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केंद्र सरकार ने समीर वानखेड़े के पास मौजूद तमाम महत्वपूर्ण मामलों
संजीव चौहान।
दुनिया, विशेषकर बॉलीवुड सोच रहा था कि सुपर स्टार किंगखान यानि शाहरूख खान (Sah Rukh Khan) के हाई-प्रोफाइल पुत्र आर्यन खान ड्रग कांड (Aryan Khan Drug Case), वक्त के साथ धीरे-धीरे खुद-ब-खुद ही ज़मींदोज होकर कफन-दफन हो लेगा. बेटा चूंकि शाहरुख खान सी विश्व प्रसिद्ध बॉलीवुड हस्ती का गिरफ्तार हुआ था, तो भला शोर न मचता. ऐसा भी तो संभव नहीं था. फिर भला शाहरुख खान काहे के इंटरनेशनल फेम बॉलीवुड स्टार. और कैसे आर्यन खान हाईप्रोफाइल ड्रग कांड के मुलजिम बन पाते. आर्यन खान ड्रग कांड में कौन दोषी कौन निर्दोष इसका फैसला एक अदद और सिर्फ करेगी तो कोर्ट. हां, इतना जरूर है कि जिस आर्यन खान ड्रग कांड को लोगों ने वक्त की हवाओं के साथ गायब हो जाने की सोची थी. वो सब तो सरासर गलत साबित हो चुका है.
हम और आप भले ही कुछ भी सोचते-समझते रहें. कुछ भी गुणा-भाग घरों में बैठे रहकर करते रहें. उससे मगर दुनिया नहीं चलेगी. मुंबई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा ड्रग कांड में हाथ, चूंकि शाहरुख खान, गौरी खान जैसी मशहूर हस्तियों की संतान पर डाला गया था. सो जमाने में कानफोड़ू शोर-शराबा मचना लाजिमी था. हां, इसकी कल्पना जरूर किसी ने नहीं की होगी कि भले ही क्यों न सही आर्यन खान पुत्र शाहरुख खान निवासी मन्नत, मुंबई ऑर्थर रोड जेल से निकल कर आलीशान बंगले में पहुंच जाएंगे. तब सब कुछ शांत हो जाएगा. आर्यन खान की गिरफ्तारी के तुरंत बाद ही उस मुद्दे को लेकर एक नया "अखाड़ा" मुंबई में खोद डाला जाएगा. वो अखाड़ा जिसमें उतरे पहलवानों का दूर-दूर तक कहीं किसी भी तरह से आर्यन खान ड्रग कांड से वास्ता ही नहीं रहा. फिर भी वे इस लड़ाई में खुद ही अखाड़ा खोदकर उसमें ताल ठोंकने पहुंच गए.
बेगानी शादी में अब्दुल्लाह दीवाना
दरअसल सही माएने में पूछिए तो जूझना तो आर्यन खान, उनके पापा मम्मी, वकीलों, जजों और कोर्ट-कचहरियों को था. जूझने लगे मगर महाराष्ट्र राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक (Nawab Malik) सरीखे 'राजनीतिक अखाड़े' के धुरंधर. वो नवाब मलिक जिनकी बेटी का पति खुद ड्रग कांड में पहले ही गिरफ्तार हो चुका है. भले ही आर्यन खान की गिरफ्तारी से नवाब मलिक का दूर-दूर तक कोई लेना-देना न रहा हो. फिर भी उन्होंने जिस तरह से अखाड़े में जितनी ऊंचाई से सीधी "जम्प" मारी उसकी धमक किसी के कानों में पड़ी हो या न पड़ी हो. नवाब मलिक की उस ऊंची कूद ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के मुंबई जोनल दफ्तर की टीम और उसकी नींव को हाल-फिलहाल को तो हिला ही दिया. इसमें कोई शंका नहीं है.
आर्यन खान जैसी हाई-प्रोफाइल शख्सियत को गिरफ्तार करके मुंबई की आर्थर रोड जेल की चार-दिवारी में 24-25 दिन के लिए ही सही मगर, एनसीबी (Narcotics Control Bureau) अफसर समीर वानखेड़े (Sameer Wankhede) ने भी कोई कम जोखिम पूर्ण काम नहीं किया. पिछले कुछ महीनो में दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, रिया चक्रवर्ती सहित बॉलीवुड की तमाम नामचीन हस्तियों को मुंबई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के चक्कर कटवा देने वाले यही समीर वानखेड़े हैं. यह वही समीर वानखेडे़ हैं जिन्होंने आज चीख-चिल्ला रहे महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक के दामाद (बेटी का पति) को ही ड्रग कांड में गिरफ्तार करने में संकोच नहीं किया. संभव है कि आर्यन खान की ड्रग कांड में गिरफ्तारी से ऐन पहले ही गिरफ्तार किए गए, दामाद समीर खान की गिरफ्तारी का हिसाब-किताब ही चुकता करने को नवाब मलिक ने अखाड़े में छलांग लगाई हो.
