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अब एक नजर फरवरी 2020 में म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस पर
के वी रमेश
तीन साल पहले, जनवरी 2019 में दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सालाना रायसीना डायलॉग में ओआरएफ अध्यक्ष समीर सरन ने एक परिचर्चा का संचालन किया जिसमें मेहमानों में इटली के पूर्व प्रधानमंत्री पाओलो जेंटिलोनी, सीआईए के पूर्व निदेशक जनरल डेविड पेट्रियस के साथ पूर्व विदेश सचिव एस जयशंकर (S. Jaishankar) भी शामिल थे जिन्हें चार महीने बाद ही केंद्रीय कैबिनेट में शामिल कर लिया गया. चर्चा के दौरान एक वक्त सरन ने जयशंकर से भारत की विदेश नीति के बारे में पूछा कि वह किसी भी शक्ति या गुट के साथ गठबंधन क्यों नहीं कर रहा है. उनका सवाल था कि क्या भारत स्टैंड ले सकता है एक पक्ष को चुन सकता है. जयशंकर ने झट से जवाब दिया: "मुझे लगता है कि हमें एक स्टैंड लेना चाहिए … मुझे लगता है कि हमें एक पक्ष चुनना चाहिए जो भारत का पक्ष होना चाहिए." इतने कम शब्दों में भारत की सामरिक स्वायत्तता की बेहतर अभिव्यक्ति मुश्किल है.
अब एक नजर फरवरी 2020 में म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस पर. अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने कश्मीर की समस्या को सुलझाने को लेकर भारत के विदेश मंत्री बन चुके जयशंकर को उपदेश दिया. ग्राहम ने विशिष्ट अमेरिकी लहजे में अमेरिकी मध्यस्थता का सुझाव देते हुए कहा कि, "दो लोकतंत्र" मिल कर कश्मीर समस्या का हल निकाल सकते हैं. जयशंकर ने पलटवार किया: सीनेटर चिंता मत कीचिए. इस समस्या को एक ही लोकतंत्र सुलझाएगा और आप अच्छी तरह से जानते हैं कि वह लोकतंत्र कौन सा है.
उनका सबसे नया वन-लाइनर, 'इन द अफटरनून', अब धमाल मचा रहा है
ऐसे समय में जब दुनिया एक उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है और विश्व के अंदर से फटने का खतरा है, देशों के बीच नये समीकरण बन रहे हैं और भविष्य अनिश्चित है, भारत इस तरह के विदेश मंत्री को पाकर भाग्यशाली है जिसकी सोच और दृष्टि बदलते दौर में भी बिल्कुल साफ है. किसी ने नहीं सोचा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 31 मई, 2019 को जयशंकर को विदेश मंत्री के रूप में नियुक्त करने का निर्णय मास्टरस्ट्रोक साबित होगा. ऐसी हुआ भी.
अपने पीछे एक राजनयिक के रूप में तीन दशकों के अनुभव के साथ जयशंकर शायद वैश्विक राजनयिक दुनिया में हर किसी को अच्छी तरह से जानते थे. मॉस्को, वाशिंगटन, बीजिंग और कई दूसरे देशों सहित विश्व की प्रमुख राजधानियों में पोस्टिंग के कारण जयशंकर हिंदी और अपनी मातृभाषा तमिल के अलावा अंग्रेजी, रूसी, बोलने भर जापानी, चीनी और कुछ हंगेरियन बोल लेते हैं. जब वो अपनी नौकरी के शुरुआती दिनों में श्रीलंका में पदस्थापित थे तब उन्होंने इंडियन पीस कीपिंग फोर्स को श्रीलंका के जातीय समस्या की पेंच दर पेंच उलझी समस्या को सुलझाने में काफी मदद की थी.
जयशंकर में उलझे धागों को सुलझाने वाले गॉर्डियन पेच को सुलझाने और हर चीज को वृहद रूप में देखने के साथ छोटे विवरणों पर भी नजर रखने की क्षमता है. उन्हें जटिल नीतियों और अवधारणाओं को सरल भाषा में व्यक्त करने में सक्षम होने का भी उपहार मिला हुआ है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि वह बिल्कुल कोमल आवाज़ में एक चुभने वाली बात दोस्ताना लहज़े में बोल देते हैं जो एक सलाह जैसा लगता है.
2+2 बैठक उनकी दक्षताका शानदार सबूत था
उन्हें और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से उनके अमेरिकी समकक्षों ने यूक्रेन युद्ध और रूस से बड़े डिस्काउंट पर भारत के पेट्रोलियम पदार्थ लेने पर सवाल किया. अब चार लोगों की बैठक के दौरान क्या हुआ शायद हम कभी नहीं जान सकते, लेकिन जयशंकर ने स्पष्ट किया कि जब एक तरफ वो और राजनाथ सिंह बैठे थे और दूसरी तरफ ब्लिंकन और ऑस्टिन तब भारत पर दबाव डाला गया जिसका बदला भारत ने ले लिया. उस बातचीत के दौरान एस जयशंकर की टिप्पणी दोहराने लायक है.
