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सऊदी अरब बहुत तेजी से बदला है और बदल भी रहा है।
आदित्य चोपड़ा| सऊदी अरब बहुत तेजी से बदला है और बदल भी रहा है। वहां से लगातार आए दिन हैरान करने वाली खबरें आ रही हैं और ये सारी महिलाओं से जुड़ी हुई हैं। वैसे तो दुनिया की नजर में सऊदी अरब की छवि एक कट्टरपंथी इस्लामिक देश की है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से महिलाओं को वहां की सरकार ने एक-एक बंधन से आजाद किया है। सऊदी प्रिंस मोहम्मद सलमान सऊदी की छवि को दुनिया की नजर में बदलना चाहते हैं।
नई खबर यह है कि सऊदी अरब में दो महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कर दिया गया है। सऊदी प्रिंस के आदेश पर उनकी रिहाई की गई। तीन वर्ष पहले अधिक स्वतंत्रता दिए जाने की शांतिपूर्ण रूप से वकालत करने वाली महिला कार्यकर्ताओं के खिलाफ व्यापक कार्रवाई की थी। ऐसा लगता है कि समर बादानी और नसीमा अल सदा के साथ 2018 की कार्रवाई में हिरासत में ली गई सभी महिला कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कर दिया है। ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी रिहाई की पुष्टि की है। इन महिलाओं को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी, जिनमें दो साल की सजा निलम्बित कर दी गई है। इन महिलाओं ने सऊदी अरब के पुरुष संरक्षता कानून की खुलकर आलोचना की थी। इन कानूनों में महिलाओं के पतियों, पिताओं और कुछ मामलों में उनके बेटों को अधिकार दिया था कि वे महिलाओं का पासपोर्ट हासिल करने और यात्रा के संबंध में नियंत्रित कर सकते थे।
इन कार्यकर्ताओं ने महिलाओं को गाड़ी चलाने का अधिकार दिए जाने की वकालत भी की थी। यद्यपि दोनों महिला कार्यकर्ताओं की सशर्त रिहाई हुई है। वे पांच साल तक विदेश यात्रा नहीं कर सकतीं। जेल से रिहा की गईं अन्य सऊदी महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की तरह इन दोनों महिलाओं को भी मीडिया से बात करने और अपने मामले को लेकर कुछ भी आनलाइन पोस्ट करने पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है। इससे पहले लगभग एक दर्जन महिलाओं ने सऊदी न्यायाधीशों को बताया था कि जेल में नकाबपोश पुरुषों ने उनकी पीठ और जांघों पर बेंत से मारा था और पानी के भीतर ले जाकर उन्हें यातानाएं दी गईं। सऊदी प्रिंस इन खबरों को लेकर काफी चिंतित थे। अब जबकि महिलाओ को कार चलाने का अधिकार दिया जा चुका है और पुरुषों को महिलाओं को नियंत्रित करने के अधिकार भी सीमित िकए जा चुके हैं तो फिर महिला कार्यकर्ताओं को जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं था।
वर्ष 2015 में सऊदी अरब की महिलाओं को पहली बार वोट देने और नगर निगम चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया। 2017 में सऊदी अरब में महिलाओं को 60 वर्ष के संघर्ष के बाद ड्राइविंग का अधिकार दिया गया था। सऊदी अरब में रहने वाली महिलाएं लम्बे समय से अपनी मर्जी से जिन्दगी जीने के लिए संघर्ष कर रही हैं। महिलाएं पुरुषों की इजाजत के बिना बाहर घूमने नहीं जा सकतीं, अगर महिलाएं घर से बाहर निकलती हैं तो उनके साथ परिवार का कोई पुरुष होना चाहिए। यहां की महिलाएं किसी बाहरी पुरुष से बात नहीं कर सकतीं। महिलाएं किसी गैर मुस्लिम से शादी नहीं कर सकतीं। इसके अलावा सुन्नी महिलाएं शिया पुरुषों से शादी नहीं कर सकतीं। पुरुषों की इजाजत के बिना महिलाएं किसी भी तरह का मेडिकल ट्रीटमैंट भी नहीं ले सकतीं। यहां के बच्चे बार्बी डाल से भी नहीं खेल सकते क्याेंकि इसकी इजाजत नहीं है। पुरुषों का मानना है कि बार्बी डाल के कपड़े गैर इस्लामी होते हैं। धीरे-धीरे इन पाबंदियों को हटाया जा रहा है ताकि महिलाएं खुली हवा में सांस ले सकें। सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था तेल पर आधारित है, जब कुछ वर्ष पहले तेल के गिरते दामों के चलते अर्थव्यवस्था पर संकट खड़ा हुआ तो वहां के शासकों ने कमाई के दूसरे तरीकों को तलाशना शुरू किया। उन्होंने पर्यटन के बढ़ावा दिया। महिलाओं को स्टेडियम में जाकर फुटबाल मैच देखने की इजाजत दी गई। महिलाओं को यह अधिकार दिया गया कि वे अपने अभिभावकों की स्वीकृति के बिना अपना नाम बदल सकती हैं। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई इस बात का संकेत है कि वहां महिलाओं की घुटन भरी जिन्दगी में बदलाव आ रहे हैं। धर्म की दीवारों को फांद कर महिलाओं की स्वतंत्रता और सशक्तिकरण की धारणा वैश्विक स्तर पर पुख्ता हो चुकी है। सऊदी अरब एक उदार देश के तौर पर अपना ब्रैडिंग कर रहा है।
यह भी सच है कि कट्टरपंथी विचारो से किसी भी देश का विकास नहीं हो सकता। विकास के लिए उदारवादी सोच का होना बहुत जरूरी है। सऊदी प्रिंस विज़न 2030 पर काम कर रहे हैं। वह दुनिया भर में महिलाओं के प्रति सख्त छवि से बाहर निकलना चाहता है। पिछले कुछ वर्षों से चल रहे प्रयासों से वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी 35 फीसदी से ज्यादा हो चुकी है।

Triveni
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