बिना खर्चा अखाड़ा खोदने में क्या बुराई
यह सोचकर कि दामाद की गिरफ्तारी के वक्त तो उनके हाथ-पांव उतने मजबूत नहीं थे कि वे, बेटी के पति की गिरफ्तारी पर चीख-पुकार मचा कर कोई सफलता हासिल कर पाते. ऐसे में भला अगर वे आर्यन खान की ड्रग मामले में गिरफ्तारी को लेकर ही चिल्ल-पों मचाकर अपना कुछ भला और समीर वानखेड़े का नुकसान कर-करा सकें. तो भी कौन सी बुराई है. बे-वजह बेमतल की लड़ाई के अखाड़े में भला कूदने में कोई रुपया-धेला थोड़ा ही न खर्च होता है. बस कूदना भर ही तो है. उसके बाद बोलना और चीखना-चिल्लाना है. रोजाना सुर्खियों में रहने के लिए एक मुद्दा या फुलझड़ी ही तो चाहिए चलाने-जलाने और मुद्दे को गरम बनाए रखने के लिए. सो भला नवाब मलिक से महाराष्ट्र की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी कहिए या फिर कद्दावर खद्दरधारी नेता के पास किस बात की कमी है. एक फुलझड़ी छोड़ते हैं तो दस जेब में रखते हैं. आखिर बे-सिरपैर के मुद्दे को कई दिन तक "जिंदा" भी तो रखना है.
मजबूरी में मैदान में उतरना पड़ा वानखेड़े को
इसमें कोई संदेह बाकी नहीं बचा है कि नवाब मलिक द्वारा इस बेसिर पैर की लड़ाई के लिए खोदे-बनाए गए अखाड़े में जो ऊंची छलांग मारी गई. उनकी उस छलांग से उछली मिट्टी ने समीर वानखेडे़ और उनके इर्द-गिर्द रहने वालों तथा उनके परिवार वालों की आंखों में करकराहट औ बेचैनी तो पैदा कर ही दी है. जबाब में पत्नी से लेकर समीर वानखेड़े की साली, समीर वानखेड़े के पिता तक को मैदान में उतरकर ताल ठोंकनी पड़ गई. मतलब आर्यन खान की ड्रग कांड में गिरफ्तारी की आड़ लेकर शुरू हुई वाहियात की लड़ाई ने आज, नवाब मलिक बनाम समीर वानखेड़े के बीच आकर खुद को खड़ा कर लिया है. जबसे नवाब मलिक मैदान में कूदे हैं तब से आर्यन खान, शाहरुख खान, गौरी खान सब चर्चाओं से गायब हैं. अब सीधा-सीधा मुकाबला देखने को मिल रहा है, आर्यन खान को जेल की हवा खिलाने वाले मुंबई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो प्रमुख और भारतीय राजस्व सेवा के युवा अधिकारी, समीर वानखेड़े बनाम महाराष्ट्र की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी नवाब मलिक के बीच.
वो कौन सा जिन्न है जिसने नवाब….
दिलचस्प यह है कि नवाब मलिक, आर्यन खान ड्रग कांड में न तो गवाह हैं और न ही मुलजिम या मुखबिर, जज या फिर वकील. महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार के यह वही कैबिनेट मिनिस्टर नवाब मलिक हैं जिनकी, अपने दामाद समीर खान की इन्हीं समीर वानखेड़े द्वारा की गई गिरफ्तारी के वक्त बोलती बंद थी. उस वक्त दामाद की गिरफ्तारी के विरोध में इन्हीं नवाब मलिक के मुंह से चंद अल्फाज नहीं निकल पा रहे थे. शोर-शराबा या फिर हुड़दंग मचाने की तो बात ही छोड़ ही दीजिए. फिर आखिर वो कौन सा जिन्न है जिसने अब और आज यानि आर्यन खान की तीमारदारी में नवाब मलिक को इस कदर उछल-कूद या हुड़दंग मचाने को उकसा डाला है? संभव है कि यह सब नवाब मलिक के दिल में भरे उस वक्त का गुबार हो जिसे, वे अपने दामाद समीर खान की गिरफ्तारी के वक्त दिल से बाहर न निकाल सके थे. लिहाजा जैसे ही उन्होंने देखा कि आर्यन खान जैसी शख्शियत के लिए चीखने-चिल्लाने का उन्हें फायदा मिल सकता है.
