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- सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
आदित्य चोपड़ा: भारतीय उपमहाद्वीप में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया गया है और दूसरी तरफ यूरोपीय व एशियाई महाद्वीपों के समागम या संगम स्थल के स्वरूप में खड़े हुए पूर्व सोवियत संघ के दो देशों रूस व यूक्रेन के बीच महायुद्ध छिड़ा हुआ है। जिस 'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' प्रतिस्थापना के ऊपर भारत की प्रचीन संस्कृति ने 'वसुधैव कुटुम्बकम्' का उद्घोष दिया वह मात्र कोई उपदेश नहीं था बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का ऐसा व्यावहारिक कर्मकांड था जिस पर चल कर समस्त विश्व की आपसी सम्बन्धों में आने वाली टकराहट का हल आसानी से खोजा जा सकता था। यही कारण रहा कि हजारों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति के इतिहास में हमें भारत द्वारा किसी अन्य देश या क्षेत्र पर आक्रमण करने का एक भी उदाहरण नहीं मिलता है। ईसा से पूर्व के जिस रोमन साम्राज्य का विस्तार हम देखते हैं वह भारतीय संस्कृति के विपरीत 'विश्व विजय' की प्रतिस्थापना पर अपनाया हुआ व्यावहारिक विचार था मगर उसका क्षरण भी भारत की धरती पर आकर ही 'अशोक महान' के दादा 'चन्द्र गुप्त मौर्य' के शासनकाल में तब हुआ जब पहले सिकन्दर पंजाब के राजा पोरस से युद्ध करके वापस लौट गया और उसकी मृत्यु के बाद जब उसका सेनापति सिल्यूकस पुनः सम्राट चन्द्रगुप्त से टकराया तो वह बुरी तरह पराजित हुआ और अपनी पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से करके स्वदेश चला गया। दरअसल चन्द्रगुप्त की मौर्य की यूनानी सम्राट सिल्यूकस पर यह विजय भारत के उस विचार और कार्य व्यवहार की विजय थी जिसका सूत्र सत्यम् शिवम् सुन्दरम् था। शिव अर्थात प्रकृति ही सत्य है और वही सुन्दर है। अतः शिव की सुन्दरता का रहस्य प्रकृति की सुन्दरता में बसता है और इसके सत्य होने की वजह से प्रकृति में अवस्थित जीवात्मा या मनुष्य पर ही इसे सुन्दर बनाने का दायित्व रहता है जिसे वह केवल वसुधैव कुटुम्बकम् सिद्धान्त के मार्गदर्शन में काम करते हुए ही प्राप्त कर सकता है। इसमें युद्ध स्वयमेव वर्जित हो जाता है जिससे प्राणियों में प्रेम व सद्भावना बनी रहे और विश्व का कल्याण होता रहे। हालांकि यह विशुद्ध धार्मिक दृष्टान्त है मगर इसका वैज्ञानिक आधार सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के सिद्ध सूत्र में ही छिपा हुआ है। रामायण में भगवान शिव पृथ्वी पर स्त्री वियोग में वन विचरण करते श्री राम को जब देखते हैं तो उन्हें श्रद्धापूर्वक सिर नवा कर स्वर्ग से ही अपनी पत्नी पार्वती के सामने प्रणाम करते हैं। इस पर पार्वती को बहुत आश्चर्य होता है क्योंकि तीनों लोकों के स्वामी कहे जाने वाले शिव एक साधारण मानव के सामने नतमस्तक होते हैं। शिव पार्वती को समझाते हैं कि वह सामान्य मानव नहीं बल्कि पृथ्वी लोक के सर्वज्ञ भाग्य विधाता हैं। पार्वती तब स्वयं सीता का रूप धारण कर श्री राम की परीक्षा लेती हैं परन्तु श्री राम उन्हें माता कह कर जब सम्बोधित करते हैं तो पार्वती को अपनी अज्ञानता पर क्षोभ होता है। इसका वैज्ञानिक आधार व तर्क यही है कि पृथ्वी लोक के वासी मानव को प्रकृति (शिव) ने बुद्धि व विवेक से परिपूरित किया है और अपनी इस बुद्धि का इस्तेमाल करके ही वह इस प्रकृति में सत्य व सुन्दरता को अधिष्ठापित कर सकता है अतः पृथ्वी या मृत्युलोक का वही सबसे ज्ञानवान प्राणी है। अतः सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के मूल में मनुष्य की भूमिका ही सर्वज्ञ और सर्वग्राही है परन्तु रूस व यूक्रेन के बीच जो संघर्ष चल रहा है उसके मूल में इन दोनों देशों के राष्ट्र प्रमुखों की अहम भावना अपने-अपने हितों को लेकर है। यूक्रेन चाहता है कि वह पश्चिमी देशों के शक्तिशाली सामरिक संगठन नाटो का सदस्य बन जाये जिससे उसकी ताकत को नाटो देशों का सहारा मिल जाये और रूस चाहता है कि यूक्रेन ऐसा किसी कीमत पर न करे क्योंकि ऐसा होने से उसकी ताकत कमजोर होगी और उसकी सुरक्षा को लगातार खतरा पैदा हो जायेगा। वास्तविकता यह है कि 1991 तक यूक्रेन और रूस दोनों ही सोवियत संघ का हिस्सा थे, इसके बावजूद वे आपस में लड़ रहे हैं और यूक्रेन रूस की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर देना चाहता है। यदि यूक्रेन नाटो का सदस्य बनने की जिद छोड़ देता है तो समस्या स्वयं ही समाप्त हो जायेगी परन्तु यूक्रेनी राष्ट्रपति लेजेंस्की जिद पर अड़े हुए हैं। ऐसा करके वह अपनी जड़ों से ही कट रहे हैं क्योंकि उनका जन्म सोवियत संघ से ही हुआ है। यहीं पर भारतीय संस्कृति का उद्घोष वसुधैव कुटुम्बकम् दिशा दिखाता है और निर्देश देता है कि पृथ्वी के सबसे बुद्धिमान मानव को विवेक से काम लेते हुए सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए जिससे प्रकृति 'कुरूप' या मैली न हो। शिवरात्रि का अन्तर्मुखी सन्देश भी यही है तभी तो इस दिन शिव को प्रकृति प्रदत्त मूल वस्तुएं ही भेंट की जाती हैं। युद्ध केवल प्रकृति को नुकसान पहुंचाने के दूसरा काम नहीं करता।