यूक्रेन संघर्ष पर भारत के रुख पर एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा, "मैं इसे अपने तरीके से करना पसंद करता हूं और इसे अपने तरीके से समझाना भी चाहता हूं." "संक्षेप में भारत संघर्ष के खिलाफ हैं. हम बातचीत और कूटनीति के पक्षधर हैं. हम हिंसा तत्काल खत्म करने के पक्ष में हैं और इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किसी भी तरह का योगदान देने के लिए तैयार हैं."
"मैंने देखा है कि आपने तेल खरीद का उल्लेख किया है. यदि आप रूस से तेल खरीद की बात कर रहे हैं तो मेरा सुझाव है कि आपका ध्यान यूरोप पर केंद्रित होना चाहिए. हम ऊर्जा सुरक्षा के लिए कुछ पेट्रोलियम पदार्थ जरूर खरीद रहे हैं. मगर हम पूरे महीने में जितना तेल रूस से खरीदते हैं उतना यूरोपीय देश हर दिन दोपहर तक ही खरीद लेते हैं. क्या आप इसके बारे में सोचेंगे." अगर ब्लिंकन और ऑस्टिन इस हाजिरजवाबी से चौंक गए तो भी उन्होंने इसे पूरी तरह से छुपाने की कोशिश की.
देखिए, हम दुनिया में क्या हो रहा है ये उसी तरह से देखते हैं जैसे कोई दूसरा देश देखता है और हम अपने निष्कर्ष निकालते हैं और अपना आकलन करते हैं. मेरा विश्वास करें, हमारे पास इस बात की अच्छी समझ है कि हमारे हित में क्या है और हम इसकी रक्षा करना और इसे आगे बढ़ाना जानते हैं." "दुनिया बदल रही है. दुनिया बदलती रहेगी. हमें अपने पेशे के मुताबिक जो करना है वह यह है कि हम देखें कि हमारे हित किस विकल्प से सबसे बेहतर ढंग से सध सकते हैं." "मुझे लगता है कि हम शत्रुता की समाप्ति के लिए काम कर रहे हैं. हर कोई इससे सहमत होगा. शत्रुता खत्म होगी तो दुनिया कम अप्रत्याशित बन जाएगही."
यूक्रेन के लिए भारत बहुत कुछ कर रहा है
और फिर यूक्रेन में पश्चिम जो कर रहे हैं उसके बीच उन्होंने अंतर की एक स्पष्ट रेखा खींच दी. हम मानवीय स्थिति पर भी ध्यान दे रहे हैं. वास्तव में यूक्रेन लगातार हमारे संपर्क में है – विशेष रूप से दवाओं की आपूर्ति को लेकर. हम पहले ही उसके कुछ पड़ोसियों के माध्यम से यूक्रेन को मानवीय आधार पर सामान पहुंचा चुके हैं. और इस वक्त भी जब हम बातचीत में मशगूल हैं, वहां दवाओं की एक खेप वितरित की जा रही है या बहुत जल्द वो कीव तक पहुंचा दी जाएगी." जयशंकर ने यूक्रेन संकट से विश्व स्तर पर पैदा हुई खाद्यान्न असुरक्षा पर बात की और विश्व खाद्य कार्यक्रम सहित भारत के खाद्य भंडार को उन लोगों के लिए भी खोलने की पेशकश की जिन्हें इसकी जरूरत है.
भारत की विदेश नीति की इससे बेहतर अभिव्यक्ति और दूसरी नहीं हो सकती. और भारत के अल्पसंख्यकों की स्थिति के बारे में ब्लिंकेन की टिप्पणी पर उनका बयान भारत के स्टैंड के अनुरूप था कि अमेरिका हमें उपदेश न दे. ऐसा नहीं है कि जयशंकर केवल वर्तमान को समझ सकते हैं. उन्हें जनवरी 2019 में ओआरएफ चर्चा में यूक्रेन की वर्तमान स्थिति का पूर्वाभास हो गया था.
जयशंकर ने चेतावनी दी कि रूस के बारे
जनरल पेट्रियस ने रूस और चीन पर अमेरिकी नीति के बारे में विस्तार से बताया और सुझाव दिया की भारत आक्रामक अमेरिकी लाइन के साथ चले. मगर जयशंकर ने चेतावनी दी कि रूस के बारे में अमेरिका और यूरोप के "भावनात्मक जुनून" के परिणाम बुरे भी हो सकते हैं.
"हमारे आस-पास में हमें लोग सलाह देते रहते हैं. व्यावहारिक बनिए, तर्कसंगत बनिए, तुम दूसरों से ताल्लुकात नहीं रख सकते. ठीक है, मानता हूं वो बुरे काम कर रहे होंगे लेकिन आपको इसके साथ चलना होगा. हमें उन्हें अपनी तरफ लाना होगा या अपनी बात से उन्हें सहमत कराना होगा. अब हम उन लोगों के बारे में जानते हैं जो हमारे जीवन को चलाने में इस तरह की सलाह देते हैं ," विदेश मंत्री ने पाकिस्तान को लेकर भारत की चिंता और पश्चिमी देशों की असंवेदनशीलता के बारे में बताया.
Rani Sahu
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