इतनी कामयाबी तो मिल ही गई
तो उन्होंने (नवाब मलिक ने) सीधा सीधा जाल फेंक दिया नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अफसर और पूर्व में बॉलीवुड की तमाम नामी-गिरामी हस्तियों की नकेल कस चुके समीर वानखेडे़ के ऊपर. भले ही नवाब मलिक द्वारा फेंके गए जाल में समीर वानखेड़े पूरी तरह उलझे हुए न कहें जाएं मगर, समीर वानखेड़े के लिए नवाब मलिक बैठे-बिठाए का एक सिरदर्द देने में तो कामयाब हो ही गए. यहां तक का कि समीर वानखेड़े से न केवल आर्यन की ड्रग कांड में गिरफ्तारी की पड़ताल ले ली गई. अपितु उनके द्वारा पूर्व में पड़ताल किए जा रहे 6 अन्य मुकदमे भी हटा लिए गए. बीते चंद दिन पहले तक जिन समीर वानखेड़े के पीछे मुंबई की बड़ी-बड़ी हस्तियां पानी भरा करती थीं. आज वे ही समीर वानखेडे़ मुंबई-दिल्ली-दिल्ली मुंबई के चक्कर काटने को विवश हैं. यह साबित करने के लिए कि नवाब मलिक के आरोप बेबुनियाद हैं और, वे खुद व उनका परिवार कुनवा-खानदान बेदाग पाक-साफ हैं. आईंदा समीर वानखेड़े का भले ही नवाब मलिक कुछ और कितना बिगाड़ पाएंगे? यह फिलहाल भविष्य के गर्भ में है.
सब वक्त-वक्त की बात ही तो है
जो समीर वानखेड़े कल तक अपने द्वारा गिरफ्तार किए या कराए गए मुलजिमों के मुकदमों की मजबूत पैरवी में मशरूफ थे. वे ही समीर वानखेड़े अब खुद को बेदाग साबित करने में बुरी तरह उलझे हुए हैं. अब आईए बात करते हैं समीर वानखेड़े से चर्चित युवा अफसरों की उनके द्वारा किए गए जोखिमपूर्ण कामों से पैदा 'गरम-चर्चाओं' को शांत करने के तौर-तरीकों और उपायों की. जमाने को समीर वानखेड़े के पीछे हाथ धोकर लगे और पड़े दिखाई दे रहे मंत्री नवाब मलिक को जो करना था सो कर रहे हैं. समीर वानखेड़े को जो करना है सो वो कर रहे हैं. समीर वानखेड़े और नवाब मलिक में एक बहुत बड़ा फर्क भी यहां समझना जरूरी है. समीर वानखेड़े हिंदुस्तानी हुकूमत के "नौकर" हैं. उनके काम करने और बोलने का एक तय सरकारी "पैमाना" या कहिए "हदें" हैं. जबकि नवाब मलिक राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री हैं. जिनके बोलने का कोई पैमाना या हद तय नहीं है. कथित रूप से ही सही मगर यह फर्क कहीं न कहीं समीर वानखेड़े को कमजोर करने वाला जरूर हैं. इसका मतलब यह भी नहीं है कि नवाब मलिक का बड़बोलापन, समीर वानखेड़े से और अब तक बेदाग रहे अफसर को आसानी से समेट-निपटा देगा.
सरकारी मशीनरी की चार-चार आंखें
सरकारी मशीनरी यानी हुकूमत और उसके कारिदों की हमेशा चार आंखे होती हैं. दो वो आंखें जो आमजन यानी जनता-जनार्दन हमें और आपको दिखाई देती हैं. दो वे आंखे होती हैं जो जनता को दिखाई नहीं देती हैं मगर सरकारी हुक्मरान उन आंखों से सबकुछ देखते हैं. इन्हीं दो छिपी हुई आंखों से जब हुकूमत और हुक्मरानों ने देखना शुरू किया तो, नवाब मलिक बनाम समीर वानखेड़े के बीच छिड़े कथित वाक और शीतयुद्ध में कुदा डाले 1996 बैच के ओडिशा कैडर के आईपीएस अधिकारी संजय कुमार सिंह (IPS Officer Sanjay Kumar Singh). संजय कुमार सिंह हिंदुस्तानी हुकूमत की आंखों का 'तारा' पहले से ही थे आज भी हैं. अपनी ईमानदार छवि और कर्मठता के चलते ही संजय कुमार सिंह पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में डेपूटेशन पर तैनात रहे. अब उन्हें जनवरी 2021 में केंद्र ने फिर से प्रतिनियुक्ति पर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो मुख्यालय में बुला लिया. संजय कुमार सिंह के अब तक के आईपीएस कार्यकाल में कोई दाग नहीं है.
