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अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद के साथ कैसे साधेगी बीजेपी
संयम श्रीवास्तव।
धर्म की सियासत से निकलकर अब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति वर्ग की सियासत में आ गई है. और इसमें सबसे बड़ा वर्ग है अन्य पिछड़ा वर्ग जिसे ओबीसी (OBC) कहते हैं. यह वर्ग उत्तर प्रदेश की कुल आबादी का लगभग 45 फ़ीसदी हिस्सा है. इसीलिए वर्तमान राजनीति यानि यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) में इस वर्ग की खूब पूछ है और इसकी सियासत करने वाले नेताओं की भी. अन्य पिछड़ा वर्ग में कई जातियां आती हैं. और हर जाति का अपना एक राजनीतिक दल है. जैसे यादव वोट बैंक की सियासत समाजवादी पार्टी करती है, उसी तरह पटेल वोट बैंक की सियासत अनुप्रिया पटेल, निषाद वोट बैंक की सियासत संजय निषाद और राजभर वोट बैंक की सियासत ओमप्रकाश राजभर करते हैं. बाकी अन्य ओबीसी जातियों की सियासत भी ऐसे ही जाति विशेष नेता करते हैं.
लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव तक, बीजेपी ने पूरे प्रदेश में ओबीसी जातियों को दो पक्षों में बांट दिया. एक में यादव वोट बैंक जो समाजवादी पार्टी के साथ था और दूसरा गैर यादव ओबीसी वोट बैंक जो बीजेपी के साथ था. 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने ज्यादातर जाति विशेष पार्टियों से गठबंधन कर लिया और चुनाव लड़ा. जिसमें उसे भारी बहुमत हासिल हुआ. लेकिन इस बार की स्थिति काफी बदली हुई है. क्योंकि कई ओबीसी प्रमुख चेहरे जो बीजेपी में हुआ करते थे, अब समाजवादी पार्टी में शामिल हैं. लेकिन अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद जैसे नेता अब भी भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं. इसलिए सवाल उठना लाजमी है कि इस बार का ओबीसी वोट बैंक मोदी और योगी के लिए कितना उपयोगी है.
बीजेपी जो कहती है करती है
TV9 सत्ता सम्मेलन में निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद ने ओबीसी समुदाय को लेकर कहा कि देश में पहली बार ऐसा हो रहा है जब अन्य पिछड़ा वर्ग को राजनीति में एक खास अहमियत दी जा रही है. नहीं तो आज से पहले तक जितनी भी सरकारें थीं, वह सिर्फ जाति विशेष की सरकार थीं. अखिलेश यादव की सरकार थी तब उन्होंने सिर्फ यादवों का विकास किया और यादवों के लिए काम किया. बाकी की ओबीसी जातियों को ऐसे ही छोड़ दिया. इसी तरह से जब मायावती की सरकार थी तो उन्होंने पूरी दलित जातियों में से केवल एक जाति का विकास किया, उसके लिए काम किया, उसकी सुनवाई हुई और बाकी की दलित जातियों को ऐसे ही छोड़ दिया गया.
हम भारतीय जनता पार्टी के साथ इसलिए अभी तक बने हुए हैं क्योंकि बीजेपी ने अति पिछड़ा और पिछड़े वर्ग की बात की. उनके मुद्दों पर काम किया और हम आगे भी बीजेपी के साथ बने रहेंगे. क्योंकि बीजेपी जो कहती है वह देर सवेर करती है. वहीं जातिगत जनगणना के मुद्दे पर संजय निषाद का कहना है कि वह इसके समर्थन में हैं, लेकिन इससे पहले सरकार को जो जातियां हैं उनकी विसंगतियों को दूर करना चाहिए. बाहुबलियों को टिकट देने की बात पर भी संजय निषाद ने मुखरता से जवाब दिया. उन्होंने कहा कि एनडीए ने तय किया है कि इस बार अच्छी छवि वाले लोगों को टिकट दिया जाएगा, इसलिए इसी नीति पर हम भी चलेंगे.
ज्यादा सीटों पर लड़ेगी अपना दल एस
वहीं TV9 सत्ता सम्मेलन में अपना दल एस की प्रमुख अनुप्रिया पटेल कहती हैं कि राजनीतिक पार्टियों को सिर्फ चुनाव के वक्त ही ओबीसी समुदाय की याद नहीं आनी चाहिए, बल्कि पूरे 5 साल इस समुदाय के लिए काम करना चाहिए. सीटों को लेकर अनुप्रिया पटेल ने साफ कहा है कि इस बार अपना दल एस पहले के मुकाबले ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगा. हालांकि कितनी सीटों पर लड़ेगा फिलहाल ये आंकड़े तय नहीं हुए हैं. जातिगत जनगणना को लेकर भी अनुप्रिया पटेल ने साफ किया कि वह इसके समर्थन में है और इसके लिए वह बीजेपी से बात भी कर रही हैं.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी का ओबीसी प्लान
भले ही भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर कई बड़े ओबीसी चेहरे समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं. लेकिन अब भी बीजेपी के साथ कई ओबीसी वर्ग के चेहरे हैं जो अपनी-अपनी जातियों में अच्छा प्रभाव रखते हैं. इसके साथ ही अब बीजेपी ने ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए लगभग 60 फ़ीसदी से अधिक ओबीसी प्रत्याशी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में उतार दिए हैं.
कोरोना महामारी को देखते हुए चुनाव आयोग ने रैलियों और जनसभाओं पर पाबंदी लगा दी है. लेकिन उसकी ओर से 500 लोगों की मौजूदगी में इंडोर मीटिंग की इजाजत अब भी है. बीजेपी इसे ही अपना हथियार बना रही है. बीजेपी के ओबीसी मोर्चा ने घोषणा किया है कि वह तीन-तीन सौ लोगों के साथ हर विधानसभा क्षेत्र में बैठकों का आयोजन करेगी.
वहीं अगर बात टिकट देने की करें तो बीजेपी ने अब तक 196 प्रत्याशियों की जो लिस्ट निकाली है, उसमें 76 ओबीसी उम्मीदवार हैं. हालांकि समाजवादी पार्टी ने भी ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए अब तक 66 ओबीसी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. दरअसल समाजवादी पार्टी ने अब तक 159 प्रत्याशियों की सूची जारी की है, जिसमें 66 उम्मीदवार अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं
संजय निषाद नहीं गए बीजेपी छोड़ कर
पेशे से होम्योपैथिक डॉक्टर और निषाद समुदाय के नेता संजय निषाद आज उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक प्रभावी नाम हैं. यूपी की सियासत में इनके प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की चुनावी तैयारियों को लेकर देश के गृहमंत्री अमित शाह इनसे मुलाकात करते हैं. संजय निषाद की निषाद पार्टी का प्रभाव उत्तर प्रदेश के गंगा किनारे वाले पूर्वी इलाके में माना जाता है. इनमें 16 ऐसे जिले हैं जहां निषाद समुदाय का वोट बैंक जीत हार के लिए निर्णायक साबित होता है. निषाद, मल्लाह, बेलदार, केवट, बिंद जैसे जातियों का प्रभाव उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, संत कबीर नगर, जौनपुर, भदोही, बलिया और वाराणसी जैसे जिलों में माना जाता है.
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