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प्रो कबड्डी (Pro Kabaddi) के 2014 से शुरू हुए सफर में न जाने कितने सितारों को समय से पहले रोशन होते देखा तो बुझते भी देखा
प्रो कबड्डी (Pro Kabaddi) के 2014 से शुरू हुए सफर में न जाने कितने सितारों को समय से पहले रोशन होते देखा तो बुझते भी देखा. PKL 8 का आठवां सीजन तकरीबन दो साल के फासले से हुआ है. कोरोना ने दुनिया भर के खेलों पर असर डाला है, ऐसे में जाहिर है प्रो कबड्डी (Pro Kabaddi League) भी अछूती नही रह सकती. अब हुआ यह है कि सातवें सीजन तक जो खिलाड़ी शानदार प्रदर्शन करते रहे, उनमें से ज्यादातर ने अगले ही सीजन में निराश किया है. वजह बिल्कुल साफ अनिश्चितता के माहौल ने खेल और अभ्यास पर भी असर डाला, और जो चल नहीं सके उनमें से अधिकतर वह हैं जो वैसे तो फिट थे, लेकिन मैच फिटनेस की भारी कमी ने उनके प्रदर्शन पर प्रतिकूल असर डाला.
तेलुगू टाइटंस (Telugu Titans) ने अब तक 12 में से सिर्फ एक मैच जीता है, और व्यावहारिक तौर पर देखें तो अब उसकी प्ले ऑफ की संभावनाए न के बराबर हैं. टाइटन्स अभी अंतिम पायदान पर हैं, और आने वाले मुकाबलों में उनसे किसी चमत्कार की उम्मीद भी नहीं की जा सकती. इस टीम में सिद्धार्थ देसाई और रोहित कुमार जैसे बड़े खिलाड़ी शामिल हैं, लेकिन अफसोस देसाई सिर्फ तीन मैच ही खेल सके और उनकी कंधे की चोट फिर से हरी हो गई. देसाई ने तीन मैचों में 34 रेड पॉइंट्स लेकर कोई खराब शुरुआत नहीं की थी, लेकिन उनकी टीम के पास जीत का फॉर्मूला ही नहीं था. टाइटन्स ने रोहित कुमार पर भी दांव खेला था, लेकिन रोहित को पहले से ही चोट थी, और इस बार वह सिर्फ बचते दिखाई दिए. आलम यह कि रोहित के 6 मैचों से सिर्फ 5 पॉइंट्स हैं और टीम हित में उनकी भूमिका न के बराबर है.
टाइटंस के बाद पुणेरी पलटन की टीम भी दो बड़े सितारों के साथ इस सीजन उतरी थी. राहुल चौधरी और नितिन तोमर, अफसोस यह दोनों भी अब तक कुछ खास नहीं कर सके हैं. राहुल को तो सिर्फ चार मैचों मे ही खेलने का मौका मिला है, और अब तक वह दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर सके हैं. नितिन तोमर सात मैचों में अपने नाम महज 25 पॉइंट्स जुटा सके हैं. तोमर मैट पर तो रहते हैं, लेकिन रेड से बचते दिखाई देते हैं. सात खिलाड़ियों के इस खेल में सिर्फ कप्तानी के लिए किसी खिलाड़ी की जगह नहीं बनती, उपयोगिता चाहे डिफेंस में हो या ऑफेन्स मे होनी जरूर चाहिए. पुणेरी पलटन मास्टर टेकटीशियन अनूप कुमार की टीम है. अनूप का शुमार भारतीय कबड्डी में सबसे बड़े नामों में है, लेकिन कमजोर घोड़ों से रेस नहीं जीती जाती और यही वजह है कि पुणेरी पलटन अभी 11 वें स्थान पर है, हालांकि उसने पिछले 5 में से तीन मैच जीते हैं, लेकिन अब प्ले ऑफ का सफर लगातार पीछे छूटता जा रहा है.