हिंदुस्तानी हुकूमत ने ताड़ी अंदर की बात
लिहाजा ऐसे में जब केंद्रीय हुकूमत को लगा कि नवाब मलिक किसी भी तरह से बाज आने को राजी नहीं है. हिंदुस्तानी हुकूमत ने ताड़ लिया कि नवाब मलिक सी फितरत के लोग किसी भी कीमत पर आर्यन खान जैसे हाईप्रोफाइल मामलों की पड़तालों/तफ्तीशों को उनके मुकाम या अंजाम तक न पहुंचने देने पर अड़े हुए हैं. तो हुकूमत ने इसका भी तोड़ निकाल लिया. देश के हुक्मरानों ने नवाब मलिक का मुंह बंद कराने की कोई कोशिश करना मुनासिब नहीं समझा. हिंदुस्तानी हुकूमत को आशंका इस बात की भी रही होगी कि जिस तरह से, नवाब मलिक इन दिनों अपनी पर उतरकर पेश आ रहे हैं, उससे उन्हें काबू करने की कोशिशें करना वाहियात कदम होगा. लिहाजा हिंदुस्तानी हुकूमत ने नवाब मलिक से लोगों को जबाब देने का माकूल रास्ता निकाला. वो रास्ता जिसमें सांप तो मरेगा मगर न लाठी टूटेगी न ही आवाज आएगी.
अभी न कोई हारा है न जीता है
केंद्र सरकार ने समीर वानखेड़े के पास मौजूद तमाम महत्वपूर्ण मामलों, मुकदमों की पड़तालें संजय कुमार सिंह सी सुलझी हुई छवि वाले काबिल पुलिस अफसर के हवाले कर दीं. इससे दो फायदे होंगे. एक तो समीर वानखेड़े अब नवाब मलिक को अपने तरीके से निपटा सकेंगे. दूसरे समीर वानखेड़े के ऊपर उनके पास मौजूद मुकदमों की जांचों को लेकर कोर्ट में जबाबदेही का दबाव भी नहीं रहेगा. दूसरे संजय कुमार सिंह चूंकि बेहद सुलझी हुई नीयत के पुलिस अफसर हैं. लिहाजा समीर वानखेड़े से लेकर उनके हाथों में दी गईं तमाम तफ्तीशों पर कोर्ट और जनमानस कोई भी सवाल नहीं उठा पाएगा. विशेषकर इन दिनों बेसिर-पैर के विवाद खड़े करने के लिए चर्चाओं में आए नवाब मलिक जैसे लोग. नवाब मलिक की भी अब तक समीर वानखेड़े को निशाने पर लेकर चीखने-चिल्लाने के पीछे यही मंशा रही होगी कि, किसी भी कीमत पर तमाम अहम मुकदमों की जांचें समीर वानखेड़े से छीनकर किसी अन्य अधिकारी के हाथों में चली जाएं. भले ही इससे नवाब मलिक का फायदा हो या नुकसान.
सब काम शांति से करने का रामबाण उपाय
संजय कुमार सिंह से ईमानदार अफसर किसी भी शातिर अपराधी के ऊपर रहम खाकर उसकी रहनुमाई करेंगे. ऐसे में इसकी क्या गारंटी कि संजय कुमार सिंह से तेज-तर्रार अफसरान उन सब मुलजिमों के ऊपर, समीर वानखेड़े से भी ज्यादा भारी नहीं पड़ेंगे, जिन्हें ब-इज्जत बरी कराने की जिद में नवाब मलिक सी शख्शियतें कल भी चीख चिल्ला रही थीं और आज भी हो-हल्ला मचा रही हैं. मतलब सरकार ने अगर समीर वानखेड़े को हटाया है तो इसका मतलब यह नहीं कि, वे दोषी साबित हो चुके थे. संभव है कि नवाब मलिक से लोगों को शांत करने के लिए ही हुकूमत ने, संजय कुमार सिंह से "Cool Cool IPS" को सामने कर दिया हो. ताकि जब संजय कुमार सिंह से ठंडे दिमाग और बेदाग छवि वाले पुलिस अफसर की चोट किसी शातिर अपराधी या माफिया पर पड़े तो वो (मुलजिम) न रो सके और न हंस सके. और आने वाले वक्त में समीर वानखेड़े से अफसर को आसानी से बेदाग करार दिलवाया जा सके.
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