सम्पादकीय

सुरक्षित सफर

Subhi
14 Dec 2022 6:06 AM GMT
सुरक्षित सफर
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आजकल बढ़ती जनसंख्या में गाड़ियों का परिचालन भी बहुत बड़े पैमाने पर फैला है, जिससे गांव से लेकर शहर तक के सड़कों पर यातायात की भीड़ बढ़ी है। सड़क दुर्घटना होने के कई मुख्य कारण ये हैं- यातायात के नियमों का उल्लंघन या लापरवाही, जैसे हेलमेट नहीं लगाना, सीट बेल्ट का प्रयोग नहीं करना, अपने लेन में नहीं चलना, आगे निकलने की होड़ और सिग्नल या गति अवरोधक के नियमों की धज्जियां उड़ाना, अभिभावकों द्वारा अठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चे को गाड़ी चलाने की अनुमति को देना।

Written by जनसत्ता; आजकल बढ़ती जनसंख्या में गाड़ियों का परिचालन भी बहुत बड़े पैमाने पर फैला है, जिससे गांव से लेकर शहर तक के सड़कों पर यातायात की भीड़ बढ़ी है। सड़क दुर्घटना होने के कई मुख्य कारण ये हैं- यातायात के नियमों का उल्लंघन या लापरवाही, जैसे हेलमेट नहीं लगाना, सीट बेल्ट का प्रयोग नहीं करना, अपने लेन में नहीं चलना, आगे निकलने की होड़ और सिग्नल या गति अवरोधक के नियमों की धज्जियां उड़ाना, अभिभावकों द्वारा अठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चे को गाड़ी चलाने की अनुमति को देना।

सभी लोग यही चाहते हैं कि वे अपने गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचें, लेकिन उनकी लापरवाही ही उनकी दुर्घटना का कारण बन जाता है। सरकार और स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि जिस क्षेत्र में खतरनाक इलाके हों, उस क्षेत्र को और उस बिंदु को चिह्नित करके गति अवरोधक की व्यवस्था की जाए। एक कारण यही है कि अवैध भार लाद कर और टोल टैक्स बचाने की गरज से दूसरे रास्ते से गाड़ी का परिचालन होता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। लेकिन स्थानीय प्रशासन के इनके साथ-साथ सांठगांठ एवं भ्रष्टाचार में लिप्त होने की वजह से ऐसा चलता रहता है।

हमारा सुरक्षित यातायात केवल कहने और सुनने से सुगम एवं मंगलमय नहीं होगा। इसके लिए हमें सभी को जागरूक होना होगा और अपने जीवन के प्रति ध्यान रख कर 'हम जिएं और दूसरों को भी जीने दें' की सोच को तवज्जो देना होगा। साथ ही अभिभावक नाबालिग बच्चों को गाड़ी चलाने की अनुमति नहीं दें। सभी की यात्रा मंगलमय हो, इसके लिए हम सभी को यातायात नियम का पालन करते हुए सफर करने की जरूरत है।

'भूख का सामना' (संपादकीय, 8 दिसंबर) में जो सवाल खड़े किए हैं, वह देश में अन्न की प्रचुरता के बावजूद भूख से की समस्या पर करारी चोट है। देश में आज अंतिम आदमी तक भरपेट अनाज नहीं पहुंच पाना कहीं न कहीं व्यवस्था में भी खोट का नतीजा है। हमारी संस्कृति और उसकी महान परंपराओं को रेखांकित करते हुए अदालत ने अगर आम आदमी की क्षुधा शांत नहीं कर पाने के सवाल पर टिप्पणी की है तो यह माना जाना चाहिए, जिस राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को जन-जन तक पहुंचाने का बेड़ा सरकार ने उठाया है, उसमें कहीं न कहीं कोई कमी अवश्य है।

हालांकि लोगों द्वारा अन्न के दुरुपयोग के मामले भी उजागर होते रहते हैं जो प्रयासों को धक्का ही पहुंचाते हैं। सरकारें अपनी कमी दूर करें, लेकिन लोग भी अपने हक का दुरुपयोग न करें तो जल्द ही देश को भुखमरी से निजात दिलाई जा सकती है।


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