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- वर्ण व्यवस्था का दंश...
वर्ण व्यवस्था की जातीय पृष्ठभूमि का दंश स्वातंत्र्योत्तर भारत में भी विकराल रूप धारण किए हुए है। यह ऐसा बीज है कि शायद ही इसका समूल नाश कभी संभव हो सके। जातीय आधार पर इनसानों से भेदभाव का क्रम मनुष्यों के सभ्य होते ही पनप गया था। मनु महाराज की विखंडन कारी विकृत सोच ने इनसानों को इनसान न समझने का पाठ पढ़ाया जिसका खमियाजा भारतवर्ष की हजारों जातियां युगों-युगों से झेलती आ रही हंै। महात्मा कबीर के निराकार ईश्वरीय पैगाम ने समस्त हिंदुओं एवं मुस्लिमों को अपनी वाणी के माध्यम से सुधारवादी संदेश देकर चेताने का प्रयास किया, किंतु तत्कालीन एवं वर्तमान रूढि़वादी मानसिक विचारधारा के धनियों ने तथागत महात्मा बुद्ध के जीवन दर्शन की भांति उनके निराकार ईश्वरीय संदेश को भी समाज में पनपने नहीं दिया क्योंकि इनकी युगों-युगों से चली आ रही ठगने की दुकानदारी बंद होती प्रतीत होती थी। जिस समाज में इनसान को इनसान न समझा जाता हो, पशुओं से बदतर तरीके से उसे हांका जाता हो।