सम्पादकीय

मिथिला होली परिक्रमा के रूप में आयोजित सनातन परंपरा को मिले प्रोत्साहन

Rani Sahu
17 March 2022 1:34 PM GMT
मिथिला होली परिक्रमा के रूप में आयोजित सनातन परंपरा को मिले प्रोत्साहन
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फाग की धूम सर्वत्र छाई है। हर किसी को रंगों के उत्सव होली की प्रतीक्षा है

अमिय भूषण।

फाग की धूम सर्वत्र छाई है। हर किसी को रंगों के उत्सव होली की प्रतीक्षा है। समय के साथ सनातन धर्म का यह पर्व अब वैश्विक हो चला है। इसके पीछे कुछ हद तक प्रवासी भारतीय और आध्यात्मिक सनातन संस्थाओं का भी योगदान है। बात होली के अतीत की करें तो अन्य सनातन त्योहार की तरह यह भी सत्य, न्याय और भक्ति के विजय का पर्व है। बात इसके रंग की करें तो यह बेहद गहरा है। इसलिए यह जितना रंगीन है, उतना ही प्राचीन है। तभी तो भगवान विश्वनाथ काशी में और रघुनाथ अयोध्या में होली खेलते हंै। किंतु ब्रज और मिथिला की होली को विशिष्ट माना गया है। यहां पुरातन समय से ही कृष्ण और राधा, राम और सीता को लेकर होली उत्सव की परंपरा को गढ़ा गया है। समय के साथ ब्रज की होली काफी चर्चित हो गई है। होली में यहां का रुख दुनिया भर के लोग कर रहे हंै। इन दिनों नंदगांव, बरसाने, वृंदावन और मथुरा का दृश्य देखने योग्य होता है।

वहीं दूसरी ओर मिथिला में राम और सीता की जोड़ी को लेकर होली पर्व मनाया जाता है। यहां प्रतिवर्ष लाखों लोग वर्तमान यानी फाल्गुन माह में सीताराम धुन के साथ नंगे पांव पदयात्रा करते हैं। यह यात्रा राजा जनक की नगरी जनकपुर और उसके परकोट परिक्षेत्र की होती है। इस क्रम में ये श्रद्धालु यहां अवस्थित राम और सीता से जुड़े लगभग सभी पावन स्थलों की यात्रा करते हैं। यात्रा की शुरुआत बिहार के कलनेश्वर महादेव मंदिर से होती है। वहीं इसका समापन जनकपुर धाम में होता है। इस यात्रा में युगल राम सीता के स्वरूप की दो पालकी निकलती है। कलनेश्वर महादेव मंदिर में रात्रि पड़ाव बाद यह यात्रा गिरिजा स्थान यानी फुलहर पहुंचती है। यह यात्रा का दूसरा महत्वपूर्ण पड़ाव है। बिहार के मधुबनी जिले में अवस्थित यह स्थान मान्यतानुसार राम और सीता के प्रथम भेंट का गवाह है। ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सीता पुष्प संग्रह और माता पार्वती के पूजन के लिए आती थीं। तीर्थ यात्री यहां रात में ठहरते हैं। वहीं सीता और रामजी के सुखद भेंट स्मृति में फाग का गायन करते हैं। कंचन वन आकर ये पवित्र पथिक रंग गुलाल वाली होली की शुरुआत करते हैं। मिथिला में इसी दिन से रंगों वाली होली शुरू हो जाती है।
कंचन वन वह स्थान है जहां राम और सीता ने सर्वप्रथम होली खेली थी। विचार करें तो यह वृंदावन में कृष्ण के निधिवन के समतुल्य है। यह यात्रा ऐसे ही 15 पवित्र पड़ावों पर रुकती है। इसमें कुछ बिहार तो कुछ नेपाल में अवस्थित हैं। कुछ श्रद्धालु इसे 15 दिनों में पूर्ण करते हैं। वहीं कई लोग महज पांच दिनों में ही पूरा कर लेते हैं। इसमें उन्हें कई दिन नंगे पांव 45 किमी तक दूरी तय करनी पड़ती है। यात्रा का अंतिम पड़ाव जनकपुर है।
फाल्गुन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ हुई यह यात्रा होलिका दहन के दिन समाप्त होती है। इस यात्रा की जन सहभागिता अद्भुत है। यहां आपको सीताराम संकीर्तन बोल पर गाते-नाचते और चलते सैकड़ों समूह मिल जाएंगे। यात्रा समाप्त होते समय तो लाखों लोगों की भीड़ होती है
भारतीय नेपाली समाज का वृहत्तर जुटान इसमें देखा जा सकता है। संतों के संग यहां बहुतेरे हरिजन गिरिजन बंधु मिलेंगे। इस यात्रा का विचार करें तो सर्वाधिक सहभागिता पिछड़े एवं दलित समाज की होती है। किंतु यहां सुविधाओं का घोर अभाव है। सिवाय बन रही सड़कों और चल रहे यात्रा के कुछ भी नहीं है। यहां आपको सर्वत्र सुविधाओं का अभाव दिखेगा। यात्रा पड़ावों में जनकपुर नगर को छोड़कर अन्य सभी जगहों पर यात्रियों के लिए शौचालय, स्नानागर और आश्रय स्थल आदि का कोई इंतजाम नहीं है। यहां भी ये इंतजाम महज आश्रम, मठ, मंदिरों के नाते हो पाते हैं। पूरी यात्रा में महिलाएं और वयोवृद्ध लोग खुले में रात्रि विश्राम और नित्यक्रिया को मजबूर हैं। वहीं समय के साथ आस पड़ोस की भूमि अतिक्रमित हो चली है। कई स्थान पर यह आयोजन पड़ोसी किसान की सहृदयता के नाते चल रहा है, जबकी यह यात्रा हिंदुत्व के जागरण और नेपाल भारत मैत्री का सेतु हो सकता है।
यहां जुटे श्रद्धालुओं के बीच भारत भक्ति और हिंदुत्व की अलख बस एक पहल से हो सकती है। यह दुनिया भर के हिंदू श्रद्धालुओं के एक महत्वपूर्ण गंतव्य के रूप में भी विकसित हो सकता है। आधारभूत ढांचागत सुविधाओं के निर्माण से यहां लोगों का दिल जीत जा सकता है। वहीं संवाद कार्यक्रमों से भारत प्रेम जगाया जा सकता है। किंतु अब तक शासन और संगठन व्यवस्था का इसको लेकर किंचित भी ध्यान नहीं है। यह यात्रा बिहार नेपाल, सीता और सनातन आस्था का प्रश्न है, फिर भी उपेक्षित है। सीमाई क्षेत्र और नेपाल की तराई में होने के नाते इसे वह महत्व नहीं हासिल हो सका है, जो इस तरह की अन्य यात्राओं को हो सका है।
अब जब काठमांडू से लेकर दिल्ली तक सरकारें बदली हैं तो निश्चित ही इसको लेकर एक पहल का विश्वास जगा है। नेपाल में अब बड़बोले ओली की जगह धीर गंभीर शेर बहादुर देउबा सत्ता में हैं। वही भारत में सनातन संस्कृति प्रेमी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। इनके कुछेक पहल से तीर्थ नगरी अयोध्या एवं काशी का विकास हुआ है। कुंभ और चार धाम यात्राओं के मद में कहीं अधिक कार्य हुआ है। इसकी परिणती भव्य कुंभ-दिव्य तीर्थ के रूप में सर्वत्र दिख रही है। निश्चित ही इनका भी ध्यान मिथिला की पुरातन परंपरा और पावन तीर्थों के विकास की ओर जाएगा।
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