सम्पादकीय

फिर वही गलती

Subhi
26 Aug 2022 2:07 AM GMT
फिर वही गलती
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हैदराबाद में निलंबित बीजेपी विधायक टी राजा सिंह की गिरफ्तारी और फिर जमानत के बाद भी तनाव बना हुआ है। पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर दिए गए उनके बयान के बाद वहां माहौल गरम हो गया था।

नवभारत टाइम्स; हैदराबाद में निलंबित बीजेपी विधायक टी राजा सिंह की गिरफ्तारी और फिर जमानत के बाद भी तनाव बना हुआ है। पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर दिए गए उनके बयान के बाद वहां माहौल गरम हो गया था। हालांकि नूपुर शर्मा प्रकरण में सरकार को जिस तरह की असुविधाजनक स्थिति का सामना करना पड़ा था, उसके मद्देनजर बीजेपी ने इस बार कार्रवाई में पूरी तत्परता दिखाई। विधायक के विवादित बयान की खबर आते ही उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया। इस कड़ी प्रतिक्रिया का संदेश समझते हुए सोशल मीडिया पर अपलोड किया गया उनके बयान वाला विडियो भी वापस ले लिया गया।

हैदराबाद पुलिस के रुख की भी तारीफ की जानी चाहिए। उसने न केवल विधायक टी राजा को अविलंब गिरफ्तार कर लिया बल्कि स्टैंड अप कमीडियन मुनव्वर फारुकी का शो न होने देने की धमकियों को भी बेअसर कर दिया। इसके बावजूद कई सवाल हैं, जो परेशान करते हैं। नूपुर शर्मा प्रकरण का हश्र देख लेने के बाद बीजेपी विधायक टी राजा की ओर से वैसा ही बयान आना बताता है कि पार्टी अपने अंदर के फ्रिंज एलीमेंट पर प्रभावी अंकुश नहीं लगा पाई है।

दूसरी तरफ हैदराबाद पुलिस ने मुनव्वर फारुकी का शो भले शांतिपूर्वक सुनिश्चित करवा लिया हो, इसे इस बात की गारंटी नहीं माना जा सकता कि तेलंगाना या हैदराबाद में नागरिकों का अभिव्यक्ति का संवैधानिक अधिकार पूरी तरह सुरक्षित है। दरअसल, देश के अलग-अलग हिस्सों में अब अभिव्यक्ति की आजादी इस बात से तय होने लगी है कि कहां किस पार्टी का शासन है और उसकी कैसी विचारधारा है। मुंबई और बेंगलुरु में मुनव्वर फारुकी के शो बार-बार कैंसल किए गए और आखिरकार उसका आयोजन नहीं होने दिया गया। समझना होगा कि दुनिया भर में स्टैंडअप कॉमिडी का कंटेंट पॉलिटिकल ही होता है, तानाशाही शासन वाले देशों में भी। लेकिन हम इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे।

कहीं इसे होने ही नहीं दिया जाता तो कहीं इसके लिए पुलिस को सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ती है। और बात सिर्फ कॉमिडी की नहीं है। इसकी जगह, फिल्म स्क्रीनिंग या पेंटिंग एग्जिबिशन या बुक रीडिंग किसी भी आर्ट फॉर्म की बात करें सबके साथ वैसा ही रिस्क जुड़ा हुआ है। कोई नहीं जानता कि कब किस बात से किसकी भावनाएं आहत हो जाएंगी और आयोजन खतरे में पड़ जाएगा। यह परसेप्शन देश के अंदर की रचनात्मक संभावनाओं को किस कदर बाधित कर रहा है, यह तो बड़ा सवाल है ही, इस वजह से दुनिया भर में हमारी छवि कैसी बन रही है और उससे सॉफ्ट पावर किस तरह से प्रभावित हो रही है, इस पर भी सोचने की जरूरत है। लेकिन लगता नहीं कि हमारे नेताओं को इन बातों की ज्यादा परवाह है।


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