सम्पादकीय

संसद में दुखद

Triveni
13 Aug 2021 2:14 AM GMT
संसद में दुखद
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मानसून सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में जो हुआ,

मानसून सत्र के आखिरी दिन राज्यसभा में जो हुआ, उसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकेगा। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने में जुट गए हैं, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि उच्च सदन की गरिमा को नुकसान पहुंचा है। विपक्ष ने जहां यह आरोप लगाया है कि मार्शलों ने सांसदों से गलत व्यवहार किया, तो वहीं सरकार की ओर से कई मंत्रियों ने सामने आकर कहा कि विपक्ष ने असंसदीय व्यवहार किया और सेक्रेटरी जनरल व स्टाफ के साथ धक्का-मुक्की की गई। और तो और, राज्यसभा के हंगामे के कुछ वीडियो भी सामने आए हैं और वायरल हो रहे हैं, जिनमें भारतीय संसद में मचे हंगामे को दुनिया देख रही है। ये दृश्य ऐसे दाग की तरह हैं, जिन्हें सियासत या किसी सफाई से धोया नहीं जा सकता। सवाल हमेशा के लिए पैदा हो चुका है कि क्या हमारी संसद में महिला मार्शल अब सुरक्षित नहीं हैं? क्या विपक्षी सांसदों पर नियंत्रण के लिए बाहर से चालीस-पचास मार्शल बुलाए गए थे? क्या इस पूरे प्रकरण की जांच होगी? क्या देश इस हंगामे का पूरा सच जान पाएगा? सरकार कह तो रही है कि जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी, लेकिन क्या जांच सियासत से प्रभावित नहीं होगी? आम तौर पर हमने अनेक सांसदों को सदन में हंगामा करते देखा है और हम इन नियोजित हंगामों को सहजता से स्वीकार करते आए हैं, तो नतीजा सामने है।

शुक्रवार को एक तरफ, विपक्षी दलों ने मार्च निकाला, तो दूसरी ओर, केंद्र सरकार के अनेक मंत्रियों ने एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर विपक्ष पर हमला बोला। मतलब, एक-दूसरे को दोषी ठहराने की सियासत का माहौल बन गया है। देश के वरिष्ठतम नेताओं में शुमार शरद पवार ने कहा कि मैंने 55 साल की संसदीय राजनीति में आज तक ऐसा कभी नहीं देखा, सांसदों के साथ दुव्र्यवहार किया गया। पर यहां यह सवाल वाजिब है कि जो सांसद मेज पर चढ़ गए थे, उनके बारे में पवार ने कुछ क्यों नहीं कहा? दरअसल, यही सियासी चालाकी है, जिसका खमियाजा हमने राज्यसभा में देख लिया। अगर हम ऐसी सियासत पर लगाम नहीं लगा पाए, तो आगे ऐसे अनेक घटनाक्रम देखने को मजबूर होंगे। सदन में व्यवहार का एक स्तर होना चाहिए, वहां ऐसी पारदर्शिता होनी चाहिए कि जहां सत्य और असत्य, साफ-साफ नजर आए। लेकिन हम विगत दशकों से सत्य का कम और स्वार्थ या दलीय सियासत का साथ ज्यादा देते आए हैं। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि जब व्यक्ति दिवालिया हो जाता है, तब ऐसी हरकतें करता है। दूसरी ओर, राहुल गांधी इसे सत्ता पक्ष द्वारा लोकतंत्र की हत्या बता रहे हैं। आखिर उपाय क्या है? सदन में सांसदों के असंसदीय व्यवहार को काबू में करने के लिए कड़े नियम-कायदों की जरूरत बढ़ गई है। कुछ सांसदों को लग रहा है कि वे लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ जाएंगे और उनका कुछ भी नहीं बिगडे़गा। वह गलतफहमी में हैं, आज जो विपक्ष में हैं, वे सत्ता में आएंगे, तो उन्हें तैयार रहना चाहिए कि उनके साथ भी क्या-क्या हो सकता है? संसद में दुव्र्यवहार वास्तव में खुद अपने लिए और भावी सांसदों के लिए गड्ढे खोदने जैसा काम है। इस गड्ढे को मिल-जुलकर भरने में ही भलाई है, ताकि किसी के गिरने या किसी को गिराने की न नौबत आए और न गुंजाइश रहे।


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