सम्पादकीय

पैमाने पर चिकित्सा

Rani Sahu
27 Dec 2021 6:30 PM GMT
पैमाने पर चिकित्सा
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स्वास्थ्य सेवाओं के मोर्चे पर सुधार के लिए अभी युद्धस्तर पर प्रयास की जरूरत है

स्वास्थ्य सेवाओं के मोर्चे पर सुधार के लिए अभी युद्धस्तर पर प्रयास की जरूरत है। विशेष रूप से कोरोना महामारी के समय हमने स्वास्थ्य सेवाओं को घुटने टेकते देखा है। अत: नीति आयोग द्वारा सोमवार को जारी चौथे स्वास्थ्य सूचकांक की प्रासंगिकता बढ़ गई है। सूचकांक के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा देने के मोर्चे पर केरल सबसे आगे है। देश के 19 बड़े सूबों में केरल की विकासशीलता सबके लिए प्रेरणादायी है। कोरोना महामारी को ही अगर हम लें, तो जांच से लेकर इलाज तक यह राज्य सबसे आगे रहा है, इसलिए वहां महामारी के भयंकर प्रकोप के बावजूद स्थितियां बेकाबू नहीं हुई हैं। वैसे इस स्वास्थ्य सूचकांक का संदर्भ वर्ष 2019-20 है और देश की चिकित्सा व्यवस्था का असली परीक्षण वर्ष 2020-21 और उसके बाद हुआ है। जब पांचवां स्वास्थ्य सूचकांक जारी होगा, तो स्थिति और भी स्पष्ट होकर सामने आएगी।

स्वास्थ्य सूचकांक राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करने, स्वास्थ्य परिणामों पर प्रगति की निगरानी करने, स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धा बनाने और परस्पर एक-दूसरे से सीखने को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक कारगर कदम है। तमिलनाडु व तेलंगाना स्वास्थ्य मानकों पर क्रमश: दूसरे और तीसरे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले राज्य के रूप में उभरे हैं। विश्व बैंक की तकनीकी सहायता से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से तैयार इस रिपोर्ट में छोटे राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों के मोर्चे पर अगर देखें, तो मिजोरम सबसे बेहतर है, पर यहां दिल्ली का पिछड़ना विशेष रूप से चिंतनीय है। ऐसे किसी भी सूचकांक में राष्ट्रीय राजधानी को सबसे ऊपर और सबसे बेहतर होना ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं है, तो तमाम जिम्मेदार लोगों को चिंतित अवश्य होना चाहिए। अफसोस की बात है कि बेहतरी के पैमानों पर दिल्ली पिछड़ रही है। सबसे ज्यादा भीड़, सबसे ज्यादा प्रदूषण, गरीबों की दृष्टि से सबसे ज्यादा अभाव दिल्ली में क्यों है? लॉकडाउन व पलायन के समय भी दिल्ली ने गरीबों को निराश ही किया था।
बहरहाल, केरल को सर्वोच्च स्थान पर देखकर ज्यादातर लोगों को आश्चर्य नहीं होगा, लेकिन क्या उत्तर प्रदेश बड़े राज्यों में वाकई सबसे पीछे है? क्या उत्तर प्रदेश इस मामले में बिहार और झारखंड से भी पीछे है? राष्ट्रीय राजधानी के बगल में स्थित उत्तर प्रदेश में स्थितियां बेहतर होनी चाहिए। चिकित्सा का ढांचा अचानक से नहीं सुधरता है। केरल ने इसके लिए सिलसिलेवार काम किए हैं, तमिलनाडु में लोग आगे बढ़कर स्वास्थ्य सेवाएं मांगते हैं, डॉक्टर व अस्पताल मांगते हैं, लेकिन स्वास्थ्य सूचकांक में जो प्रदेश पिछड़ गए हैं, क्या वहां के लोग भी आगे आकर यथोचित सेवाओं की मांग करते हैं? क्या उत्तर भारत के राज्यों में स्वास्थ्य सुधार या चिकित्सा विकास को चुनावी मुद्दा माना जाता है? स्वास्थ्य सूचकांक में सबसे ऊपर स्थित केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र से अन्य तमाम राज्यों को सीखना चाहिए? जो राज्य आज चिकित्सा सेवाओं में बेहतर स्थिति में हैं, वहां दूसरी लहर के समय भी हाहाकार नहीं मचा था। लोगों को जांच या इलाज के लिए ज्यादा भागना नहीं पड़ रहा था। हमें लक्ष्य निर्धारित करते हुए चलना होगा, ताकि आने वाले वर्षों में तुलनात्मक रूप से पिछड़े प्रदेशों में भी केरल जैसी सुविधाएं हासिल हों।

हिन्दुस्तान

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