बड़े सितारों के नाम का जिक्र करें और टेबिल टॉपर दिल्ली का जिक्र न हो, ऐसा हो नहीं सकता. दिल्ली की कहानी भी अजीब है, नंबर एक पर है, लेकिन सितारों से सजा इसका डिफेंस निराश कर रहा है, जबकि रेडिंग में इकलौता विकल्प नवीन कुमार है, जो पिछले कुछ मैचों से घुटने की चोट से परेशान है. टीम में शामिल एक और अनुभवी खिलाड़ी अजय ठाकुर ने पूरी तरह निराश किया है और 5 मैचों में सिर्फ 4 पॉइंट्स बना पाए हैं. जब किसी टीम की निर्भरता एक या दो खिलाड़ियों पर हो जाए और उन्हें इंजरी हो जाए तो फिर मुश्किलें बढ़ जाती हैं. लेकिन एक बेहतर बात यह है कि आम तौर पर बड़े टैकल की उम्मीद मे असफल प्रयास करने वाली यह टीम फिलहाल अपने आप पर नियंत्रण रख रही है, और कम टैकल और कम फेल्ड टैकल के जरिये टीम को टॉप पर बनाए हुए है. नवीन अगर जल्द फिट होकर वापस नहीं लौटे तो दिल्ली की मुश्किलें बढ़ेंगी, इसमे कोई शक नहीं. प्रो कबड्डी इतिहास के सबसे बड़े डिफेंडर मंजीत छिल्लर की कप्तानी मे, संदीप नरवाल, जीवा कुमार बढ़िया प्रदर्शन कर रहे हैं, जोगिंदर नरवाल फिलहाल इन्जर्ड हैं. एक दिलचस्प पहलू और जोगिंदर नरवाल लेफ्ट कॉर्नर मे खेलते हैं और उनका बेटा विनय भी दिल्ली की टीम में है और लेफ्ट कॉर्नर ही खेलता है. भाई बहनों की जोड़ी को इससे पहले हमने शीर्ष स्तर पर एक साथ खेलते देखा है लेकिन बाप बेटे की संभवतः यह पहली जोड़ी है, जो एक ही टीम मे एक ही पोजीशन पर खेलती है.
लीग में लगातार टॉप थ्री में अपनी जगह तलाशती दबंग दिल्ली, बेंगलूरू बुल्स और गत विजेता बंगाल वारियर्स की कहानी भी जुदा है. यह तीनों टीमे लगातार सरे फेहरिस्त हैं, लेकिन तीनों डिफेंस मे बेहतर नहीं कर पा रही है. एक और समानता इनमें है कि तीनों टीमें एक-एक बड़े स्टार पर निर्भर है, जो चल भी रहे हैं. बंगाल वारियर्स के लिए मनिंदर सिंह, दबंग दिल्ली के लिए नवीन कुमार और बेंगलूरू बुल्स के लिए पवन सेहरावत ने अब तक पॉइंट्स की बरसात की है और तीनों लीग के टॉप थ्री रेडर्स में शामिल हैं. लेकिन महत्वपूर्ण यह भी कि क्या डिफेंस की मजबूती के बिना किसी टीम का शीर्ष पर बने रहना लंबे समय तक संभव है? इससे पहले इस तरह के उदाहरण बहुत दिखाई नहीं दिए हैं. दबंग दिल्ली पर नवीन की चोट का असर दिखने लगा है. लेकिन अच्छा यह हुआ है नवीन की गैर मौजूदगी मे डिफेंस थोड़ा नियंत्रित हुआ है और विजय मलिक जो पहले सपोर्ट रेडर थे, अब मुख्य रेडर के रोल मे हैं और बेहतर कर रहे हैं. मनिंदर को वारियर्स की टीम मे रेडर्स से सपोर्ट नहीं मिल रहा है और वह खुद की दम पर टीम को चला रहे हैं.
यही कहानी कमोबेश बेंगलुरू बुल्स के लिए पवन सेहरावत की भी है. टीम मे चंद्रन रंजीत हैं लेकिन पवन के आउट होने के बाद उन्हे रिवाइव नहीं करा पा रहे हैं. यही वजह है की पवन का आउट ऑफ कोर्ट औसत प्रति मैच 16 मिनट से ज्यादा है. कल्पना कीजिए कि किसी मुकाबले मे पवन पूरा टाइम खेल जाएँ तो कितने पॉइंट्स ले कर आएंगे. रंजीत बोनस पर ज्यादा खेलते हैं, और लीग मे सबसे ज्यादा बोनस भी इसी टीम के हैं. जब आप टच पॉइंट से बचते हैं और बोनस को तरजीह देते हैं तो टीम पर बार बार आल आउट का खतरा मंडराता है, और टीम कमजोर होती है. बोनस से पॉइंट मिलता है और उसकी अपनी अलग उपयोगिता है, लेकिन उस पर निर्भरता अमूमन परेशान करती है. बुल्स का डिफेंस बाकी दोनों से कई मौकों पर बेहतर करता रहा है, लेकिन उसमे निरन्तरता की कमी है. किसी मुकाबले मे वह बहुत शानदार खेलती है तो किसी मे उससे पॉइंट्स ही नहीं बनते.
लीग का आधे से ज्यादा सफर बीत चुका है. अगर शीर्ष पर कायम और इंडिवीजुअल ब्रिलियन्स पर निर्भर रहने वाली टीमों को आगे भी बेहतर करना है, तो बिना देरी अपने डिफेंस को बेहतर बनाना होगा, और जिन खिलाड़ियों पर टीम आश्रित है, उन्हे खुद को लगातार चोट से बचना होगा. कुल मिलाकर अगला हफ्ता, प्ले ऑफ की दौड़ मे अपनी पोजीशन कनसोलिडेट करने का होगा. हर टीम के लिए अब आने वाला प्रत्येक मुकाबला बेहद अहम है, जिससे उसकी दशा और दिशा तय होगी.
संजय बैनर्जी
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