सम्पादकीय

अंगदानियों को शत-शत नमन

Gulabi Jagat
16 March 2022 7:17 PM GMT
अंगदानियों को शत-शत नमन
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यद्यपि मनुष्य का जीना-मरना अटल सत्य है

यद्यपि मनुष्य का जीना-मरना अटल सत्य है, तथापि हम मरना नहीं चाहते। आत्मा अमर है, अनश्वर है और शरीर नश्वर है। मतलब मरने के बाद शरीर अनुपयोगी हो जाता है। मरने के बाद यदि हम अंगदान करें तो एक तरह से औरों के शरीर में जीवित रह सकते हैं। यदि कोई मरने के बाद किसी दूसरे आदमी के जीवन में उजाला भर दे तो इससे बड़ा पुण्य क्या हो सकता है। इनसानियत की इससे बड़ी कोई मिसाल नहीं हो सकती। यही मिसाल पेश की नगरोटा बगवां उपमंडल के तहत आने वाले हटवास के 18 वर्षीय विशाल व उसके परिवार वालों ने। विशाल गत 10 मार्च को सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गया था। मेडिकल कॉलेज टांडा में जब उसके बचने की उम्मीद न रही, तो डॉक्टरों ने परिवार वालों को अंगदान के बारे में बताया। परिवार वालों ने उसके अंगों को दान करने की मंज़ूरी दे दी। इस तरह 12 मार्च का दिन हिमाचल प्रदेश के लिए ऐतिहासिक बन गया जब टांडा मेडिकल कॉलेज व पीजीआई के डॉक्टरों के संयुक्त दल ने हिमाचल प्रदेश में पहला कैडेवरिक ऑर्गन रिट्रिवल ऑपरेशन सफलतापूर्वक संपन्न किया। इस ऐतिहासिक दिन के साथ विशाल का नाम हमेशा-हमेशा के लिए जुड़ गया। विशाल की किडनियां व कॉर्निया चार लोगों को नई जि़ंदगी देंगे। यही मिसाल पेश की मंडी के धर्मपुर उपमंडल की ग्राम पंचायत लौंगनी के स्याठी गांव की 11 वर्षीय नयना व उसके परिवार ने। गत 3 मार्च को एक बस दुर्घटना में नयना के सिर पर गहरी चोट लगी थी। पीजीआई के डाक्टरों ने जब उसके परिवार वालों को यह बताया कि नयना को बचा पाना संभव नहीं, तो परिवार वालों ने उसके अंग दान करने की मंज़ूरी दे दी।

