सम्पादकीय

भ्रष्टाचार के सरताज: घूसखोरी का चक्र तोड़ने की हो कोशिश

Gulabi
1 Dec 2020 5:10 AM GMT
भ्रष्टाचार के सरताज: घूसखोरी का चक्र तोड़ने की हो कोशिश
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हर भारतीय के लिए यह शर्मसार करने वाली स्थिति है कि हम रिश्वतखोरी के मामले में पूरे एशिया में अव्वल हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर भारतीय के लिए यह शर्मसार करने वाली स्थिति है कि हम रिश्वतखोरी के मामले में पूरे एशिया में अव्वल हैं। दरअसल, ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर-एशिया शीर्षक से प्रकाशित ट्रंासपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट से यह बात सामने आई।

संस्था ने जून व सितंबर के मध्य 17 देशों के बीस हजार लोगों से सवाल पूछे थे। भारत का रिकॉर्ड सबसे खराब इसलिये है कि यहां घूसखोरी की दर 39 फीसदी है। सर्वे में शामिल 47 फीसदी लोगों का मानना है कि बीते एक साल में भ्रष्टाचार बढ़ा है। वहीं उत्साहजनक बात यह है कि 63 फीसदी लोगों ने माना कि सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिये पहल कर रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 46 फीसदी लोगों ने सार्वजनिक सेवाओं का लाभ उठाने के लिये व्यक्तिगत संबंधों का सहारा लिया। रिश्वत देने वालों में से पचास फीसदी का कहना था कि उनसे रिश्वत मांगी गई।

वहीं करीब 32 फीसदी लोगों का कहना था कि यदि वे घूस नहीं देते तो उनका काम किसी भी सूरत में नहीं हो सकता था। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के इस सर्वेक्षण में जिन सरकारी सेवाओं को शामिल किया गया था उनमें पुलिस, स्कूल, कोर्ट, सरकारी अस्पताल, पहचानपत्र और सेवा लाभ थे। देश में पुलिस को रिश्वत देने वालों का प्रतिशत 42 था। दूसरी तरफ पहचानपत्र जैसे प्रपत्र बनवाने के लिये 41 फीसदी लोगों ने घूस दी। वहीं पुलिस से जुड़े मामलों के निस्तारण के मामले में 39 फीसदी लोगों ने व्यक्तिगत संपर्कों का इस्तेमाल किया। निस्संदेह यह स्थिति हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के क्षरण और चारित्रिक स्तर को भी दर्शाती है। जाहिरा तौर पर ऐसे हालात में आम आदमी को न्याय नहीं मिल पाता।

जो यह भी दर्शाता है कि जिसके पास रिश्वत देने के लिये पैसा नहीं है और संपर्क सूत्र भी नहीं है, उसे अपना जायज काम करवाने के लिये इन विभागों के चक्कर ही काटते रहने होंगे। निस्संदेह इसे हमारी व्यवस्था पर एक शर्मनाक टिप्पणी ही कहा जायेगा। आखिर क्यों लोगों में भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों का खौफ नहीं है। विडंबना यह है कि भ्रष्टाचार के मामले में वे विभाग ज्यादा दागदार हैं, जिनका काम कानून और व्यवस्था की रक्षा करना है। चिंता यह भी है कि भ्रष्टाचार की स्थिति तब है कि जब केंद्र सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात कहती रही है, न खायेंगे और न खाने देंगे के उद्घोष के साथ। सरकार का दावा है कि वह पारदर्शी व्यवस्था स्थापित करने की पक्षधर है। इस दिशा में कुछ प्रयास भी हुए हैं।

दफ्तरों में कर्मचारियों की निगरानी के लिये बायोमीट्रिक हाजिरी की व्यवस्था की गई है, कार्यालयों को इंटरनेट से जोड़ा गया, बाबुओं की मनमानी रोकने के लिये खिड़कियों पर लाइन लगाने की बजाय ऑनलाइन व्यवस्था पर बल दिया गया है। फिर भी यदि रिश्वतखोरी बढ़ी है तो यह हमारी चिंता का विषय होना चाहिए कि भ्रष्टाचार का कोढ़ कैसे मिटेगा। बड़े स्तर का भ्रष्टाचार नये निर्माण, उद्योग व विकास की गति को मंथर करता है।

कहीं न कहीं नौकरशाहों से आम आदमी की दूरी के चलते भी बिचौलियों को भ्रष्टाचार की बेल सींचने का मौका मिलता है। निस्संदेह, रिश्वतखोरी के चक्र को तोड़ने के लिये जनता का अधिकारियों से सीधा संवाद जरूरी है ताकि मिडलमैन भ्रष्टाचार को बढ़ावा न दे सके। कैसी विडंबना है कि लोगों को अपनी जमीन जायदाद के कागज हासिल करने तथा अपनी पहचान को सत्यापित करने के लिये रिश्वत देनी पड़ती है।

खतरा यह भी है कि रिश्वतखोरी के गर्म बाजार में शातिर लोग गैरकानूनी काम भी चुपचाप करवा लेते हैं, जिसका खमियाजा ईमानदार लोगों को ही भुगतना पड़ता है। सही मायनों में देश में ऐसा तंत्र विकसित करने की जरूरत है जो भ्रष्टाचार नियंत्रक व्यवस्था पर नकेल कस सके। आम आदमी को अपना हक मिल सके और जायज काम करवाने के लिये उसे रिश्वत न देनी पड़े।

ऐसी व्यवस्था लोकतंत्र की शुचिता के लिये जरूरी है। अधिकारियों से जनता का सीधा संवाद इसके नियंत्रण में सहायक हो सकता है।


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