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- व्यंग्य: वैक्सीन बनाने...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोना जी के जाने की अभी तक कोई भनक हमारे कानों में नहीं पड़ी है। हालांकि उनके 'सामाजिक' होने को लेकर रोज नए रहस्य खुल रहे हैं। एक ताजा शोध बताता है कि वायरस जी में 'मिलनसारिता' का नायाब गुण मिला है। ये जिनकी देह में सक्रिय होते हैं, उसमें सामने वाले 'देहधारी' से मिलने की अजब बेचैनी हो उठती है। ये महाशय उससे मिलने के लिए 'धारक' को उकसाते रहते हैं। या यूं कह लीजिए कि सामने वाले की ओर धकेलते हैं। इसलिए अगर इस तरह की 'मिलाई' से बीमारी की भलाई हो रही है तो इसका श्रेय केवल वायरस जी को जाता है, 'धारक' को नहीं। इसका मतलब है कि ये अपनी सक्रियता से अनूठे किस्म का ऐसा प्रेम-जाल फैलाते हैं कि सामने वाला मास्क-विहीन हो जाता है। इस लिहाज से कोरोना जी बड़े ही शातिर और दिलफेंक किस्म के निकले हैं। भले ही इनकी यह अदा किसी और की जान ले ले! और जान का क्या है, कोरोना जी नहीं लेंगे तो दूसरे तमाम आम आदमी की जान के पीछे पड़े हैं। बहरहाल इस बहाने जान निकलेगी तो सरकार की 'गिनती' में तो आएगी!