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महाराष्ट्र के नासिक में ऑक्सीजन टैंकर के लीक होने के कारण आपूर्ति बाधित होने से 20 से अधिक कोविड मरीजों की दर्दनाक मौत जितनी दुखद है, उतनी ही शर्मनाक भी। जांच के आदेश हो गए हैं, मुआवजों की भी घोषणा कर दी गई है, पर क्या ऐसे कर्मकांड पहली बार हो रहे हैं? पिछले एक साल में ही महाराष्ट्र व गुजरात में सिर्फ कोविड वार्डों में आग लगने और ऑक्सीजन आपूर्ति से जुड़े कई हादसे हो चुके हैं, जिनमें कई बहुमूल्य जानें जा चुकी हैं। ये हादसे बताते हैं कि जीवन बचाने की जो उच्चतम सावधानी अस्पताल प्रबंधनों को बरतनी चाहिए, उसमें लगातार चूक हो रही है। निस्संदेह, अस्पतालों पर अभी अभूतपूर्व दबाव है। तमाम डॉक्टर, सहायक कर्मचारी और प्रबंधन के लोग अपनी जान की बाजी लगाकर जनसेवा में जुटे हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं इसलिए अधिक मर्माहत कर जाती हैं, क्योंकि ये अस्वाभाविक मौतें हैं। ये मरीज जिंदगी बचने की आस लिए जाकिर हुसैन अस्पताल आए थे! कोरोना की दूसरी लहर भारत और भारतीयों के धैर्य की ही नहीं, इनकी क्षमता की भी परीक्षा ले रही है। दुनिया के कई देश इस महामारी से जंग में काफी बेहतर स्थिति में पहुंच गए हैं। निस्संदेह, इसमें उनकी सरकारों की संवेदनशील पहल, तत्परता और नागरिक अनुशासन की बड़ी भूमिका है। ताईवान, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश तो मिसाल बनकर उभरे हैं। इजरायल, यूएई पूर्ण टीकाकरण के लक्ष्य के करीब हैं। बल्कि इजरायल के स्वास्थ्य मंत्रालय ने तो अनिवार्यत: मास्क पहनने के आदेश को भी वापस ले लिया है। डेनमार्क यूरोपीय सैलानियों के लिए अपने बॉर्डर खोलने की तैयारी कर रहा है। छोटी आबादी वाले देश होने के कारण इनकी उपलब्धियां कमतर नहीं आंकी जानी चाहिए, बल्कि उनसे सबक सीखने की जरूरत है। आज एक साल बाद भी हमारे लिए युद्ध-स्तरीय संघर्ष की स्थिति क्यों है, इसे दोहराने की न तो अब आवश्यकता बची है और न ही यह इसका वक्त है। अलबत्ता, हमने वैक्सीन कूटनीति के जरिए जो छवि अर्जित की है, उसको बचाने की जरूरत है। हम यह नजरअंदाज नहीं कर सकते कि न्यूजीलैंड, ब्रिटेन के बाद मंगलवार को अमेरिका ने भी अपने नागरिकों को सलाह दी है कि वे भारत की यात्रा से फिलहाल परहेज बरतें। यह कोई अनहोनी बात नहीं है और इससे इन देशों के साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर भी असर नहीं पड़ेगा, लेकिन ऐसी खबरों का दुनिया में अच्छा संदेश भी नहीं जाता। निस्संदेह, केंद्र और राज्य सरकारें मौजूदा गंभीर स्थिति पर नियंत्रण के लिए हर मुमकिन कदम उठा रही हैं। मगर अब भी कई मोर्चों पर बेहतर समन्वय और संजीदा पहल की जरूरत है। जैसे, दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा और महाराष्ट्र में इसकी आशंका के मद्देनजर गरीबों-मजदूरों का पलायन एक बार फिर शुरू हो चुका है। हालांकि, इस बार पिछले साल जैसी स्थिति नहीं है, लेकिन तब भी एहतियाती उपायों की खुलेआम अनदेखी हो रही है, जो तीन लाख के करीब दैनिक संक्रमण वाली स्थिति में चिंता की बात है। शासकीय दंड से अधिक अब नागरिकों को भरोसे में लेकर ही हालात से उबरा जा सकता है। कुंभ का उदाहरण हमारे सामने है। लेकिन तंत्र में नागरिकों के भरोसे की मजबूती के लिए हमें नासिक जैसी घटनाओं को रोकना होगा। दुनिया के सामने भी ऐसी घटनाएं देश की अच्छी तस्वीर नहीं पेश करतीं।
इस लेख के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायित्व नहीं है, यह लेखक के अपने विचार हैं