सम्पादकीय

Russia Ukraine War : संकट के वक्त देश से बहुत ज्यादा उम्मीद क्यों करते हैं विदेश में बसे भारतीय लोग?

Gulabi
6 March 2022 5:14 AM GMT
Russia Ukraine War : संकट के वक्त देश से बहुत ज्यादा उम्मीद क्यों करते हैं विदेश में बसे भारतीय लोग?
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विदेश में बसे भारतीय लोग
Russia Ukraine Crisis :- हवाई अड्डे पर एक लड़का गुलाब का फूल मिलने के बाद मुस्कुरा रहा था. वह फूल उसे स्वागत के दौरान दिया गया था और उसकी भाव-भंगिमा ऐसी थी, जैसे कह रहा हो कि मैं इसका क्या करूं? 'भारत लौटने के बाद हमें यह (फूल) दिया जा रहा है. मैं इस गुलाब का क्या करूं? अगर हमें वहां कुछ हो जाता तो हमारे परिवार का क्या होता?'
भारत ने आपको यूक्रेन (Ukraine) नहीं भेजा था. आपके मम्मी और पापा ने भेजा था. त्वरित संचार और तकनीक अब तत्काल संतुष्टि का रूप ले चुकी है और 'अभी' में जीने वाली इस पीढ़ी के मन में उनका न्यायपूर्ण आक्रोश वाजिब है. आपको अभी-अभी आपकी जिंदगी वापस मिली है. आपको शुक्रगुजार होना चाहिए.
सामूहिक अहंकार
यह बात दिमाग को झकझोर देती है. 35 वर्षीय एनआरआई के रूप में मैं विदेश में रहने के हमारे सामूहिक अहंकार पर हैरान हूं. यह ऐसा है, जैसे कि हम अपने वतन से बाहर आ गए हैं तो हमारा अभिषेक होना चाहिए और हमें विशेष कृपा मिलनी चाहिए. आप भारतीय हवाई अड्डों पर इससे रूबरू हो सकते हैं. अमेरिका के झुग्गी-झोपड़ी वाले घरों में रहने वाले घमंडी बच्चे यहां की कमियों पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं. हम आइवी लीग से आते हैं. आपको पता नहीं है? ब्रिटेन में रहने वाले ऐसे भारतीय भीड़, बदबू और धक्कामुक्की पर नाराजगी जताते हैं.
खाड़ी देशों से काला चश्मा पहनकर आने वाले उपहार के रूप में चॉकलेट लाते हैं और वहां नहीं होने के अपराधबोध को दूर करने की कोशिश करते हैं. आंकड़े बताते हैं कि पासपोर्ट धारक करीब 30 मिलियन भारतीय विदेशों में रहते हैं और इनमें से किसी ने देश के फायदे के लिए अपना घर नहीं छोड़ा. हमने बेहतर व्यक्तिगत सौदे की तलाश में घर छोड़ दिया, चाहे वह हमारे लिए अच्छा हो या नहीं.
हमारा भारत सरकार के साथ ऐसा कोई करार नहीं है कि हालात बिगड़ने पर वह हमारी सुरक्षा करे. इसे ही बेहद उत्साहपूर्वक और जोश के साथ देखा जाना चाहिए कि हाल के वर्षों में संकटग्रस्त इलाकों में फंसे भारतीयों को बचाने के लिए निश्चित रूप से प्राथमिकता दी गई है. हम नाराजगी जताते हैं, क्योंकि हम यह मानकर खुद को धोखा देते हैं कि विदेशी मुद्रा लेकर आने की वजह से देश हमारा कर्जदार है और हमें बदले में प्राथमिकता मिलनी चाहिए. हम विदेशी मुद्रा अपने लिए, अपने परिवारों की भलाई के लिए और प्रॉपर्टी में निवेश के लिए भेजते हैं. कोई भी सुबह उठकर यह नहीं कहता, 'मैं भारत को विदेशी मुद्रा भेज रहा हूं.'
भारत माता के साथ रिश्ता
हकीकत में, इन सबके बावजूद, हमारे और मातृभूमि के बीच का संबंध खुद-ब-खुद बना रहता है और काफी मजबूत होता है. इससे कोई समस्या नहीं है. हम उसे ही चुनते हैं, जो हमें लगता है कि हमारे लिए सबसे अच्छा रहेगा. लेकिन मुश्किल आने का इंतजार क्यों करें? क्या उनके परिवारों को आने वाली मुसीबत नजर नहीं आई? क्या उन्हें ऐसे संकेत नहीं मिले, जिससे उन्हें पता लग जाए कि उनके बच्चों की जान खतरे में है. जब हवाई अड्डे खुले थे और उड़ानें जा रही थीं तो उन्होंने अपने बच्चों को पहले वापस क्यों नहीं बुलाया?
