सम्पादकीय

तेल की कीमतों को लेकर सऊदी अरब-अमेरिका में तनातनी, क्या इसका असर बाइडेन की राजनीति पर पड़ेगा?

Gulabi Jagat
21 March 2022 7:34 AM GMT
तेल की कीमतों को लेकर सऊदी अरब-अमेरिका में तनातनी, क्या इसका असर बाइडेन की राजनीति पर पड़ेगा?
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तेल की कीमतों को लेकर सऊदी अरब-अमेरिका में तनातनी
ज्योतिर्मय रॉय.
रूस-यूक्रेन संघर्ष (Russia-Ukraine War) के कारण सऊदी अरब के साथ अमेरिकी संबंधों ने एक नया मोड़ लिया है. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के जवाब में, संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) ने रूस से तेल आयात (Oil Import) पर प्रतिबंध सहित कई अन्य प्रतिबंध लगाए हैं. जिस के कारण विश्व बाजार में तेल की कीमत आसमान छू रहा है. इस पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका को उम्मीद थी कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात तेल उत्पादन को बढ़ाएंगे. लेकिन सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के नेता कथित तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के अनुरोध को खारिज कर दिया है.
विश्व बाजार में तेल संकट
विश्व बाजार में तेल संकट गहराता जा रहा है, जिसका नकारात्मक प्रभाव दुनिया के विभिन्न देशों की उत्पाद शिल्प और अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. कोरोना के कारण दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था पहले से ही प्रभावित है, विश्व बाजार में तेल की बढ़ती कीमत इन देशों की अर्थव्यवस्था को तबाह कर सकती है. इसलिए तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर विभिन्न देशों की ओर से अमेरिका पर दबाव बढ़ रहा है. यदि विश्व बाजार में तेल की कीमतों पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया तो इसका असर अमेरिका और उनके सहयोगियों के आपसी संबंधों पर पड़ेगा, जिसका सीधा अर्थ रूस-यूक्रेन संघर्ष को लेकर पश्चिमी देशों की एकता प्रभावित होगा.
2024 में होने वाली अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए रूस-यूक्रेन संघर्ष एक मोहरा मात्र
अफगानिस्तान में अमेरिका की हार के बाद, दुनिया में अमेरिका की गिरती छवि और देश के भीतर जो बिडेन की गिरती लोकप्रियता ने 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जो बिडेन और उनकी पार्टी की स्थिति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए जो बाइडेन रूस-यूक्रेन संघर्ष में अपना भविष्य देखते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में अपनी और अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत करने के लिए जो बाइडेन रूस-यूक्रेन संघर्ष को मोहरा बना रहे हैं.
विश्व बाजार में तेल की बढ़ती कीमतों से बाइडेन परेशान
बाइडेन रूस-यूक्रेन संघर्ष में नाटो का नेतृत्व करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. जो बाइडेन को रूस-यूक्रेन संघर्ष में यूरोपीय देशों का भरपूर समर्थन और सहयोग मिल रहा है. लेकिन रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण तेल की बढ़ती कीमतें बाइडेन की महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेर सकता है. इसलिए, जो बाइडेन के निर्देश पर विकल्प तलाशने के लिए एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल पहले ही वेनेजुएला का दौरा कर चुका है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2019 में वेनेजुएला के साथ राजनयिक संबंध तोड़ था, तब से अब तक वेनेजुएला पर तेल प्रतिबंध लगा हुआ है. लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुये संयुक्त राज्य अमेरिका अब तेल प्रतिबंध हटाने की संभावना पर चर्चा कर रहा है. लेकिन हकीकत यह है कि रूस हर दिन विश्व बाजार में 25 लाख बैरल तेल की आपूर्ति करता है. वास्तविकता यह है कि न तो वेनेजुएला और न ही ईरान के पास विश्व बाजार में प्रतिदिन 25 लाख बैरल तेल की आपूर्ति करने की क्षमता है.
