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- टकराव का पैमाना
Written by जनसत्ता: एक बार फिर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल आमने-सामने हैं। इस बार दिल्ली सरकार पर आरोप है कि उसने आबकारी नीति में बदलाव कर गलत तरीके से लोगों को शराब के ठेके दिए और उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाया। इस तरह सरकार को भारी राजकोषीय घाटा हुआ। उपराज्यपाल ने मुख्य सचिव की रिपोर्ट के बाद इस मामले की सीबीआइ से जांच कराने का आदेश दिया है।
इस पर दिल्ली सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार चूंकि उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया को जेल भेजना चाहती है, इसलिए उसने यह षड्यंत्र रचा है। कुछ महीने पहले भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी के बाद केंद्र मनीष सिसोदिया को जेल भेजने की तैयारी में है। अब जब सीबीआइ जांच का आदेश जारी हुआ है, तब भी उन्होंने वही बात दोहराई है।
दिल्ली सरकार का कहना है कि उपराज्यपाल यह झूठा आरोप लगा रहे हैं कि आबकारी नीति में बदलाव से सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ है। सच्चाई यह है कि नई आबकारी नीति के तहत ठेकों के लाइसेंस जारी करने के बाद से दिल्ली सरकार की कमाई बढ़ी है। मगर भाजपा इस मुद्दे को भुनाने में जुट गई है कि आम आदमी पार्टी सरकार ने शराब के ठेके अपने लोगों को देकर उन्हें अनुचित लाभ पहुंचाया।
हालांकि यह पहली बार नहीं है, जब उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच ऐसा टकराव हुआ है। जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, तभी से उपराज्यपाल और सरकार के बीच अधिकारों की जंग छिड़ी रही है। कुछ मौकों पर तो दिल्ली सरकार ने अपने अधिकारों के लिए अदालत का दरवाजा भी खटखटाया। मुख्यमंत्री केजरीवाल धरने पर भी बैठे।
वे लगातार कहते रहे हैं कि केंद्र सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही। दिल्ली में नगर निगम के चुनाव लंबित हैं, गुजरात में भी आम आदमी पार्टी मजबूती से खम ठोंक रही है, उसके मद्देनजर भी भाजपा और आप परस्पर इस तरह के मुद्दों को राजनीतिक रंग देने का प्रयास करते रहे हैं। नीति में बदलाव का मुद्दा भी जांच के दायरे में आने से राजनीतिक रंग ले चुका है।
दिल्ली सरकार कह रही है कि पुरानी आबकारी नीति के चलते कुछ लोग गलत तरीके से शराब के ठेके प्राप्त कर लेते थे। ऐसे लोगों में ज्यादातर भाजपा से नजदीकी रखने वाले लोग थे। नई आबकारी नीति के तहत उन्हें लाइसेंस नहीं मिल पाए, जिसकी वजह से भाजपा और उसके लोग तिलमलाए हुए हैं।
मगर लोकतंत्र में अनियमितताओं के आरोप जुबानी जंग से नहीं हल किए जाते, उसके लिए निष्पक्ष जांच जरूरी होती है। इसलिए साफ-सुथरे प्रशासन का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी सरकार को जांच से घबराहट क्यों होनी चाहिए। अगर उसका यह दावा सच है कि नई आबकारी नीति से सरकार को राजस्व अधिक मिलने लगा है और शराब की दुकानों के लाइसेंस देने में किसी भी प्रकार की अनियमितता नहीं हुई, तो उसे जांच में सहयोग करना चाहिए।
मगर उसके इस आरोप को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि जिस तरह जांच एजेंसियां केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रही हैं, उसमें जांच की निष्पक्षता का भरोसा नहीं किया जा सकता। अगर सचमुच उपराज्यपाल भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती बरतना चाहते हैं, तो उनसे भी यह अपेक्षा स्वाभाविक है कि जांच एजेंसियों पर पारदर्शी तरीके से जांच करने का दबाव बनाए रखें। जनतंत्र में बिना पारदर्शिता के मुद्दे सुलझने के बजाय उलझते ही हैं।