स्वयं तो नयना मौत की गहरी नींद में सो गई, परंतु उसकी दो किडनियां और दो कॉर्निया चार लोगों में तत्काल ही प्रत्यारोपित की गईं। इस तरह एक नयना ने चार लोगों को नया जीवन प्रदान किया। जाहिर है विशाल के पिता हरनाम, नयना के पिता मनोज व उनके परिवार वालों के लिए ये फैसला लेना मुश्किल रहा होगा, परंतु कुछ लोग ऐसा फैसला ले लेते हैं कि ज़माना उन्हें हमेशा याद रखता है। इसी तरह पिछले महीने हिमाचल के जिला मंडी की सुंदरनगर निवासी 43 वर्षीय निशा ठाकुर को पीजीआई में इलाज के दौरान जब ब्रेन डैड घोषित कर दिया गया तो निशा के पति ने साहस और हिम्मत दिखाकर अपनी पत्नी के अंगदान का फैसला किया। निशा का दिल अब उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में धड़केगा क्योंकि उसके दिल को दिल्ली के एम्स में उपचाराधीन गाजियाबाद के मरीज को प्रत्यारोपित किया गया। साथ ही पीजीआई चंडीगढ़ में भर्ती चार मरीजों में निशा की किडनी, कॉर्निया और पैंक्रियाज़ प्रत्यारोपित किए गए। इस तरह निशा पांच लोगों के जीवन में उजाला कर गई। ध्यातव्य व ज्ञातव्य है कि ब्रेन डैड बच्चों के अंग भी अन्य मरीजों में प्रत्यारोपित किए जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि फरवरी 2019 मुंबई में पुणे के एक दंपति ने मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती अपने दो साल के ब्रेन डैड बच्चे के अंगों को दान करने का फैसला किया। अस्पताल में बच्चे के ब्रेन डैड होने की खबर सुनते ही उसके माता-पिता का दिल दुख से फटा होगा, परंतु शोक की इस घड़ी में भी उन्होंने अपने दुख को भूल कर इनसानियत की अनूठी मिसाल पेश की। बच्चे का हार्ट, किडनी, लिवर और आंखें दान कर दी गईं। इस तरह 2 साल के बच्चे ने 6 लोगों को जीवनदान दिया। दिसंबर 2020 में गुज़रात के सूरत में जश ओजा नामक अढ़ाई साल के बच्चे के अंगदान से सात बच्चों को नया जीवन मिला। ओजा खेलते-खेलते अपने घर की दूसरी मंजिल से गिर पड़ा था।
उसे नहीं बचाया जा सका, परंतु उसके अंगदान ने मरणासन्न 7 बच्चों को बचा लिया। जनवरी 2021 में दिल्ली के रोहिनी इलाके की मात्र 20 माह की धनिष्ठा अपने घर में गिर गई। ब्रेन डैड होने पर उसके माता-पिता ने उसके अंग दान कर दिए। धनिष्ठा ने 5 मरीजों को नया जीवन दिया। मई 2018 में हिमाचल के मंडी जि़ले के सरकाघाट निवासी मेहर सिंह चोटिल हो गया था और बाद में पीजीआई में उसका निधन हो गया। परिवारजनों ने उसके अंग दान करके का फैसला किया। उनके कोर्निया से दो लोगों को नई रौशनी मिली और दो किडनियां जरूरतमंदों में प्रत्यारोपित की गईं। यहां मैं प्रदेश के उस डॉक्टर दंपति का जि़क्र करना भी अति आवश्यक समझता हूं जिसने 5 वर्ष पूर्व अपने 13 वर्षीय बेटे शाश्वत के अंग दान कर दिए थे। आईजीएमसी में सर्जरी के प्रोफेसर डा. पुनीत महाजन और फिजियोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर डा. शिवानी महाजन ने 16 जनवरी 2017 को अपने 13 वर्षीय पुत्र शाश्वत के ब्रेन डैड होने पर उसके सभी अंग पीजीआई चंडीगढ़ में दान कर दिए थे। शाश्वत शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल में आठवीं कक्षा का छात्र था। इलाज के दौरान पीजीआई में उसे ब्रेन डैड घोषित कर दिया गया। इस दुख की घड़ी में महाजन दंपति ने अपने बेटे के अंग दिल, दोनों किडनी, लिवर और आंखें दान कर दिए। महाजन दंपत्ति का यह कदम समाज को अंगदान के प्रति प्रेरित करता है।
उन्होंने अब समाज को अंगदान के लिए लोगों को जागरूक व प्रेरित करने का बीड़ा उठाया है। वे अब स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (सोटो) के माध्यम से अंगदान के लिए मुहिम चला रहे हैं। इस कार्य में प्रदेश की समाजसेवी संस्था उमंग फाउंडेशन भी कार्य कर रही है। दान एक अत्यंत विशिष्ट व आदरणीय शब्द है जिसका अर्थ है देना। किसी वस्तु को किसी ज़रूरतमंद आदमी को देने से जो आनंद व आत्मसंतुष्टि मिलती है, उसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। हर एक दान का अपना महत्त्व है। परंतु यदि दान अंगों का हो, तो इससे बड़ा कोई पुण्य नहीं हो सकता। यह किसी मानव के प्रति बहुत बड़ा उपकार है। अंगदान कर किसी को जीवन देना सभी दानों में सर्वोपरि है। धार्मिक अज्ञानता व अंधविश्वास के कारण लोग अंगदान की महत्ता को नहीं समझ पा रहे हैं। याद रखिए हमारे शास्त्रों में भी अंग व देह दानियों का उल्लेख आता है। प्राचीन काल में कई ऐसे महादानी हुए हैं जिन्होंने परमार्थ के लिए अपनी देह को भी दान कर दिया। महर्षि दधीचि ने अपनी हड्डियां दान कर देवताओं को वृत्रासुर से बचाया था। राजा शिवि ने एक कबूतर की जान बचाने हेतु अपने जीवित शरीर को ही गिद्ध के लिए परोस दिया था। शास्त्रों में उपलब्ध इन उल्लेखों के बाद ये मात्र भ्रम है कि अंगदान से मुक्ति में बाधा उत्पन्न होती है। 'दानेन तुल्यो विधिरास्ति नान्यो'- यानी दान के बराबर कोई अच्छा कार्य नहीं। अंगदान हो तो उससे परे कोई दान, धर्म व पुण्य नहीं।
जगदीश बाली
लेखक शिमला से हैं
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