सम्पादकीय

जीवन की पाठशाला

Subhi
2 April 2022 4:26 AM GMT
जीवन की पाठशाला
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प्रधानमंत्री कई सालों से वार्षिक परीक्षाएं शुरू होने से पहले स्कूली बच्चों से रूबरू होते आ रहे हैं। इस बार भी हुए। हमेशा से बच्चों को उनकी सीख रही है कि जीवन की पाठशाला सबसे बड़ी होती है

Written by जनसत्ता: प्रधानमंत्री कई सालों से वार्षिक परीक्षाएं शुरू होने से पहले स्कूली बच्चों से रूबरू होते आ रहे हैं। इस बार भी हुए। हमेशा से बच्चों को उनकी सीख रही है कि जीवन की पाठशाला सबसे बड़ी होती है, जहां सीखने को बहुत कुछ होता है, इसलिए स्कूली परीक्षाएं किसी भी तरह के दबाव में रह कर न दें। सफलता या विफलता का मन पर बोझ न हावी होने दें। इस बार प्रधानमंत्री की पाठशाला इसलिए विशेष थी कि पिछले दो सालों से कोविड संकट के चलते पढ़ाई-लिखाई का वातावरण अस्त-व्यस्त रहा।

पिछले साल तो बोर्ड परीक्षाएं तक रद्द करनी पड़ गई थीं। बच्चे लंबे समय तक स्कूल नहीं जा पाए और जब स्कूल खुले, तो वार्षिक और बोर्ड परीक्षाओं की तैयारियां शुरू हो गईं। इसलिए इस बार बच्चों में परीक्षा का तनाव स्वाभाविक रूप से अधिक है। ऐसे समय में प्रधानमंत्री की प्रेरक बातें निस्संदेह बच्चों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करेंगी। वे जिस ढंग से बच्चों से बातचीत करते और उन्हें संबोधित करते हैं, उसका असर उन पर साफ देखा जा सकता है। उन्होंने बच्चों को आत्मावलोकन की सीख दी। कहा कि वे इस बात को भूल जाएं कि उन्हें कोई अंक देने वाला है, कोई उनकी परीक्षा लेने वाला है। आप खुद अपना परीक्षक बनें, अपना मूल्यांकन स्वयं करें।

दरअसल, पिछले कुछ दशकों में बोर्ड परीक्षाओं के अंक इतने महत्त्वपूर्ण बना दिए गए हैं कि हर माता-पिता अपने बच्चे पर सर्वोच्च अंक लाने को कहता रहता है। इस प्रक्रिया में बच्चे पर लगातार मानसिक दबाव बना रहता है। उसके भीतर आशंका बनी रहती है कि अगर कहीं उसके कम अंक आ गए, तो माता-पिता को बहुत बुरा लगेगा, समाज में उनकी इज्जत कम हो जाएगी। फिर अच्छे कालेजों में दाखिले के वक्त भी अंकों की अहमियत काफी बढ़ गई है।

प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों को ध्यान में रखते हुए भी बच्चों पर पहले से ही मानसिक दबाव बनाया जाने लगता है कि उन्हें उन्हीं के मुताबिक पढ़ाई करनी है। इस तरह देखा गया है कि बहुत सारे बच्चों का उचित व्यक्तित्व विकास हो ही नहीं पाता। वे बेशक बड़े पदों पर पहुंच जाते हैं, मगर व्यावहारिक जीवन में अक्सर सफल साबित नहीं हो पाते। ऐसे में बहुत सारे शिक्षाशास्त्री भी सलाह देते रहे हैं कि बच्चों पर से पढ़ाई का बोझ कम करके उनमें कौशल विकास पर जोर दिया जाना चाहिए। जीवन के अनुभवों से उन्हें सीखने का मौका उपलब्ध कराना चाहिए।

हालांकि नई शिक्षा नीति में बच्चों पर पढ़ाई का बोझ कम करने की दृष्टि से काफी बदलाव किए गए हैं। उनमें कौशल विकास पर जोर दिया गया है। इस बार केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने भी कोरोना की स्थितियों और बच्चों को पढ़ाई-लिखाई में आई परेशानियों के मद्देनजर बोर्ड परीक्षाओं को दो चरण में बांट दिया। पाठ्यक्रम में भी काफी कटौती कर दी है।

इस तरह इस बार की परीक्षाओं में बच्चों को बहुत परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। मगर परीक्षाओं को लेकर जिस तरह का सामाजिक वातावरण पहले से बना हुआ है, उसके चलते बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दबाव से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में अभिभावकों, अध्यापकों और बड़े लोगों की सीख बच्चों का बड़ा संबल बनेगी। प्रधानमंत्री ने इसी भूमिका का निर्वाह करते हुए उन्हें समझाया कि परीक्षा जीवन का सहज अंग है, उसे लेकर मन पर बोझ नहीं बढ़ाना चाहिए। इस सीख का उन पर निश्चित रूप से असर पड़ेगा।


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