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'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'- 4 जुलाई 1944 को रंगून (बर्मा) के जुबली हाल में आजादी के महानायक नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने इस इंकलाबी नारे की दहाड़ से भारत में अंग्रेजों के रौंगटे खडे़ करके बर्तानवी हुकूमत के तख्त-ओ-ताज़ की बुनियाद को हिला कर रख दिया था। इस नारे की ललकार ने हजारों भारतीय युवाओं के जहन में देशभक्ति के जज्बात पैदा करके आजादी की जंग में एक प्रचंड ऊर्जा का संचार कर दिया था, मगर आज़ाद हिंद फौज के सुप्रीम कमांडर सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्तूबर 1943 को सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार का गठन भी किया था। जापान, जर्मनी, इटली सहित 11 देशों ने उस सरकार को मान्यता दी थी। इसलिए भारतीय इतिहास में 21 अक्तूबर महत्त्वपूर्ण तारीख है। सशक्त व्यक्तित्व की शख्सियत व फौलादी जिगर सुभाष चंद्र बोस का मानना था कि हिंदोस्तान की सरजमीं से फिरंगी हुकूमत को रुखसत करने की कीमत केवल खून देकर ही चुकाई जा सकती है, जिसका विकल्प सशस्त्र क्रांति ही था। इन्हीं क्रांतिकारी विचारों के कारण सुभाष चंद्र बोस को भारत की आज़ादी के सबसे प्रतिष्ठित व अग्रणी योद्धा के रूप में जाना जाता है। सन् 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गठित 'आज़ाद हिंद फौज' का लक्ष्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के चंगुल से आज़ाद कराना था। रास बिहारी बोस, कैप्टन मोहन सिंह व निरंजन सिंह जैसे सैन्य अधिकारियों का आज़ाद हिंद सेना के गठन में अहम योगदान था। सुभाष चंद्र बोस ने 4 जुलाई 1943 को 'आज़ाद हिंद फौज' तथा 21 अक्तूबर 1943 को 'आज़ाद हिंद सरकार' दोनों संगठनों की कमान सिंगापुर में संभाली थी। आज़ाद हिंद फौज के जवानों ने 'दिल्ली चलो' का नारा देकर प्रतिज्ञा ली थी कि वे दिल्ली पहंुचकर ब्रिटिश शासन का अंत करके लाल किले पर तिरंगा फहराएंगे या वीरगति को प्राप्त होंगे