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- रूस की दिलेरी

Written by जनसत्ता: तत्कालीन लेनिनग्राद, जिसे अब पुन: सेंट पीटर्सबर्ग कहते हैं, में जन्मे, जूडो-कराटे के पारंगत खिलाड़ी, तत्कालीन सोवियत संघ के जमाने में सुविख्यात गुप्तचर संस्था कोमिटेट गोसुदस्टोर्वेन्नोय बेजोपास्नोस्ती यानी केजीबी में सोलह साल तक एक सफल जासूस, जर्मनी के ड्रेसडेन शहर सहित बहुत-सी जगहों पर गोपनीय तरीके से रह चुके और अब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर व्लादिमिरोविच पुतिन का कहना है कि 'मुझे लेनिनग्राद की सड़कों ने यह सबक दिया है कि अगर लड़ाई होनी ही है, तो अपनी जीत सुनिश्चित और पक्की करने के लिए पहला मुक्का आपको ही मारना होगा।'
अभी चल रही यूक्रेन की घटना में उनका यह कथन दिलेरी और उच्चतम मेधाशक्ति का परिचायक है। इस तरह उन्होंने कथित अजेय नाटो सैन्य संगठन के नापाक गठबंधन के मुखिया अमेरिका और उसके दुमछल्ले देशों पर इतना जबर्दस्त और प्रबल प्रहार किया है कि तथाकथित महाबली अमेरिका और उसके चमचे देशों के कर्णधारों को नैतिक, कूटनीतिक, सामरिक आदि सभी तरह से जोरदार पटखनी मिली है।
वर्ष 1991 में तत्कालीन सोवियत संघ विघटित होकर यूक्रेन सहित पंद्रह देशों में बंट गया, इन देशों में क्षेत्रफल के अनुसार सबसे बड़ा देश रूस भी आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में इतना गरीब और दैन्य हो गया कि वह वैश्विक राजनीतिक मंच पर एक अछूत-सा बन गया! लेकिन वही देश अपने राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के कुशल और सक्षम नेतृत्व में अपनी बिखरी शक्ति को सहेज कर फिर से उठ खड़ा हुआ है।
उसने अमेरिका जैसे खुदगर्ज, घोर स्वार्थी और अपनी शक्ति के दंभ में मदांध देश के कर्णधारों और उसके पिछलग्गू देशों के नाटो नामक एक नापाक सैन्य संगठन के माध्यम से अपनी ठीक सीमा पर हो रहे तांडव को काफी दिनों तक बहुत ही विवशता से केवल देखने को अभिशप्त रहा, लेकिन जब नाटो सैन्य संगठन के मुखिया अमेरिका और उसके पिछलग्गू देशों ने उसके नेतृत्व में बने वारसा सैन्य संगठन के बिखरने के बाद उसके सदस्य देशों जैसे पोलैंड, हंगरी, बल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया आदि देशों को अपने नाटो सैन्य संगठन में बेशर्मी से सम्मिलित कर ही लिया। इससे भी आगे बढ़ कर उसके भूतपूर्व राज्यों यथा लिथुआनिया, लाटविया, एस्तोनिया और उसके हृदय प्रदेश यूक्रेन तक को नाटो में शामिल करने की जुर्रत करने लगे तब रूस के सब्र की सभी सीमाएं टूट गर्इं!
रूस ने अपनी सीमा से लगे यूक्रेन के दो रूसी बहुल राज्यों क्रमश: दोनेत्स्क तथा लोहान्स्क को एक झटके में दो स्वतंत्र देशों के रूप में मान्यता देकर पहले से हर कार्यवाही के लिए तैयार अपनी एक लाख नब्बे हजार सेना को इन नवसृजित देशों में शांति स्थापना के लिए बिना वक्त गंवाए घुसा कर कथित महाबली अमेरिका और उसके चमचे देशों के कथित सबसे बड़े नाटो सैन्य संगठन को दिन में तारे दिखा दिया है।
नाटो के सरगना कथित महाबली अमेरिका और उनके छुटभैए देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की गीदड़ भभकी तो दे रहे हैं, लेकिन हर तरह से ताकतवर और सक्षम रूसी सेना के सामने आने का नैतिक साहस तक नहीं जुटा पा रहे हैं! इस प्रकार इस दुनिया के अमेरिका से अरबों दुखी और त्रस्त लोग अब यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन अमेरिकी साम्राज्यवाद की गुंडागर्दी और अमानवीय व्यवहार को रोकने और उसकी नकेल कसने के लिए अपने पूरे दमखम के साथ उठ खड़े हुए हैं!
अलग-अलग समय पर चुनाव सरकारी मशीनरी पर अतिरिक्त बोझ डालता है, क्योंकि सशत्र बल और केंद्रीय कर्मचारियों की चुनाव में होने वाली तैनात से उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। एकीकृत चुनाव कराने से उन्हें राहत मिलेगी। क्षेत्रीय दलों का मत है कि मतदाता में प्राय: एक समय में एक ही दल को चुनने की प्रवृति होती है, जिससे एकीकृत चुनावों में राष्ट्रीय पार्टियों के मुकाबले क्षेत्रीय दलों को नुकसान हो सकता है। देशभर में एक साथ चुनाव कराने के लिए पर्याप्त संख्या में अधिकारियों व कर्मचारियों की आवश्यकता होगी। इनके अलावा विशषज्ञों का मानना है कि 'एक देश एक चुनाव' की धारणा देश के संघीय ढांचे के विपरीत सिद्ध हो सकता है।
यहां विधि आयोग की उस अनुशंसा को भी महत्त्व दिया जाना चाहिए, जिसके अनुसार जिस विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के आम चुनावों के छह माह बाद खत्म होना हो, उन विधानसभाओं के चुनाव तो लोकसभा चुनावों के साथ करा दिए जाएं, लेकिन जब विधानसभाओं का कार्यकाल पूरा हो जाए, तब परिणाम जारी किया जाए।