सम्पादकीय

लंबे समय से तैयार हो रही थी रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण की पटकथा

Gulabi
25 Feb 2022 2:19 PM GMT
लंबे समय से तैयार हो रही थी रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण की पटकथा
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रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण की पटकथा
लोकमित्र। रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के महज कुछ घंटों के भीतर ही यूक्रेन के राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र से तत्काल मदद की गुहार लगाई है। जिस यूक्रेन से पश्चिम के देशों खासकर अमेरिका और ब्रिटेन बार बार कह रहे थे कि तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं, वे महज निंदा प्रस्ताव और आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा कर रहे हैं। जबकि दुनिया जानती है कि रूस पर जिस तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं, वैसे प्रतिबंध लगभग एक दशक से वह झेल रहा है। इस तरह के प्रतिबंधों से जब ईरान जैसे देश पर कोई फर्क नहीं पड़ता, तो रूस पर क्या फर्क पड़ेगा। ऐसे में यूक्रेन को भी अब लगने लगा है कि वह पश्चिमी देशों के उकसावे में आकर बेवकूफ बन गया, शायद यही वजह है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति ने बड़े आहत भाव से कहा है कि दुनिया ने हमें रूस के साथ लड़ाई में अकेला छोड़ दिया है। यूक्रेन के राष्ट्रपति को अब ठगे जाने का एहसास हो रहा है। यूक्रेन जिन पश्चिमी देशों के बल पर रूस की हर तरह की धमकी और इरादे को ध्वस्त करने की बात कर रहा था, अब वह इस वास्तविकता को समझने लगा है कि वह बुरी तरह से फंस गया है और कोई भी पश्चिमी देश उसे इस स्थिति से निकालने के लिए अपने पुराने दावे पर नहीं टिकेगा।
क्या वाकई जैसाकि पश्चिमी मीडिया लगातार एक राय बनाने की कोशिश कर रही है, उसके मुताबिक पुतिन की महत्वाकांक्षा और रूस का विस्तारवादी रवैया ही इसके लिए जिम्मेदार है? या फिर इस खूनी पटकथा के रचे जाने में अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों का लगातार यूक्रेन को रूस के विरुद्ध उकसाना जिम्मेदार है? दरअसल रूस और यूक्रेन के बीच यह कोई रातोंरात पैदा हुआ तनाव या झगड़ा नहीं है। इसकी नींव तो वास्तव में वर्ष 1991 में ही पड़ गई थी, जब तत्कालीन सोवियत संघ टूटकर बिखर गया था और दुनिया के नक्शे पर 15 नए देशों का उदय हुआ था। उस समय यह एक अघोषित समझौता हुआ था कि सोवियत संघ से टूटकर बने नए देशों को नाटो न तो सैन्य संगठन का सदस्य बनाएगा और न ही अपना विस्तार रूस की भौगोलिक सीमाओं तक करेगा। लेकिन अमेरिका और उसके कई पश्चिमी साथी देश इस अघोषित समझौते के प्रतिकूल कदम उठाते रहे।
शीतयुद्ध के समाप्त होने पर अमेरिका ने रूस को भले ही यह आश्वासन दिया गया था कि उसकी भौगोलिक सीमाओं तक नाटो नहीं जाएगा, लेकिन सोवियत संघ के पतन के महज पांच वर्षों के भीतर ही नाटो का विस्तार उन कई देशों तक हो गया जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे। यही नहीं, तब से लगातार अमेरिका, ब्रिटेन और दूसरे प्रमुख नाटो देश यूक्रेन की भलाई के नाम पर रूस के विरुद्ध प्रबल शत्रु के रूप में विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। रूस लगातार इन बातों का विरोध कर रहा था। यहां तक कि वर्ष 2014 में जब उसने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया, तब भी उसने यूक्रेन को इशारों से ही नहीं, बल्कि साफ साफ शब्दों में कह दिया था कि अगर यूक्रेन पश्चिमी देशों के इशारे पर रूस की नींद हराम करेगा तो इसका बहुत बुरा अंजाम होगा।
लेकिन यूक्रेन पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा था। उसे लग रहा था कि उसके कंधे पर जब तक अमेरिका और दूसरे यूरोपीय देशों का हाथ है, उसे किसी की परवाह की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन जब रूस ने किसी भी तरह से न मान रहे यूक्रेन पर आक्रमण कर दिया और गरजकर पश्चिमी देशों से कहा कि दूर रहना, नहीं तो कल्पना भी नहीं कर सकते कि तुम्हारा क्या हश्र होगा? इसके बाद यूक्रेन के लिए जान हथेली पर लेकर फुदकने वाले देश केवल निंदा प्रस्ताव पारित करने तक ही सीमित हो गए। (ईआरसी)
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
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