उत्पादन बढ़ाने के लिए ईरान और वेनेजुएला को अपने तेल क्षेत्रों और राष्ट्रीय तेल कंपनियों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है, जो एक समय लेने वाली लम्बी प्रक्रिया है. वर्तमान में, पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) के नेतृत्व में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में महत्वपूर्ण मात्रा में अतिरिक्त तेल का उत्पादन करने की क्षमता है. केवल उनके पास ही बाजार को स्थिर करने की शक्ति है. वे तय कर सकेंगे कि तेल की कीमत 150 प्रति बैरल के भीतर रहेगी या 150 रुपये से अधिक होगा.
सऊदी-अमेरिकी संबंधों में तनाव
सऊदी नेतृत्व के साथ बाइडेन प्रशासन के संबंध कभी बेहतर नहीं रहे. पिछले साल, बाइडेन ने एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट जारी करने का आदेश दिया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के आदेश पर इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में असंतुष्ट सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या कर दी गई थी. हालांकि बाइडेन ने मोहम्मद बिन सलमान के खिलाफ सीधी कार्रवाई नहीं की, जिस के लिए अमेरिका में बाइडेन की व्यापक रूप से आलोचना की गई. हालांकि, बाइडेन के राष्ट्रपति बनने से बहुत पहले से ही यूएस-सऊदी संबंध अच्छे नहीं थे.
अमेरिका के विश्व व्यापार केंद्र में 'ट्विन टावर्स' पर हुए आतंकी हमले के बाद से सऊदी अरब के साथ अमेरिकी संबंधों में गिरावट देखा गया है. जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने इराक पर आक्रमण किया, तो सऊदी शाही परिवार ने इसका विरोध किया. नतीजतन, रिश्ते बिगड़ने लगे. बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने पर उस रिश्ते के बिगड़ने में और तेजी आई. उनके प्रशासन ने अपना ध्यान मध्य पूर्व से एशिया की ओर स्थानांतरित कर दिया. ओबामा की इस नीति को अमेरिका के मध्य पूर्व सहयोगियों ने इसे अमेरिका द्वारा "मध्य पूर्व के परित्याग" के रूप में देखाने लगा था. 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा ईरान के साथ परमाणु समझौता करने के बाद, सउदी को यह विश्वास होना शुरू हो गया कि संयुक्त राज्य अमेरिका अपने लंबे समय से रणनीतिक सहयोगी रहे सऊदी अरब को छोड़ रहा है.
अमेरिका के साथ बिगड़ते संबंधों ने न केवल सऊदी अरब को रूस पर निर्भर बना दिया है, बल्कि सऊदी सरकार फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम को भी वैकल्पिक सहयोगी मान रही है और उनके साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हुए है. ओबामा के उत्तराधिकारी, डोनाल्ड ट्रम्प ने मोहम्मद बिन सलमान के साथ अच्छे व्यक्तिगत संबंध बनाए थे, लेकिन ट्रम्प के नेतृत्व वाली सरकार के साथ, सऊदी अरब और अमेरिकी द्विपक्षीय संबंधों में गिरावट जारी रहा. ईरान द्वारा सऊदी अरब के केंद्रीय तेल संयंत्र पर हमला करने के बाद 2019 में सऊदी तेल उत्पादन में 50 प्रतिशत की गिरावट आई. इस हमले के बाद से अमेरिका ने सऊदी अरब का पक्ष नहीं लिया और न ही उसने ईरान के खिलाफ कोई कार्रवाई की है. जिसके कारण सऊदी अरब के साथ अमेरिकी संबंधों में गिरावट गहराता गया.
ओपेक प्लस बाइडेन के लिए नई चुनौती
जब ट्रंप राष्ट्रपति थे, सऊदी अरब रूस के साथ अपने संबंधों को गहरा कर रहा था. रूस के साथ संबंधों को गहरा करने की प्रक्रिया 2016 के अंत में शुरू हुई, यानी ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से ठीक पहले. उस समय, ओपेक और रूस तेल उत्पादन को कम करने के लिए एक समझौते पर पहुंचे थे. सऊदी अरब और रूस ओपेक प्लस समझौते के माध्यम से तीन साल से उत्पादन कोटा समायोजित कर रहे हैं.
लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण मार्च 2020 में तेल की वैश्विक मांग में गिरावट को देखते हुए ओपेक प्लस ने उत्पादन में कमी की मांग की, जिसे रूस ने मना कर दिया. नतीजतन, सऊदी अरब ने आपूर्ति बढ़ाकर तेल बाजार में बाढ़ ला दी, जिस के कारण रूस को ओपेक प्लस समझौते को मानने के लिए मजबूर होना पड़ा. वर्तमान में सऊदी अरब प्रति दिन 4 लाख बैरल का उत्पादन कर रहा है, जो ओपेक प्लस समझौते के अनुरूप उत्पादन में वृद्धि का हिस्सा है. तेल उत्पादन लक्ष्यों के समन्वय के अलावा, सऊदी-रूसी संबंधों में अब वित्तीय और राजनीतिक व्यवस्था भी शामिल है. रूस सऊदी अरब के लिए एक संभावित हथियार आपूर्तिकर्ता है. सऊदी का मानना है कि ईरान पर दबाव बनाने की क्षमता रूस के पास है.
सऊदी अरब संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बिगड़ते संबंधों के कारण न केवल रूस पर निर्भर है, बल्कि सऊदी सरकार फ़्रांस और यूनाइटेड किंगडम को वैकल्पिक सहयोगी के रूप में भी विचार कर रही है और उन्होंने उनके साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हैं. खासकर उनसे हथियारों की खरीदारी बढ़ने से रिश्ते मजबूत हो रहे हैं. सऊदी अरब स्थानीय स्तर पर अपने हथियार बनाने के लिए चीन और अन्य के साथ संयुक्त उद्यम भी कर रहा है. बाइडेन प्रशासन ने पहले ही सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को सैन्य उपकरणों की बिक्री पर रुकावट पैदा कर रहा है. यमन में ईरानी समर्थित हौथी विद्रोहियों पर सऊदी अरब की कार्रवाई के लिए खुफिया या सैन्य सहायता करने से भी वाशिंगटन ने इनकार किया है.
पिछले नवंबर में अमेरिकी मध्यावधि चुनावों में डेमोक्रेट्स का लाभ सुनिश्चित करने के लिए, बिडेन प्रशासन ने सऊदी अरब से तेल उत्पादन बढ़ा कर विश्व बाजारों में तेल की कीमतों को कम करने का अनुरोध किया था, लेकिन सऊदी सरकार ने अमेरिकी अनुरोध को खारिज कर दिया था. इस बार भी सऊदी सरकार ने उसी तरह अमेरिकी अनुरोध को खारिज कर दिया है. सऊदी अरब के व्यवहार से पता चलता है कि वह तेल की कीमतें तभी बढ़ाएगा जब उसे उनकी जरूरत होगी. वे अमेरिकी पक्ष में रूस से अलग होने का जोखिम नहीं उठाएंगे. वे अपने आर्थिक भविष्य को भी जोखिम में नहीं डालेंगे.
विश्व शांति के लिए बाइडेन-पुतिन वार्ता आवश्यक
यदि रूस-यूक्रेन संघर्ष जारी रहता है, तो इसका खामियाजा अमेरिका के साथ साथ पश्चिमी देशों को अधिक भुगतना पड़ेगा. पश्चिमी देश तेल और गैस की बढ़ती कीमतों को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाएगा. जिसका सीधा असर अमेरिका की घरेलू राजनीति और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, यह बाइडेन के लिए फायदेमंद नहीं है. ऐसे में बाइडेन-पुतिन वार्ता अहम भूमिका निभा सकती है, जो इन दोनों देशों के हित के साथ-साथ विश्व शांति के लिए भी बेहद जरूरी है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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