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इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है कि जिस पुलिस अफसर को महिलाओं के खिलाफ अपराध और अत्याचार पर रोक लगाने की विशेष ड्यूटी पर तैनात किया जाए,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क |इससे ज्यादा शर्मनाक और क्या हो सकता है कि जिस पुलिस अफसर को महिलाओं के खिलाफ अपराध और अत्याचार पर रोक लगाने की विशेष ड्यूटी पर तैनात किया जाए, वह कार्रवाई के आश्वासन के बदले खुद ही पीड़िता से रिश्वत और यहां तक कि शारीरिक शोषण की मांग करे। लेकिन राजस्थान के जयपुर में महिला अत्याचार अनुसंधान इकाई में तैनात एक पुलिस उप-अधीक्षक ने ऐसी महिला के सामने यह शर्त रखी जो अपने यौन शोषण और उत्पीड़न का मामला लेकर मदद के लिए पुलिस के पास पहुंची थी।
कायदे से शिकायत पर गौर करने के बाद पुलिस को तुरंत सक्रिय होकर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन शायद ही किसी ने सोचा हो कि जिस अधिकारी को सरकार ने इस तरह के मामलों को सुनने और कार्रवाई करने के लिए विशेष रूप से तैनात किया था, वह अपने पद का फायदा इस रूप में उठाने की कोशिश कर सकता है। पीड़ित महिला की सजगता की वजह से गनीमत यह रही कि शिकायत के बाद राज्य भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने समय पर छापा मार कर आरोपी पुलिस अफसर को गिरफ्तार कर लिया।
निश्चित रूप से राज्य भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभाई। लेकिन रक्षक के ही भक्षक बनने का यह कोई अकेला मामला नहीं है। करीब हफ्ते भर पहले सामने आई खबर के मुताबिक अलवर जिले के खेरली थाने में पति से विवाद की एक अर्जी लेकर थाने पहुंची महिला को वहां पदस्थापित एक उप-निरीक्षक ने कार्रवाई का झांसा देकर तीन दिन तक बलात्कार किया।
सवाल है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध और अत्याचार पर रोक लगाने की जिम्मेदारी जिन अफसरों को सौंपी जा रही है, क्या उनके व्यक्तित्व और मानसिकता के बारे में पुख्ता आकलन करना जरूरी नहीं है? क्या गारंटी है कि शिकायत लेकर थाने पहुंचने वाली और पहले से ही परेशानी और दुख से घिरी महिलाओं के साथ ऐसे अधिकारी बुरा बर्ताव नहीं करते होंगे! जयपुर में गिरफ्त में आया पुलिस अधिकारी पहले भी कई आरोपों के घेरे में रहा है। फिर सरकार या संबंधित महकमे के उच्चाधिकारियों ने किस आधार पर उसे पदोन्नति दी और उसे महिलाओं की शिकायत सुनने जैसे संवेदनशील काम की जिम्मेदारी सौंपी? आखिर राजस्थान सरकार महिलाओं के खिलाफ अपराधों और अत्याचारों के मामले में किस तरह का उदाहरण कायम करना चाह रही है?
दरअसल, समाज से लेकर सत्ता और प्रशासन के समूचे तंत्र में जिस तरह की स्त्री-द्वेषी मानसिकता ने पैठ बनाई हुई है, उससे जूझे बिना सरकारें महिलाओं को सुरक्षित माहौल देने का आश्वासन देती रहती हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराधों की प्रकृति जैसी होती है, उसमें जांच से लेकर कार्रवाई की समूची प्रक्रिया को निभाने की जिम्मेदारी भाषा और व्यवहार के स्तर पर विशेष रूप से प्रशिक्षित और स्त्रियों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील लोगों को सौंपी जानी चाहिए।
लेकिन यह छिपा नहीं है कि किसी स्थिति में जब महिलाएं कोई शिकायत लेकर पुलिस के पास पहुंचती हैं, तो उनकी पीड़ा सुनने से लेकर उस पर प्रतिक्रिया देने तक के मामले में पुलिस कर्मचारी और अधिकारियों का रवैया कैसा होता है। यह बेवजह नहीं है कि कई बार पीड़ित महिलाएं या तो पुलिस के पास नहीं जाती हैं या फिर चुप रह जाती हैं। समय-समय पर पुलिस तंत्र और उसकी कार्यशैली में सुधार के लिए आवाजें उठती रही हैं। लेकिन कार्यशैली में बदलाव और महिलाओं सहित गरीब और कमजोर तबकों की सामाजिक समस्याओं को लेकर पुलिस महकमे को संवेदनशील बनाने और प्रशिक्षित करने की पहल नहीं की गई। नतीजतन, आज भी उत्पीड़न की शिकायत लेकर मदद के लिए पुलिस के पास पहुंचने वाली महिलाओं के दोहरे शोषण और उत्पीड़न की घटनाएं अक्सर सामने आ रही हैं।
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