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यूक्रेन इस वक्त विकट स्थिति में हैं. दुनिया का हर देश यूक्रेन की मदद करने के लिए बड़ी-बड़ी बातें तो कर रहा है लेकिन
By: कौशल लखोटिया।
यूक्रेन इस वक्त विकट स्थिति में हैं. दुनिया का हर देश यूक्रेन की मदद करने के लिए बड़ी-बड़ी बातें तो कर रहा है लेकिन सीधे तौर पर कोई बड़ी मदद नहीं कर पा रहा. यूक्रेन ये बात अच्छी तरह से जानता है कि अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ सकता, यानी रूस जैसे ताकतवर देश से अकेले लड़ना उसके बस की बात नहीं है. उसे बड़े और शक्तिशाली देशों का साथ चाहिए. यूक्रेन का कहना है कि उसे नाटो और यूरोपियन यूनियन जैसे बड़े समूह का हिस्सा बनाया जाए. ऐसा होने से उसे इन समूहों में शामिल देशों की सैन्य, आर्थिक और राजनीतिक मदद बड़ी आसानी से मिल सकती है. लेकिन सिर्फ चाहने भर से ये नहीं हो सकता. इसके लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है.
जल्दी के मूड में नहीं यूरोपियन यूनियन
यूक्रेन ने यूरोपियन यूनियन में शामिल होने के लिए अर्जी तो दे दी है लेकिन उसे शामिल कब किया जाएगा ये कहना मुश्किल है. सवाल है कि यूक्रेन को नाटो या यूरोपियन यूनियन में जल्द से जल्द शामिल करने में दिक्कत क्या है. दरअसल इन समूहों में शामिल होने के मानदंड काफी सख्त हैं. हो सकता है इन्हें पूरा करने मे यूक्रेन को सालों लग जाएं. सबसे पहले बात यूरोपियन यूनियन (EU) की करते हैं. 27 देशों के यूरोपियन यूनियन में शामिल होने के लिए यूक्रेन एड़ी-चोटी का बल लगा रहा है. यूक्रेन चाहता है कि रूस के हमले को देखते हुए EU उसे जल्द सदस्यता दे ताकि उसे सैन्य, वित्तीय और राजनीतिक मदद मिल सके. पोलैंड और लिथुआनिया जैसे देश यूक्रेन को EU की आपात सदस्यता देने की वकालत कर रहे हैं.
यूरोपियन यूनियन ने मौजूदा हालात को देखते हुए यूक्रेन की अर्जी स्वीकार तो कर ली है. लेकिन उसे फास्ट ट्रैक मेंबरशिप देने के मूड में नहीं दिख रहा. यूरोपियन यूनियन में शामिल होने के लिए यूरोप के किसी भी देश को कोपेनहेगन मानदंड पर खरा उतरना पड़ता है. 1993 में कोपेनहेगन में यूरोपीय परिषद की बैठक में खास मानदंड स्थापित किए गए थे. इसके मुताबिक EU की सदस्यता के लिए जरूरी है कि इच्छुक देश लोकतंत्र, कानून के शासन, मानवाधिकार, अल्पसंख्यकों के सम्मान और संरक्षण के मुद्दे पर खरा उतरा हो. इसके अलावा ये भी जरूरी है कि आवेदक देश एक फ्री मार्केट इकोनॉमी हो जिसने कॉम्पिटीशन और बाजार की ताकतों से निपटने की क्षमता की गारंटी देने वाली संस्थाओं की स्थिरता हासिल की हो. कुल मिलाकर यूरोपियन यूनियन में शामिल होने के लिए नियम-कानून की लिस्ट 80 हजार पन्नों से ज्यादा हैं. ये सभी शर्ते पूरी करने के बाद ही यूरोपियन यूनियन सदस्यता देने पर विचार करता है. दिक्कत ये है कि यूक्रेन ये सभी शर्ते पूरी करने में अभी कामयाब नहीं हुआ है.
नाटो की सदस्यता लेने में लगते हैं कई साल
यूरोपियन यूनियन के इतिहास को देखें तो सदस्यता पाने में सबसे कम समय ऑस्ट्रिया, फ़िनलैंड और स्वीडन को लगा था. इन देशों को आवेदन करने के दो साल बाद ही यूरोपियन यूनियन में जगह मिल गई थी. EU में शामिल होने वाला अंतिम सदस्य देश 2013 में क्रोएशिया था. क्रोएशिया को आवेदन से लेकर सदस्य बनने में आठ साल का समय लगा था. EU में शामिल होने की अर्जी मंजूर होने के बाद सदस्य बनने में औसतन पांच साल का समय लग ही जाता है. लेकिन ये भी तभी संभव है जब आवेदन करने वाला देश सभी शर्तों को पूरा करने की इच्छाशक्ति दिखाए. फिलहाल EU में शामिल होने की कोशिश में आधिकारिक तौर पर छह देश हैं - बोस्निया और हर्जेगोविना, अल्बानिया, उत्तरी मैसेडोनिया, मोंटेनेग्रो, सर्बिया और तुर्की. लेकिन इनमें से किसी भी देश को जल्द सदस्यता मिलने की संभावना नहीं है.
समझिए आखिर क्या है NATO?
