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सब जानते हैं कि तोक्यो में भारतीय खिलाड़ी पदकों के लिए दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन में देश की आन-बान-शान के लिए अपनी जान लड़ा रहे हैं।
किरण चोपड़ा| सब जानते हैं कि तोक्यो में भारतीय खिलाड़ी पदकों के लिए दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन में देश की आन-बान-शान के लिए अपनी जान लड़ा रहे हैं। जब आप किसी मुकाबले में उतरते हैं तो हार-जीत का महत्व बहुत ज्यादा होता है परंतु सबकुछ खेल भावना के तहत हो तो फिर खेल आयोजन भी सफल हो जाता है। क्या कमाल है कि इस बार के ओलंपिक में जिस दिन मुकाबले शुरू हुए उस दिन ही देश की बेटी मीरा बाई चानू ने भारोत्तोलन में रिकार्ड बनाकर स्वर्ण पदक की जंग में अपनी पूरी ताकत लगा दी लेकिन फिर भी भारत के नाम सिल्वर मेडल कर ही दिया।
इसी तरह अब बैडमिंटन में पी.वी. सिंधू ने जलवा दिखाया है तो बहुत ही निर्धन परिवार में बड़ी हुई लवलीना बॉक्सर ने जलवा दिखाया। देश की बेटियां सचमुच इस अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबले में भारत का नाम रोशन कर रही हैं। बॉक्सिंग में ही पूजा रानी किसी से कम नहीं है तो सबसे ज्यादा प्रभावित अगर किसी ने किया है तो वह तीन बच्चों की माता 38 साल की मैरी कॉम ने किया है जो मुक्केबाजी का ओलंपिक पदक जीतने के अलावा छ: बार की विश्व चैंपियन है लेकिन उस दिन रिंग में हार गई। देश की यह बेटी बहुत रोई और मुक्केबाजी में परिणाम का फैसला ज्यूरी ने किया तथा यह 3-2 से उसके प्रतिद्वंदी के पक्ष में गया। देश की इस बेटी के पक्ष में जीत तय थी यहां तक कि रेफरी ने भी जीत का इशारा दे दिया लेकिन ज्यूरी ने कहा कि परिणाम 3-2 से उसके खिलाफ जा रहा है और दूसरी खिलाड़ी विजेता घोषित कर दी गई लेकिन मैरी कॉम ने प्रतिद्वंदी खिलाड़ी को गले से लगाकर बधाई दी। इसे कहते हैं खेल भावना।
इसी कड़ी में अगर तीरंदाजी में दीपिका या शूटर मनु भाकर, राही सनपत या जिम्नास्टिक परिणित नायक की बात करें जो कि हार गई। हार-जीत तो खेल के दो पहलू हैं। मेरे हिसाब से तो इस राउंड पर पहुंचकर मुकाबला करना ही बहुत बड़ी बात है। अभी कुश्ती में देश की बेटियां चाहे विनेश फोगाट हो सीमा बिसला हो या फिर सोनीपत की सोनम और अंशु मलिक हो। कहने का मतलब यह है कि भारत के छोटे-बड़े कस्बों से बेटियां अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबलों पर पहुंच चुकी हैं। 200 से ज्यादा देशों के बीच कड़ी स्पर्धा के बाद क्वालिफिकेशन राउंड होते हैं तब कहीं जाकर किसी भी प्रतिस्पर्धा में किसी देश को मौका मिलता है। इस कड़ी में कल तक हॉकी या फिर एथलेटिक्स के अलावा भारत का कोई बड़ा दावा नहीं हुआ करता था लेकिन अब देश की बेटियां जब अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबलों में उतरती हैं तो बराबर सामने वाले प्रतिद्वंदी के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है।
यहां मैं एक और देश की बेटी भवानी देवी का जिक्र करना चाहूंगी जिसने तलवारबाजी में अपना पहला मुकाबला जीतकर भारत का नाम रोशन किया और अगर अगला मुकाबला जीत लेती तो यह पदक दौड़ में आ जाती। इसी तरह नौकायन में एक और बेटी नेत्रा कुमानत ने क्वालीफाई करके देश का नाम रोशन किया है। एथलेटिक्स में दूतीचंद एक बड़ी उम्मीद है। महिला हॉकी टीम अपना जलवा दिखा रही है हालांकि पुरुष हॉकी और अन्य खेलों में देश के बेटे भी कमाल कर रहे हैं लेकिन टेबल टेनिस में मलिका बत्रा ने दो राउंड में विजय के बाद दिखा दिया है कि भारत किसी से कम नहीं है। कल तक पीटी उषा, अश्विनी भावे, कर्णम मल्लेश्वरी जैसी महिला शक्ति का नाम था, लेकिन आज उनकी भरपाई हो रही है। अन्य खेलों में बेिटयां देश का नाम बुुलंद कर रही हैं।
मेरा कहने का मतलब यह है कि हार-जीत से कहीं ऊपर देश की तरफ से अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबले में प्रतिनिधित्व ही है। जिस मीरा बाई चानु ने रजत पदक जीता है इस बेटी के बारे में मुझे पता चला कि पिछले रियो ओलंपिक में यह अपनी प्रतिस्पर्धा से डिस्क्वालीफाई हो गई थी लेकिन हिम्मत देखिए कि ठीक चार साल बाद उसने रजत पदक जीतकर रिकार्ड बना दिया। देश की बेटियां आगे बढ़ रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो बेटियों के समर्थन में जो अभियान चलाया है उसके तहत अच्छे परिणाम भी मिल रहे हैं। हो सकता है यहां अनेक नाम ऐसे हो जिनका उल्लेख ना हो पाया हो क्योंकि अभी प्रतियोगिता चल रही है लेकिन हमारी बेटियों की इतने बड़े पैमाने पर इतने बड़े मुकाबले में भागीदारी ही सबसे बड़ी जीत है। आपने क्वालीफाई किया और ओलंपिक तक पहुंच गए यह आपकी सबसे बड़ी जीत है पूरा देश आपके साथ है। गांव से बेटियां अन्तर्राष्ट्रीय मुकाबलों में देश का नाम रोशन कर रही हैं यह हम सबके लिए गौरव की बात है। देश की हर बेटी को उनके परिवार को उनके गांव को उनके शहर को और उनके देश भारतवर्ष को तथा इन बेटियों को फिर से सलाम है और आप सभी पर देश को नाज है।
Triveni
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