मेला 100 स्कूलों में प्रायोगिक तौर पर चल रहा था। जब इसे शिक्षा विभाग के अधिकारियों-शिक्षाविदों ने देखा तो उन्होंने इन्हें राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में करने के लिए सक्रियता दिखाई।
आज महाराष्ट्र के एक लाख स्कूलों में इन मेलों की तैयारी हो रही है। मप्र के पन्ना-टीकमगढ़ जिले में प्रथम चरण में तीन सौ स्कूलों में ऐसे मेलों का आयोजन किया जा रहा है। उम्मीद है कि 'स्कूल पूर्व तैयारी या स्कूल रेडीनेस' मेले के तहत जो ऊर्जा, उत्साह, सीखने की इच्छा माताओं में उभर कर आती है वह पूरे साल उनको आगे बढ़ाती जाएगी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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