सम्पादकीय

रूस-यूक्रेन युद्ध : गोर्बाचेव, पुतिन और नाटो, तीसरे विश्व युद्ध की दहलीज पर खड़े हम

Neha Dani
2 March 2022 1:45 AM GMT
रूस-यूक्रेन युद्ध : गोर्बाचेव, पुतिन और नाटो, तीसरे विश्व युद्ध की दहलीज पर खड़े हम
x
अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए जोश से लड़ने वाले निडर जेलेंस्की समर्थन के पात्र हैं।

हालांकि वर्ष 1991 में सोवियत साम्राज्य के पतन का श्रेय रोनाल्ड रीगन ने अमेरिका को दिया, लेकिन लाखों रूसियों का मानना था कि मिखाइल गोर्बाचेव द्वारा शुरू किए गए पेरेस्त्रोइका और ग्लासनोस्त अंततः सोवियत संघ के विघटन का कारण बने! हैरानी नहीं कि रूस के लोग गोर्बाचेव से नफरत करते थे और उनकी लोकप्रियता घटकर 3.5 फीसदी रह गई।

अन्य कई रूसियों की तरह व्लादिमीर पुतिन ने ऐतिहासिक रूस के विघटन पर अपमानित महसूस किया और गोर्बाचेव को कभी माफ नहीं किया। तथ्य यह है कि अत्यधिक विस्तृत सोवियत साम्राज्य आर्थिक रूप से अस्थिर हो गया था और हाशिये पर चला गया था। लेकिन गोर्बाचेव के बिना बर्लिन की दीवार नहीं गिरती और जर्मनी का एकीकरण नहीं होता! जाहिर है, जर्मनी में नायक के रूप में उनका स्वागत किया जाता था।
हालांकि अपने संस्मरण में गोर्बाचेव ने नाटो के पूर्व की ओर विस्तार नहीं होने के बारे में कुछ आश्वासनों की बात की थी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने बाद में अपना दावा वापस ले लिया। हालांकि पुतिन का मानना था कि आश्वासन दिए गए थे। दिसंबर 2021 में चुटकी लेने के लिए उन्हें उद्धृत करते हुए कहा, 'आपने 1990 में हमसे वादा किया था कि (नाटो) पूर्व की ओर एक इंच भी आगे नहीं बढ़ेगा। आपने बेशर्मी से हमें धोखा दिया।'
पुतिन यूक्रेन को लेकर विशेष रूप से संवेदनशील थे और कहा था कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल होता है, तो यह रूस की सुरक्षा के लिए सीधे खतरा होगा। उन्हें लगा कि रूस के खिलाफ नाटो के हमले के लिए यूक्रेन फौजों का अड्डा बन सकता है। जॉर्जिया में पुतिन की कार्रवाई और 2014 में क्रीमिया पर उनके कब्जे से नाटो मुख्यालय को समझ जाना चाहिए था कि पुतिन फिर से कार्रवाई कर सकते हैं, यदि उनकी रेडलाइन को पार किया गया।
लेकिन नाटो ने पूर्व की ओर बहुत करीबी 14 देशों को लापरवाही से सदस्यता देते हुए अपना विस्तार किया, जिसने रूस को झकझोर कर रख दिया। रक्षा आपूर्ति की रिपोर्ट और यूक्रेन में साइबर हथियार और अंतरिक्ष हथियार को ऑपरेशनल डोमेन में डालने से पुतिन के संदेह और असुरक्षा बढ़ गई होगी। रूस कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रतिज्ञा चाहता था कि नाटो आगे विस्तार नहीं करेगा।
पुतिन ने यह भी मांग की कि नाटो 'रूस की सीमाओं के पास हथियार' तैनात नहीं करेगा, और 1997 से नाटो में शामिल होने वाले सदस्य देशों से बलों और सैन्य बुनियादी ढांचे को हटा देगा। दूसरे शब्दों में, रूस नाटो को 1997 से पहले की सीमाओं पर वापस भेजना चाहता था। हालांकि 1994 में, रूस ने यूक्रेन की स्वतंत्रता का सम्मान करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन पिछले साल पुतिन ने रूसियों और यूक्रेनियन को एक राष्ट्र के रूप में वर्णित किया और दावा किया कि आधुनिक यूक्रेन कम्युनिस्ट रूस द्वारा बनाया गया था।