निश्चित रूप से अभिभावकों की भी जिम्मेदारी होती है, जिसे उन्हें तेजी से निभाना चाहिए था. आप खुद जोखिम लेते हैं और अपनी किस्मत आजमाते हुए कोई फैसला लेते हैं. उनमें से ज्यादातर ने ऐसा ही किया. वे वहां रुक गए. शुरुआती कुछ दिनों में तो उनके लिए यह सब रोमांच की तरह था. हालांकि, यह तब तक ही कायम रहा, जब तक वहां बमबारी शुरू नहीं हो गई और इसके बाद दहशत फैल गई. इस सामूहिक निकासी के दौरान नस्लवाद की कुछ घटनाएं भी सामने आईं. यह गौर करना होगा कि यूक्रेन के लिए हम सबसे प्रिय नहीं थे, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि उस देश पर हमला होना चाहिए. इस पूरे घटनाक्रम में कीव स्थित भारतीय दूतावास की तारीफ की जानी चाहिए कि कैसे उन्होंने बेहद कम कर्मचारी और ज्यादा महत्व वाली विदेशी सेवा नहीं होने के बावजूद बच्चों को बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की.
यूक्रेन में हालात की भयावहता या लगातार हो रही मौतों पर मेरी ओर से कोई असंवेदनशीलता नहीं है. लेकिन हमें खुद के लिए जिम्मेदार होना पड़ेगा. तमाम हालात से उलट ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि इस मौके पर भारत ने किस तरह जरूरी कदम उठाए. बच्चों का वीआईपी ट्रीटमेंट की उम्मीद करना वास्तव में बेतुका है. यूक्रेन से बचाकर लाए गए हर बच्चे पर 1.20 लाख रुपये से ज्यादा खर्च हो रहे हैं. इसके लिए किसी भी बच्चे के अभिभावक से पैसे नहीं मांगे जा रहे हैं. यह करदाताओं का पैसा है. वे उन बच्चों के प्रति अविश्वसनीय रूप से दयालु हैं, भले ही उन्हें जानते न हों.
रेस्क्यू का नेतृत्व
यूक्रेन संकट के दौरान अधिकांश देश असहाय नजर आए. लेकिन हमने इस तरह के मिशन का नेतृत्व किया और यह हमारे लिए अच्छा है. वास्तव में, सरकार को जो करना चाहिए था, वह था कि वहां सीधे IAF C17 को उतार देना चाहिए था. जंग के मैदान से जिंदगी बचाना ज्यादा अहम है, न कि फूड सर्विस देना. एक C17 अधिकतम 500 लोगों के साथ उड़ान भर सकता है. और ऐसा किया भी गया. गौर करने वाली बात यह है कि यह सैर-सपाटे के लिए निकली कोई क्रूज फ्लाइट नहीं है.
इसी तर्ज पर हम कुछ A380 भी चला सकते थे और ऑपरेशन गंगा में उन्हें शामिल कर सकते थे. उदाहरण के लिए अमीरात ने सहर्ष मदद की होती. ऐसे में खर्च पर नियंत्रण रखते हुए वे करीब 450 मुसाफिरों को एक साथ ले जा सकते थे. एक अहम मिशन में A380 की जगह 737 और A320 जैसे छोटे विमान भेजकर अच्छी नीयत के साथ ही लेकिन नासमझी दिखाई गई. बाद में C17 का इस्तेमाल बेहद उचित कदम था. नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया था कि लगभग 13 हजार भारतीय यूक्रेन में फंसे हुए हैं. इनमें से आधे अब अपने-अपने घर पहुंच चुके हैं.
भारतीय वायु सेना ने बताया कि चार बचाव और राहत उड़ानें गुरुवार को भारत आईं. इनमें रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट, हंगरी के बुडापेस्ट और पोलैंड के रेजस्जॉ शहर से तीन उड़ानें 798 भारतीयों को लेकर दिल्ली पहुंचीं. वहीं, एयर इंडिया एक्सप्रेस की एक फ्लाइट बुखारेस्ट से 183 भारतीयों को लेकर मुंबई में लैंड हुई. इसकी तारीफ करने और तालियों से स्वागत किए जाने की जरूरत है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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