सम्पादकीय

पर्यटन को 'तौबा' से बचाएं

Rani Sahu
30 Dec 2021 7:09 PM GMT
पर्यटन को तौबा से बचाएं
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वर्षांत पर्यटन के मूड में हिमाचल खुद की आजमाइश देख सकता है

वर्षांत पर्यटन के मूड में हिमाचल खुद की आजमाइश देख सकता है। फिर भीड़ के आगोश में पर्यटक स्थल और जश्न की बारात में झूमते खरे खोटे अनुभव। सबसे बड़ा उदाहरण अब अटल टनल सुरंग के आसपास हिमाचल की तस्वीर में पर्यटन का मक्का खोजता है, तो भीड़ की तमाम पेरशानियांे से जूझने की नौबत का आलिंगन करता पूरा परिदृश्य बेजार है। गाडि़यों के समुद्र का पर्वत की ऊंचाई से अनूठा मुकाबला और यहां पर्यटन के नाम पर जोश की दीवानगी यह कि हर दिन झूमते हुए छह हजार वाहन सीधी सुरंग को भी टेढ़ा कर देते हैं और दूरियों को मिटाने के संकल्प में लाहुल-स्पीति का जन जीवन यहां आकर भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। सुरंग ने पर्यटक खींचे, लेकिन भीड़ ने पर्यटन के ही कान खींच लिए। मनाली से अटल टनल तक पर्यटन का चर्मोत्कर्ष अगर ऐसा हो सकता है, तो पूरे प्रदेश की तस्वीर में अफरातफरी का आलम क्रिसमस से नववर्ष के आगमन तक देखा जा सकता है। हर पर्यटक स्थल पर ट्रैफिक जाम में रेंगते वाहन समूचे उद्योग को शर्मिंदा करते हैं। अगर पर्यटकों से उनके अनुभव का पूछा जाए, तो हिमाचल से तौबा करने वालों का दर्द पढ़ा जा सकता है वरना इसी आलम पर हम खुश होते केवल सैलानियों की शुमारी का लेखा-जोखा कर सकते हैं। अगर हर दिन तकरीबन छह हजार गाडि़यां अटल टनल पहुंच रही हैं, तो क्या वहां के बंदोबस्त हिमाचल के समूचे पर्यटन को चार चांद लगाते हैं या पर्यटन की कटुता में विषाद पैदा होता है। क्या वहां पर्यटन अपना शिष्टाचार पैदा कर पाया है। आखिर हम पर्यटक को दिखा क्या रहे हैं।

घंटों डलहौजी, शिमला या मकलोडगंज के टै्रफिक जाम में फंसे पर्यटक के लिए नव वर्ष आगमन का जश्न मनाना केवल मुसीबतों भरा कब तक जारी रहेगा। ऐसे में क्या महापर्यटन के लिए हिमाचल ने अपना कोई रोड मैप तैयार किया। अगर आज पर्यटक नए साल के स्वागत के लिए धार्मिक स्थलों, पर्यटन डेस्टिनेशन या अटल टनल का रुख करने को और गति देते हैं, तो हमारे प्रबंध क्या हंै। एक दो जगह 'विंटर क्वीन' जैसी प्रतियोगिताएं वर्षांत पर्यटन का महत्त्वपूर्ण आकर्षण नहीं हो सकतीं, बल्कि हर प्रमुख मंदिर परिसर को गीत-संगीत के समारोहों के साथ अगले साल का सूर्योदय करना चाहिए। ऐसे में भाषा-संस्कृति विभाग के साथ मिलकर लोक संस्कृति महोत्सवों का आयोजन पूरे प्रदेश के पर्यटक स्थलों के मिजाज को रंगीन बना सकते हैं। वर्षांत पर्यटन को हिमाचली फूड फेस्टिवल के साथ जोड़कर शिमला, मनाली व धर्मशाला जैसे स्थलों में हिमाचली व्यंजनों के अलावा ऐसी अनेक प्रतियोगिताओं में राष्ट्रीय पकवानों की प्रयोगाशाला बनाई जा सकती है, जहां फूड इंडस्ट्री के उत्पाद भी पर्यटकांे के लिए खरीददारी का बहाना बन सकते हैं। हिमाचल के ऊनी वस्त्रों व ग्रामीण एवं दस्तकारी से जुड़े उत्पादों के मेले भी शुरू किए जा सकते हैं। अटल टनल जा रहे पर्यटकों के लिए अगर मंडी में एक बड़े व्यापारिक, सांस्कृतिक व फूड मेले का आयोजन किया जाए, तो पर्यटक की राहें बदलेंगी और उनके रुकने का प्रायोजन भी बढ़ेगा।
प्रदेश में पर्यटक सीजन यानी गर्मियों के बाद वर्षांत पर्यटन की बहार निरंतर बढ़ रही है, जबकि धार्मिक पर्यटन का उत्साह कभी कम नहीं होता अन्यथा सप्ताहांत पर्यटन ही एकमात्र सहारा बना हुआ है। ऐसे में पर्यटन को भीड़ बनने से बचाने के लिए प्रवेश स्थानों से पंजीकरण करते हुए तमाम व्यवस्थाओं की मानिटरिंग ऐप के जरिए शुरू करनी होगी ताकि कोई भी डेस्टिनेशन ओवर क्राउडिंग का शिकार न हो। हिमाचल में पर्यटन को उत्पाद की तरह देखें, तो इसके साथ मनोरंजन, आधारभूत सुविधाओं, परिवहन, पार्किंग और आवश्यक सूचनाओं को जोड़ना होगा। दूसरी ओर बढ़ते पर्यटन ने बेशक होटलों की छतरियां तान दी हों, रेस्तरां को भर दिया हो, व्यापार में निखार आ गया हो, परिवहन क्षेत्र को लबालब कर दिया हो या इससे राज्य की जीडीपी में निखार आ रहा हो, लेकिन इसके प्रतिकूल प्रभाव से आम नागरिक शिकार हो रहा है। होटल व्यवसायी या पर्यटन आधारित व्यापार से कमाई बढ़ गई है, लेकिन पर्यटक के भीड़ बनतेे ही हिमाचल का नागरिक समुदाय अपनी सुविधाओं से वंचित तथा जीवनशैली पर प्रतिकूल दबाव झेलता है। अतः हर तरह के पर्यटक सैलाब से हिमाचली नागरिक को बचाते हुए पूरे उद्योग को इस मामले में सहभागिता निभानी होगी।

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