पुतिन की सुरक्षा संबंधी चिंताएं जायज हैं। नाटो विस्तार लापरवाह और असंवेदनशील रहा है। सोवियत संघ के पतन पर उनके अपमान की भावना और यहां तक कि रूस के पुराने वैश्विक प्रभाव को बहाल करने के उनके सपनों को कोई भी समझ सकता है। अमेरिका, नाटो और यूरोपीय संघ को रूसी चिंताओं को खारिज करने के दोष से मुक्त नहीं किया जा सकता है।
लेकिन यूक्रेन पर पुतिन के क्रूर आक्रमण को कुछ भी उचित नहीं ठहरा सकता, जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष लोगों की जान चली गई, बुनियादी ढांचे/संपत्तियों का विनाश हुआ और लाखों आम नागरिकों के जीवन में व्यवधान आया, जो पड़ोसी देशों में हताश शरणार्थी बन गए। पुतिन को निश्चित रूप से रोका जाना चाहिए। एक स्वतंत्र राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता के उल्लंघन को माफ नहीं किया जाना चाहिए।
यदि पुतिन को इसके लिए माफ कर दिया जाता है, तो यह एक विनाशकारी मिसाल कायम करेगा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पूर्ण अराजकता को जन्म देगा। क्या होगा यदि चीनी सेना अपने हजारों जवानों को टैंक और हथियार के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भेज देती है? भारत मुंबई हमलों (26/11) के सरगनाओं के पाकिस्तान स्थित आतंकी प्रशिक्षण और ठिकानों के बारे में जानता है।
क्या उन्हें पकड़ने के लिए भारत को पाकिस्तान पर हमला कर देना चाहिए? वर्ष 2003 में अमेरिका ने पूरी तरह से झूठे आरोप लगाकर इराक पर हमला किया। यह गलत था। लेकिन बुश ने कम से कम अपनी शर्म ढकने के लिए संयुक्त राष्ट्र से प्रस्ताव पास कराया। पुतिन ने अफगानिस्तान से अमेरिका के अपमानजनक ढंग से बाहर निकलने और अमेरिका-चीन के तनावपूर्ण संबंधों के बाद एक कमजोर अमेरिका का फायदा उठाकर यूक्रेन पर हमला किया।
उन्होंने मान लिया कि न तो अमेरिका और न ही नाटो युद्ध के मैदान में उतरेंगे। स्विफ्ट सुविधाओं पर प्रतिबंध, फेडेक्स सेवाओं को वापस लेने, रूसी विमानों के लिए हवाई क्षेत्र बंद करने और रूसी तेल आपूर्ति को बंद करने सहित अमेरिका, यूरोपीय संघ और जी-7 सदस्यों द्वारा घोषित कड़े प्रतिबंधों का रूस की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। लेकिन उसमें समय लगेगा।
अर्थशास्त्री मेघनाद देसाई का मानना है कि एकमात्र चीन ही रूस को आर्थिक प्रतिबंधों को झेलने में मदद दे सकता है। रूस चतुराई से स्विफ्ट प्रतिबंधों को तोड़ने के लिए आभासी मुद्रा का इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ में अपने भारी आर्थिक हितों को देखते हुए चीन एक सीमा से ज्यादा रूस की मदद नहीं कर सकता है।

रूसी रक्षा आपूर्ति पर भारत की निर्भरता और अमेरिका के साथ बढ़ते बहुआयामी संबंधों तथा यूक्रेन में फंसे सभी भारतीयों की सुरक्षित वापसी की अपनी प्राथमिकता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत की अनुपस्थिति बिल्कुल वाजिब थी। लेकिन रूस के आक्रमण की निंदा की जानी चाहिए। इस पर चुप्पी संभावित आक्रमणकारियों को गलत संदेश देगी। ठीक है कि अमेरिका और नाटो अपने सैनिक नहीं भेज सकते, लेकिन क्या वे रूस के खिलाफ साइबर युद्ध नहीं शुरू कर सकते और यूक्रेन पर हमले को खत्म नहीं कर सकते? अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए जोश से लड़ने वाले निडर जेलेंस्की समर्थन के पात्र हैं।

सोर्स: अमर उजाला

Next Story