अब बात करते हैं नाटो (NATO) की. NATO का मतलब है North Atlantic Treaty Organization. फिलहाल नाटो 30 देशों का संगठन है जिसमें दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी शामिल है. रूस और यूक्रेन के बीच
मौजूदा युद्ध की एक सबसे बड़ी वजह ये ग्रुप है. जिस तरह रूस की सरहद से जुड़े यूरोपीय देश NATO के सदस्य बन रहे हैं उससे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन को खतरा महसूस हो रहा है. यूक्रेन तो रूस से बिल्कुल चिपका हुआ है. रूस को डर है कि अगर यूक्रेन नाटो का सदस्य बन गया तो नाटो सेना ठीक उसके द्वार पर आकर खड़ी हो जाएंगी. अमेरिका और रूस के बीच ऐतिहासिक कोल्ड वॉर की पृष्ठभूमि को देखते हुए पुतिन का ये डर समझ में आता है. लेकिन सिर्फ इस डर की वजह से यूक्रेन पर हमला करना सही नहीं लगता. यूक्रेन अगर नाटो में शामिल होना भी चाहता है तो ये उसका आंतरिक विषय है. आखिर हर देश को अपने हितों को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र फैसला लेने का अधिकार है.
यूक्रेन नाटो में शामिल हो पाएगा या नहीं ये समझने से पहले नाटो के दिलचस्प इतिहास पर नजर डालना जरूरी है. नाटो की स्थापना 1949 में सोवियत विस्तारवाद के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने और दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप की राजनीतिक एकता को प्रोत्साहित करने के लिए बनाया गया एक सैन्य गठबंधन है. नाटो की स्थापना के समय केवल 12 देश शामिल थे, लेकिन अब इनकी संख्या डबल से ज्यादा हो चुकी है. नाटो में उत्तरी अमेरिका के 2 देश और 28 यूरोपीय देश शामिल हैं, जिनमें कई पूर्व सोवियत राष्ट्र शामिल हैं. ये गठबंधन एक तरह का कलेक्टिव सिक्योरिटी सिस्टम है. इसके अनुच्छेद 5 में लिखा है कि अगर नाटो के किसी भी सदस्य देश पर कोई हमला होता है तो बाकी सदस्य मिलकर उसकी रक्षा करेंगे. इसका मतलब है कि अगर यूक्रेन आज नाटो का हिस्सा होता तो नाटो सेनाएं रूस के खिलाफ लड़ने में उसकी मदद कर रही होतीं.
यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता पाने के लिए 2008 में आवेदन की प्रक्रिया शुरू की थी. यूक्रेन के इस कदम का नाटो गठबंधन ने स्वागत किया था, लेकिन सदस्यता देने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की. जब यूक्रेन के पूर्व राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को 2010 में चुना गया था तब उन्होंने गुटनिरपेक्ष रहने की इच्छा जताते हुए नाटो का सदस्य बनने की योजना को खारिज कर दिया था. उनका रूस की तरफ थोड़ा झुकाव था. लेकिन फरवरी 2014 में रूस के आक्रमण की वजह से पैदा हुई राष्ट्रीय अशांति के बीच वो देश छोड़कर भाग गए. तब से यूक्रेन और उसके नेताओं ने नाटो सदस्यता को अपनी प्राथमिकता की लिस्ट में बहुत ऊपर रखा है. इसके लिए यूक्रेन की जनता का समर्थन भी पिछले कुछ सालों में बढ़ा है.
यूक्रेन को फिलहाल अकेले ही लड़ना होगा
फ्रांस और जर्मनी ऐसे दो बड़े देश हैं जिन्होंने 2008 में किए वादे के बावजूद नाटो की आधिकारिक सदस्यता को यूक्रेन की पहुंच से बाहर रखा है. इनका मानना है कि यूक्रेन अपने राजनीतिक भ्रष्टाचार पर लगाम लगा पाने में कामयाब नहीं रहा है और वहां लोकतंत्र की जड़ें अभी तक मजबूत नहीं हुई है. यूं तो नाटो की सदस्यता के लिए कोई आधिकारिक चेकलिस्ट नहीं है, लेकिन इच्छुक देशों से कुछ न्यूनतम अपेक्षाएं की गई हैं. इनमें लोकतंत्र को बनाए रखना, विविधता का सम्मान करना, बाजार आधारित अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ना, सेना की लगाम जनता के हाथ में होना, पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध स्थापित करना, उनकी संप्रभुता का सम्मान करना और नाटो सेना के साथ मिलकर काम करना कुछ जरूरी शर्तें हैं. नाटो गंठबंधन की नजर में यूक्रेन अभी तक इन शर्तों को पूरा करने की दिशा में बहुत पीछे है लेकिन जिस तरह से स्थितियां बदल रही हैं, उन पर यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने का भारी दबाव है.
यूक्रेन की मौजूदा स्थिति और उसके अकेलेपन को देखते हुए दुनिया भर में उसके लिए फिलहाल हमदर्दी का भाव है. संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका से लेकर दुनिया के सौ से ज्यादा देशों ने यूक्रेन का समर्थन करते हुए रूस की निंदा की है. कई देशों ने रूस के खिलाफ आर्थिक पाबंदियां भी लगा दी हैं और यूक्रेन की सैन्य मदद के लिए आगे भी आए हैं. लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी वो यूक्रेन को नाटो या यूरोपियन यूनियन जैसे समूह में शामिल करने को लेकर कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं. साफ है कि यूक्रेन की राह अभी बहुत लंबी है. फिलहाल उन्हें ये लड़ाई अकेले ही लड़नी पड़ेगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि जनता से रिश्ता न्यूज इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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