सम्पादकीय

यातना के स्कूल

Subhi
11 Oct 2022 5:38 AM GMT
यातना के स्कूल
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शिक्षा और शिक्षण पर हुए तमाम अध्ययनों में सुचिंतित सुझाव दिए गए हैं, जो सबके लिए और खासकर शिक्षकों के लिए बहुत कारगर हैं। इसके उलट ऐसा लगता है कि कुछ लोग शिक्षण के पेशे में आ तो जाते हैं, लेकिन उन्हें इसके बुनियादी पाठ की भी जानकारी नहीं होती।

Written by जनसत्ता: शिक्षा और शिक्षण पर हुए तमाम अध्ययनों में सुचिंतित सुझाव दिए गए हैं, जो सबके लिए और खासकर शिक्षकों के लिए बहुत कारगर हैं। इसके उलट ऐसा लगता है कि कुछ लोग शिक्षण के पेशे में आ तो जाते हैं, लेकिन उन्हें इसके बुनियादी पाठ की भी जानकारी नहीं होती।

यही नहीं, शायद वे अपने भीतर पारंपरिक जड़ताओं से उपजी कुंठा लेकर स्कूल में पहुंचते हैं, जहां उनका व्यवहार कई बार इस कदर हिंसक हो जाता है कि किसी बच्चे की जान तक चली जाती है। उत्तर प्रदेश में गौतमबुद्ध नगर के बंबावड़ गांव में निजी स्कूल के एक शिक्षक ने कुछ विद्यार्थियों को बेहद मामूली बात के लिए बुरी तरह से पीटा। इसमें एक बच्चे को ऐसी गहरी चोट आई कि उसकी जान चली गई। बच्चे की गलती यह बताई गई कि कुछ दिन पहले स्कूल में हुई परीक्षा में उसके कम अंक आए थे। क्या यह कोई ऐसी गलती थी, जिस पर एक शिक्षक को इस हद तक क्रूर हो जाना चाहिए था?

शिक्षाशास्त्री कहते हैं कि स्कूल में कोई विद्यार्थी अगर पढ़ने में पिछड़ जाता है तो इसके लिए शिक्षक और शिक्षण पद्धति जिम्मेदार हैं। आम सामाजिक बर्ताव में भी गलती या कमी का हल या उसमें सुधार के लिए सकारात्मक प्रयास ही अकेला और मानवीय तरीका माना जाता है। लेकिन शिक्षण जैसे संवेदनशील और जिम्मेदार पेशे को चुनने वाले लोग भी इस साधारण-सी बात को नहीं समझ पाते और स्कूल में छोटे बच्चों को भी मामूली कमी पर यातना देना मुख्य रास्ता मानते हैं।

देश के अलग-अलग हिस्से से ऐसी खबरें अक्सर आती रहती हैं कि किसी स्कूल में शिक्षक ने गृहकार्य न करने या पढ़ाई में कोई कमी होने पर किसी बच्चे की बर्बरता से पिटाई की, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई। ऐसी घटनाओं को गैरइरादतन हत्या की तरह देखा जाना चाहिए। सवाल है कि जिस शिक्षक पर एक बच्चे के जीवन और भविष्य को संवारने की जिम्मेदारी होती है, वही इस शक्ल में हिंसक क्यों हो जाता है? क्या ऐसे बर्ताव को संबंधित शिक्षक के भीतर छिपी सामंती और हिंसक कुंठा की अभिव्यक्ति नहीं माना जाना चाहिए?

सच यह है कि अगर कोई शिक्षक किसी भी वजह से बच्चे के खिलाफ हिंसक होता है, पिटाई या डांट-फटकार करता है तो यह उसके अयोग्य होने का सूचक है। मगर बहुत सारे शिक्षक न तो अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और न उन्हें इस मसले पर कानूनी व्यवस्था की परवाह होती है। गौरतलब है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 17 के तहत किसी भी तरह के शारीरिक दंड, मानसिक प्रताड़ना और भेदभाव पूरी तरह प्रतिबंधित हैं।

इसके अलावा, किशोर न्याय अधिनियम के तहत भी न केवल ऐसा करने वाले के लिए जेल और जुर्माने का प्रावधान है, बल्कि बच्चे की देखभाल और उनकी सुरक्षा के लिए स्कूल की जिम्मेदारी तय की गई है। सवाल है कि शिक्षण की पद्धति, मनोविज्ञान, सामाजिक बर्ताव की कसौटियों से लेकर कानूनी व्यवस्था तक को ताक पर रख कर कोई शिक्षक प्रकारांतर से बच्चे की हत्या करने की हद तक क्यों चला जाता है? आमतौर पर हर जगह फैल रहे निजी स्कूलों में एक शिक्षक के प्रशिक्षित होने और अन्य कसौटियों की जांच-परख के लिए सरकार क्या करती है? आए दिन अगर बच्चों को कुछ शिक्षकों के भीतर बैठी हिंसक कुंठा का शिकार होना पड़ रहा है तो इसकी जिम्मेदारी किस पर जानी चाहिए?


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