सम्पादकीय

सद्‌गुरु का कॉलम- खेती के योग्य मिट्टी अब कुछ फसलों के लिए ही है, जो जल्द ही अनुपजाऊ हो जाएगी

Gulabi
1 March 2022 8:50 AM GMT
सद्‌गुरु का कॉलम- खेती के योग्य मिट्टी अब कुछ फसलों के लिए ही है, जो जल्द ही अनुपजाऊ हो जाएगी
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जीवन मिट्‌टी में फलता-फूलता है। 36 से 39 इंच की मिट्टी की परत धरती पर मौजूद जीवन के 87 प्रतिशत हिस्से का आधार है
सद्‌गुरु का कॉलम:
जीवन मिट्‌टी में फलता-फूलता है। 36 से 39 इंच की मिट्टी की परत धरती पर मौजूद जीवन के 87 प्रतिशत हिस्से का आधार है। हर चीज उसी से पनपती है। जब मिट्टी ही समृद्ध नहीं होगी तो मान लीजिए हमने धरती का त्याग कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं ने वैज्ञानिक प्रमाण के साथ कहा है कि धरती पर कृषि योग्य मिट्टी अब केवल 60 से 100 फसलों के लिए ही है। इसका मतलब है कि हमारी मिट्टी 45 से 60 साल में अपनी उर्वरता खो देगी।
अगर ऐसा होता है तो धरती पर खाद्य पदार्थों की गंभीर समस्या पैदा हो जाएगी- इसे टाला नहीं जा सकता। जब खाद्य संकट आएगा तो ताकतवर लोग हथियारों का इस्तेमाल करके खाना छीन लेंगे। और इससे जो अराजकता और मुश्किलें पैदा होगी, वह कल्पना से परे है। यह मत सोचिए कि केवल गरीब मरेंगे; वे अमीरों को मारेंगे और अमीर भी मरेंगे। यह केवल एक भयावह तस्वीर खींचना नहीं है, क्योंकि मिट्टी के अनुपजाऊ होने की भविष्यवाणी दुनिया में आज अनेक शीर्ष वैज्ञानिकों के द्वारा की जा रही है।
हमारी मिट्टी का मरुस्थलीकरण तेज गति से हो रहा है क्योंकि हर बार जब आप कुछ उगाते हैं, तो फसल के जरिए उसमें से जैविक तत्व निकल जाते हैं। लेकिन मिट्टी में वापस कुछ नहीं लौटाया जा रहा है। एक ऊष्णकटिबंधीय जंगल में- पेड़-पौधों के पत्तों और पशु अपशिष्ट के कारण- जैविक तत्व लगभग सत्तर प्रतिशत या ज्यादा होगा। खेती की मिट्टी में न्यूनतम जैविक तत्व तीन से छह प्रतिशत होना चाहिए। लेकिन आज दुनिया में खेती की लगभग चालीस प्रतिशत जमीनों में जैविक तत्व की मात्रा 0.5 प्रतिशत से कम रह गई है।
तो अब हमें क्या करना चाहिए? मिट्टी में जैविक तत्व वापस लौटाने के दो ही तरीके हैं- वनस्पतियों से हरा कचरा और पशु अपशिष्ट। खेतों में पशुओं को वापस लाने का अब सवाल नहीं है क्योंकि लोग मशीनों के आदी हो गए हैं। तो हमारे पास सबसे अच्छा विकल्प पेड़-पौधे ही हैं। किस तरह की वनस्पतियां, कितने प्रतिशत और किस देश में- ये चीजें स्थानीय स्तर पर तय की जा सकती हैं। लेकिन एक वैश्विक नीति के रूप में खेतों की मिट्टी में कम से कम तीन प्रतिशत जैविक तत्व का होना आवश्यक कर देना चाहिए।
समाधान कोई रॉकेट साइंस नहीं है; इसे बस अमल में लाने का सवाल है। क्या हम इसे समय रहते करने को तैयार हैं, ताकि इस धरती पर हर जीव की तकलीफ को न्यूनतम कर सकें? अगर हम अभी शुरू करते हैं, तो पंद्रह से बीस साल में एक महत्वपूर्ण वापसी कर सकेंगे। लेकिन मान लीजिए कि हम पच्चीस से पचास साल और इंतजार करते हैं और फिर मिट्टी की दशा सुधारने की कोशिश करते हैं तो उसे ठीक करने में 200 साल तक लग सकते हैं। वह दौर इंसान के लिए विनाशकारी होगा।
हमें जो करने की जरूरत है, उसे अविलंब करना होगा। इसीलिए हम 'जागरूक धरती' नाम का अभियान सामने ला रहे हैं। हम हमेशा सोचते हैं कि उद्योगों या सरकार को इसे करना चाहिए। लेकिन हम यह भूल जा रहे हैं कि हम एक लोकतांत्रिक देश हैं। आज दुनिया में 5.2 अरब लोग ऐसे देशों में रहते हैं, जहां वोट देने और अपने देश के नेतृत्व को चुनने की क्षमता है। हम इस पर ध्यान दे रहे हैं कि कैसे कम से कम तीन अरब लोगों को साथ लाया जाए ताकि पर्यावरण के मुद्दे सरकार चुनने के मुद्दे बन जाएं।
अभी तो राजनीतिक पार्टियां लोगों को खुश करने के लिए आर्थिक प्रलोभन देती हैं, लेकिन पर्यावरण उन प्रस्तावों का हिस्सा नहीं रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मतदाताओं के बड़े प्रतिशत ने राजनेताओं के सामने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वे पर्यावरण की सुरक्षा चाहते हैं। सरकारों को पर्यावरण के मुद्दों पर दिखाई जाने वाली चिंता के लिए चुना जाना चाहिए।
जब पर्यावरण चुनाव का एक अहम मुद्दा बनेगा, तभी वह सरकारी नीति बन सकेगा, और सिर्फ तभी उसके लिए एक बड़ा बजट आबंटित होगा, ताकि समाधान प्रकट हों। मिट्टी हमारी संपत्ति नहीं विरासत है। सबको 'जागरूक धरती' अभियान के लिए खड़े होना चाहिए।
अभी ऐसा लगता है कि पर्यावरण अमीरों की चर्चा का विषय है। जबकि हर व्यक्ति को इसके बारे में जागरूक होना चाहिए। पर्यावरण के प्रश्न चुनावी मुद्दे बनने चाहिए और राजनीतिक पार्टियों को घोषणापत्रों में पर्यावरण के मसलों को महत्व देना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Gulabi

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