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अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग चुनावी राजनीति में क्या एक साथ दिखाई देंगे
दिनेश गुप्ता अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग चुनावी राजनीति में क्या एक साथ दिखाई देंगे. अन्य पिछड़ा वर्ग भी आरक्षित वर्ग में ही है. लेकिन, चुनावी राजनीति में उसे अनुसूचित जाति और जनजाति की तरह आरक्षित वर्ग में नहीं देखा जाता. इसकी एक ही स्पष्ट वजह है. लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में ओबीसी को किसी भी तरह की आरक्षण की व्यवस्था संविधान में नहीं की गई है. ओबीसी को शासकीय सेवाओं में आरक्षण जरूर दिया गया है. चुनावी राजनीति में ओबीसी के समीकरण जातीय आधार पर देखे जाते हैं. लेकिन, अब अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का तालमेल बैठाने की कवायद चल रही है. इस कवायद में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या ओबीसी, अनुसूचित जाति वर्ग से तालमेल बैठा पाएगा? या फिर उसी तरह की अलग राह चलते रहेंगे, जिस तरह अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग की रहती है.
आखिर मध्यप्रदेश क्यों बना आरक्षण की राजनीति का केन्द्र
इस साल चुनाव उत्तरप्रदेश में होना है लेकिन, ओबीसी और अनुसूचित जाति वर्ग को एक साथ लाने की कवायद मध्यप्रदेश में हो रही है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के पंचायत चुनाव में ओबीसी को दिए जाने वाले आरक्षण पर रोक लगाई है. रोक महाराष्ट्र के निकाय चुनाव में भी प्रभावी है. दोनों राज्यों ने ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव न कराने का फैसला किया है. मध्यप्रदेश में पंचायत के चुनाव निरस्त हो गए हैं. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण बहाल किए जाने के लिए आवेदन भी लगाया है. इसके बाद भी ओबीसी का आरक्षण बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन चुका है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही एक-दूसरे पर ओबीसी विरोधी होने का आरोप लगा रहे हैं. राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. शिवराज सिंह चौहान इस सरकार का चेहरा हैं. चौहान भी ओबीसी हैं. कांग्रेस ओबीसी महासभा द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन का समर्थन कर रही है. इस महासभा से कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य राजमणि पटेल अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हुए हैं. पटेल को कांग्रेस पार्टी ने उत्तरप्रदेश के ओबीसी वोटों के बीच सक्रिय किया हुआ है. पटेल कुर्मी ओबीसी हैं. रविवार को भोपाल में महासभा ने विरोध प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा था, लेकिन सरकार ने सभी बड़े नेताओं को एक दिन पहले ही नजरबंद कर दिया. वे प्रदर्शन में शामिल भी नहीं हो सके.
भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद मध्यप्रदेश में क्यों हुए सक्रिय
राजमणि पटेल, मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं. 2018 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें राज्यसभा की सीट के लिए नामांकित कर सभी को चौंका दिया था. पटेल विंध्य क्षेत्र से हैं. 1972 में पहली बार विधायक बने थे. पटेल ओबीसी के आरक्षण की लड़ाई लंबे समय से लड़ रहे हैं. पटेल खुद महासभा के कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे. लेकिन, भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद जरूर महासभा के प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए भोपाल पहुंच गए. दरअसल पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के बहाने अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को एक मंच पर लाने की कोशिश करती दिखाई दे रही है. चंद्रशेखर आजाद को पुलिस ने एयरपोर्ट से बाहर ही नहीं निकलने दिया. आजाद, अनुसूचित जाति वर्ग का चेहरा हैं. अभी तक उनकी गतिविधियां उत्तर प्रदेश तक ही सीमित थीं. लेकिन, अब मध्यप्रदेश में भी वे सक्रिय हुए हैं. चंद्रशेखर आजाद को मध्यप्रदेश में सक्रिय कराने के पीछे भी कांग्रेस के नेता ही दिखाई देते हैं. ओबीसी महासभा का दावा है कि प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आजाद को कोई औपचारिक न्योता नहीं दिया गया. महासभा के महेंद्र सिंह लोधी ने ट्वीट के जरिए आंदोलन के सफलता के लिए भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं को धन्यवाद जरूर दिया. इससे यह संकेत तो मिलता ही है कि ओबीसी और अनुसूचित जाति वर्ग अब एक साथ आ रहे हैं. कांग्रेस इसमें अपना बड़ा राजनीतिक लाभ देख रही है. मध्यप्रदेश ही नहीं उत्तरप्रदेश में भी.
मोदी -योगी मंत्रिमंडल विस्तार में दिखी थी ओबीसी-एससी की राजनीति
उत्तरप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की नजर ओबीसी वोटर के अलावा अनुसूचित जाति के वोटर पर भी है. संभवत: इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में उत्तरप्रदेश से जिन सात चेहरों को जगह दी, उसमें तीन ओबीसी और तीन अनुसूचित जाति वर्ग के थे. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपने मंत्रिमंडल के विस्तार में इन्हीं वर्गों को महत्व दिया. उत्तरप्रदेश की राजनीति में अनुसूचित जाति वर्ग पर बसपा अपना एकाधिकार मानती रही है. लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव में उसका भ्रम टूट गया. इसी तरह ओबीसी की कुछ जातियों पर सपा अपना एकाधिकार मानती है. सपा-बसपा के प्रतिबद्ध वोटर का टूटना भाजपा की स्थिति को मजबूत बनाता है. उत्तरप्रदेश में कांग्रेस के पास कोई बड़ा वोट बैंक नहीं बचा है. बसपा और सपा के वोट बैंक को किसी तरह कांग्रेस अपने पक्ष में करने में लगी हुई है. भोपाल में चंद्रशेखर आजाद का ओबीसी महासभा के प्रदर्शन में आना इस रणनीति का हिस्सा लगता है.
आरक्षित और गैर आरक्षित वर्ग में बंटती राजनीति
उत्तरप्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी 21 प्रतिशत से अधिक है. जबकि मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी सत्रह प्रतिशत है. सरकारी दावों पर यकीन किया जाए तो ओबीसी की आबादी 54 प्रतिशत है. अभी तक मध्यप्रदेश में ओबीसी एकतरफा किसी राजनीतिक दल के पक्ष में वोटिंग नहीं करता है. जाति, उपजाति के अनुसार वोटिंग का पैटर्न रहा है. विंध्य क्षेत्र में ओबीसी का वोटर लंबे समय से बसपा के पक्ष में वोट करता रहा है. यही कारण है कि पिछले विधानसभा चुनाव में वोटों के इस विभाजन का फायदा भाजपा को मिला था. मालवा-मध्य भारत में ओबीसी वोटर भाजपा के पक्ष में ज्यादा वोटिंग करता है. इस इलाके में आदिवासी वोटरों का दबदबा है. जयस के पदाधिकारियों ने भी ओबीसी के प्रदर्शन में हिस्सा लिया था. राज्य में लगभग 21 प्रतिशत वोटर आदिवासी वर्ग का है. राजनीति तेजी से आरक्षित और गैर आरक्षित वर्ग में बंट रही है.
Rani Sahu
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