सम्पादकीय

मौत का पैमाना

Subhi
31 May 2021 3:14 AM GMT
मौत का पैमाना
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जहरीली शराब पीने से बड़े पैमाने पर लोगों के मारे जाने की घटनाएं देश के विभिन्न हिस्सों में होती रहती हैं

जहरीली शराब पीने से बड़े पैमाने पर लोगों के मारे जाने की घटनाएं देश के विभिन्न हिस्सों में होती रहती हैं, पर हर बार कुछ जांचों, कुछ लोगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाइयों आदि की औपचारिकता के बाद मामले को रफा-दफा मान लिया जाता है। अवैध शराब बनाने और उसके कारोबार पर नकेल कसने की जो पहल होनी चाहिए, वह कहीं होती नहीं दिखती। इसी का नतीजा है कि उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जहरीली शराब पीने से करीब दो दर्जन लोगों की मौत हो गई।इस मामले में प्रशासन ने कुछ आबकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। विचित्र है कि ताजा घटना में जहरीली शराब लोगों ने एक अधिकृत दुकान यानी ठेके से खरीदी थी। बहुत साल पहले देसी शराब की बिक्री के लिए भी ठेके दिए जाने लगे थे। तब माना गया था कि इससे देसी शराब की गुणवत्ता, उसमें जहरीले तत्त्वों आदि की जांच में मदद मिलेगी और लोगों के चोरी-छिपे जहां-तहां गांव-गिरांव में बनने वाली शराब पीकर मौत के आगोश में समा जाने की घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा। मगर ऐसा होता नजर नहीं आता

शराब की बिक्री दो तरह से होती है। एक तो सरकारी दुकानों पर और दूसरी, सरकारी मान्यता प्राप्त निजी दुकानों पर। कई राज्यों में इसकी बिक्री की ज्यादातर जिम्मेदारी निजी ठेकेदारों को दे दी जाती है। उत्तर प्रदेश भी उन राज्यों में है। हालांकि निजी दुकानों पर बिकने वाली शराब के भंडारण, गुणवत्ता आदि पर आबकारी विभाग नजर रखता है, पर ये दुकानदार चूंकि ऊंची सिफारिश और भारी रकम खर्च करके ठेके प्राप्त किए होते हैं, इसलिए उनका जोर ज्यादा से ज्यादा कमाई करने पर होता है। इसके लिए वे घटिया गुणवत्ता वाली शराब बेचने और आबकारी विभाग के अधिकारियों को अपने पक्ष में रखने का प्रयास करते हैं। इसी प्रवृत्ति के चलते अवैध शराब बनाने के धंधे पर रोक नहीं लगाया जा सका है।
हकीकत यह भी है कि कई अवैध शराब बनाने वालों को ऊंचे रसूखदार लोगों का संरक्षण प्राप्त होता है और वे बड़े पैमाने पर ऐसी शराब विभिन्न राज्यों में पहुंचाने में सफल हो जाते हैं। घटिया गुणवत्ता होने के बावजूद उनकी बनाई शराब ठेके वाली दुकानों में भी बिकती देखी जाती हैं। स्थिति यह है कि देश का शायद ही कोई इलाका हो, जहां अवैध रूप से शराब न बनाई जाती हो।
हमारे देश में शराब पीने की संस्कृति नहीं है, इसलिए ज्यादातर लोग सिर्फ नशे के लिए पीते हैं। ऐसे में शराब बनाने वाली कई देसी कंपनियां भी शराब को नशीला बनाने के मकसद से उसमें स्प्रिट जैसी कुछ ऐसी चीजें मिलाती पाई जाती हैं, जो सेहत के लिए किसी भी रूप में ठीक नहीं मानी जाती। अवैध रूप से बनाई जाने वाली शराब में तो चूंकि गुणवत्ता नियंत्रण वगैरह का कोई पैमाना है ही नहीं, इसलिए उसमें मनमाने तरीके से ऐसे तत्त्वों को मिला दिया जाता है, जिससे शराब जहरीली हो जाती है।
ऐसा नहीं कि प्रशासन इन तथ्यों से अनजान है या उसे अवैध रूप से बनने वाली शराब के ठिकानों की जानकारी नहीं है, मगर वह किसी लोभ या दबाव में अपनी आंखें बंद रखता है। इस तरह जहरीली शराब पीकर लोगों का मरना भी किसी आपदा से कम नहीं। उन मौतों को सिर्फ इसलिए रफा-दफा नहीं किया जा सकता कि वे लोग गरीब थे और नशे की अपनी बुरी आदत की वजह से मारे गए।

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